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स्मृति ईरानी सर्वथा योग्य हैं ?

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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मैं जानता हूँ मैं ऐसे देश से सम्बोधित हूँ जो आतंकियों में भी मानवता ढूंढता है, ऐसा देश जहाँ फिल्म के परदे पर नकली किरदार निभाने वाले खोखले कलाकारों को पूजा जाता है जैसे मानों फ़िल्मी किरदार करने से वह फ़िल्मी फंटूश एक फौजी, डाक्टर, वैज्ञानिक, वकील इत्यादि बन जायेगा. ये ऐसा देश है जहाँ एक फ़िल्मी कलाकार सदी का महानायक बना दिया जाता है, एक मनोरंजक खिलाड़ी तो भगवान तक बना दिया जाता है. यही एक देश है जहाँ बारिश के लिए यज्ञ-पूजन किया जाता है, इसी देश में मानसिक रोग दूर करने के लिए, बच्चा पाने और हर तरह की समस्या के लिए ओझा, तांत्रिकों के सामने मत्था टेक कर परामर्श लिया जाता है I
यही देश है जहाँ वैश्विक तकनिकी विकास के चरम के बावजूद जो दुनिया से कोई १८० साल पीछे है I
ये बात सही है की विश्व का हर व्यक्ति एक सामान ज्ञानी या समझदार नहीं हो सकता पर अगर ये नासमझी राष्ट्रीय चरित्र हो जाये तो यह विनाशकारी ही साबित होती है ! समस्त विश्व को ज्ञान देने वाला यह राष्ट्र तो आज से १४०० वर्ष पहले ही मूर्ख बनना शुरू हुआ है ! अधिक गहराई से मैं इसे भविष्य में स्पष्ट करूँगा !
मैं ये पूछता हूँ अपने बेटे को क्या खिलाना है अपनी बीवी को कौन सा कपडा खरीद कर देना है ये क्या हम पडोसी से पूछते हैं ? क्या लड़की की शादी करने से पहले हम सब्जी मंडी में उसका प्रदर्शन करते हैं ? क्या परिधान-प्रसाधन खरीदने के लिए हम लोहार के पास जाते हैं? क्या कुम्हार के पास सब्जी मिलेगी ? क्या कोई कसाई पूजा के फूल देगेगा आपको ?
योग्यता का अपमान करना इस देश में कुछ पहले ही शुरू हुआ है ! यही वो देश है जहाँ पैदा होते ही एक जाति या परिवार को हम पंडित और पूज्य मान लेते हैं और वहीँ दुसरे एक बच्चे को पैदा होते ही नीच और त्याज्य बना देते हैं !
हर सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, लिहाज, परामर्श, स्नेह अधिकार एवं दायित्व के लिए विशिष्ट एवं सुनिश्चित योग्यता चाहिए. पर हर योग्यता का मापन सामान्य व्यक्ति के सामर्थ्य में नहीं हो सकता !
हींग की महक पारिजात से भिन्न एक बच्चा भी बता सकता है … बेन्जीन और टॉलूईन में फर्क अच्छे से अच्छा नहीं बता सकता उसके लिए एक रसायनविद होना पड़ेगा ! धरती पर चल तो हर जीव सकता है पर उसका भार मापने के लिए प्रथम आर्यभट्ट होना पड़ेगा ! आकाश हर मानव देखता है उसमे अभिजात और स्वाति को पहचान लेना तो कोई ऋषि ही कर सकता है. रोहिणी नक्षत्र का प्रस्थापन तो किसी महान खगोलज्ञ ने किया पर उसका फलित प्रत्यक्षं तो वराहमिहिर जैसे महान नवरत्न के ही सामर्थ्य की बात थी. हर पदार्थ, जीव यहाँ तक की हर पिंड एक योग्यता रखता है .. हम इतना तो मानते हैं? पर, सबसे बड़ी बात ये है की हर पिंड के गुण का परिक्षण एवं स्थापन मात्र विशिष्ट ज्ञानी के ही सामर्थ्य में होता है.
किसी व्यक्ति के लोकप्रिय होने से क्या वो गुणी मान लिया जायेगा? टीवी का जानामाना चेहरा होने से कोई परम गुण संपन्न महाज्ञानी मान लिया जायेगा? क्या पदो पर प्रतिष्ठा के लिए फिल्मों, टीवी या मीडिया में अनुभव देखा जायेगा ? तो क्यों नहीं सेना, शिक्षण संस्थानों में बॉर्डर, मुन्ना भाई फिल्मों के नायकों को नियुक्त कर दिया जाये ? आखिर फिल्मों या फर्जी परदे की लोकप्रियता हमारी ऑंखें अंधी क्यों कर देती है ?! फिल्मों और फ़िल्मी कलाकारों को भगवान बनाने वाले मीडिया का यह प्रदूषित प्रसार इसके लिए जिम्मेदार है एवं सही शिक्षा का अप्रचार एवं अनियमन इसका कारण है ….
हम जिसे बार बार देखते हैं उसी को सब मान लेते हैं जिसको पाउडर लिपस्टिक या सजा हुआ देखते हैं उसको ही टकटकी बांध के देखने लगते हैं .
यह देश १०-२० साल नहीं कम से कम १५००० वर्ष से सभ्य है और हर मत पर दिशा निर्देश (धर्म नीति) दिए जा चुके हैं.
सामाजिक एवं नैतिक निर्धारण एवं धार्मिक विचार से देह पर निर्वाह करने वाले शूद्र कहलाये जाते हैं पर, शूद्र सम्मानीय होते हैं जैसे किसान, श्रमिक, स्वच्छता कर्मी और शूद्रों में भी निकृष्ट होती हैं वेश्यायें जिनकी कीमत उनकी देह मात्र होती है, ये भी है चाहे वो शिक्षित क्यों न हो !! . आधुनिक वेश्यायें फिल्म और टीवी कलाकार हैं. सोचिये ऐसे शूद्रों को आदरणीय बनाने वाले हम क्या हैं ? लम्पटों के लिए वेश्या देवी सदृश्य ही होती है. वेश्या के लिए परिवार का सम्मान धूलधूसरित करने वाले सबसे निकृष्ट मनुष्य होते हैं और ऐसे निकृष्ट देवदासों को सर पर बिठाने वाले उससे भी निकृष्ट एवं हतभाग्य !
महान आर्य ऋषियों द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था को मूढ़ जाति व्यवस्था बनाने वाले हम गुण योग्यता परिक्षण इत्यादि के सही आकलन से हम कोटि कोटि दूर हैं !
बौद्धिकता एवं ज्ञान में विशिष्ट के बल पर सेवा देने वाला या निर्वाह करने वाला विप्र होता है (पर हर विप्र ब्राह्मण हो जाये आवश्यक नहीं जिसका विवेचन मैं अन्य लेख में करूँगा), ब्राह्मणत्व हर हाल में सामाजिक, नैतिक, शासनिक मानदंडों पर सम्माननीय होता है ! विप्र में सबसे ऊँचा प्रकार विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षक एवं शोधार्थी होते हैं !
स्मृति ईरानी के प्रशंसक एवं इस सरकार की जीत से उत्साहित होकर सही गलत भूलने वाले जो तर्क दे रहे हैं और जिस ऐंठ से बोल रहे हैं की योग्यता का कोई अर्थ नहीं है जब ७० वर्षों में महाज्ञानी (?) कुछ उखाड़ नहीं पाये तो एक नाचने गाने वाली देह का प्रदर्शन करने वाली कच्छे पहनकर पैसा कमाने वाली कोई औरत क्यों उच्चतम शिक्षा का उद्धार नहीं कर पायेगी ? सच है जब रेलगाड़ी खींचने वाले इंजन दुर्घटनाग्रस्त होने लगें तो ट्रेनों में हमें बैल या खच्चर लगाने चाहिए. जब हवाई जहाज लेट होने लग जाएँ या ईंधन की किल्लत होने लग जाये तो ठेलागाड़ी पर सफर करना शुरू कर दें.

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औरतों की पूजा की हमने जो गलत परंपरा बना रखी है की हम हर औरत को सर पर बिठा लेते हैं* औरत स्वयं शूद्र होती है और किसी भी महत्वपूर्ण दायित्व पर उसे नहीं बिठाना चाहिए ये हजारों सालों से ऐसे ही नहीं कहा गया है और वो भी एक नाचने वाली पूजित वेश्या? हर समाज इस स्थिति में आकर विनाश को प्राप्त हुआ है. हो सकता ऐ हमारे कुछ वर्षो से बने इन गलत धारणाओं को मेरी बातों से चोट पहुंचे पर, हम अगर सोचकर देखें की इस देश में आजादी के बाद से ही जितनी महिलाओं को प्रशासन इत्यादि में जगह दी गयी उतना विश्व के किसी अन्य देश में नहीं किया गया अगर जनसँख्या अनुपात के देखें तो!! और (कभी) विश्व का ऐसा शक्तिशाली देश भी अपनी आजादी के बाद से जितना गिरा है उतना कोई और देश नहीं गिरा .
क्या हमें कोई साम्यता कोई सम्बन्ध नजर आता है ? * मैं इसे फिर कभी स्पष्ट करूँगा.
पर, अभी यह कहता हूँ की मजदूर को रसोई सँभालने दी जाये या लूले को कुश्ती लड़ने को कहा जाये या अंधे को निशाना लगाने को बोला जाये या अपंग को युद्ध में उतार दिया जाये कुत्ते से खेती करवाई जाये और घोड़े को उड़ने को प्रेरित किया जाये, स्त्री को गणित सिखाया जाये (अपवाद रहित) और एक तबलची को आपके पेट का ऑपरेशन करने दे दिया जाये तो क्या होगा ? अगर इनमे से कोई सफल हो भी जाये फिर भी कोई मूर्खा किसी भी तरह से देश के सबसे ज्ञानियों, नीति नियंताओं एवं प्रबुद्धों को दिशा निर्देशित नहीं कर सकती ! भले ही वो सौंदर्यवान हो, भले ही उसकी वाणी बड़ी मनोहारी हो, भले ही वो प्रधान की प्रिया हो, भले ही उसने लम्बी राजनैतिक प्रगति करी हो ऐसी स्त्री न तो ऐसी योग्यता रखती है बल्कि यह उन सभी शिक्षकों का अपमान भी है. यह ज्ञान का घोर अपमान भी है.
इस अजूबी संपादक मंडली द्वारा विभूषित कोई कह रहा है की स्मृति ईरानी को कोई शिक्षक थोड़े ही बनना है, तो उन महाशय के विचार से मानव संसाधन मंत्रालय की जिम्मेदारी लेने वाले मंत्री की क्या जिम्मेवारी होती है ? क्या उस १२ पास को शोध पत्रो की विवचना के आधार पर प्राचार्यों की नियुक्ति के प्रावधानों की कोई समझ है ? उस स्त्री को जब उस गूढ़ विषय का तनिक भी ज्ञान नहीं तो वह कुर्सी पर क्यों बैठी है ? और वहां बैठकर वो कुर्सी गरम करने के सिवा क्या करेगी!
यह राजनीती नहीं है यह सार्वभौमिक विमर्श है जिसका सीधा सम्बन्ध राष्ट्र के भविष्य से होता है. अगर आज तक शिक्षा का भला नहीं हुआ तो क्या हम और भी बेतुका चुनाव करेंगें? ये किसी विपक्षी राजनैतिक पार्टी द्वारा उठाया जाने वाला सनसनीखेज आरोप नहीं है यह ऐसे देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण विषय है जिसकी विश्व की छठवीं जनसँख्या होने के बावजूद सर्वोच्च शिक्षण २०० संस्थानों में उसका एक भी संस्थान नहीं है, जिस देश की शिक्षा विश्व में कहीं और नौकरी देने लायक नहीं मानी गयी है, जिस देश में शिक्षा सबसे हाशिये पर है जहाँ आरक्षण, भ्रष्टाचार, सिफारिश, राजनैतिक मूढ़ता के चलते सारा राजस्व राजनैतिक लाभ के लिए खर्च होता है और समस्त शिक्षा भर अयोग्य निजी खिलाडियों के मट्ठे पटक दी जाती है. यही देश है जहाँ डिग्रियां योग्यता या गुण से नहीं प्रधानाचार्य से परिचय, किसी मंत्री-नौकरशाह की सिफारिश, या मोटी जेब से मिल जाती है. जिस औरत ने कभी पढाई नहीं करी, कोई उच्च डिग्री हासिल नहीं करी वो एक अच्छे प्रतभागी को कैसे चुनेगी और मेहनती योग्य होकर भी नौकरी न मिलने पर उस उम्मीदवार के दुःख को कैसे समझ पायेगी? देश के लिए क्या शोध होने चाहिए और उसके लिए कितना पैसा मुख्य राशि से खींचना है उसे क्या खाकर मालूम चलेगा? ये तो उसे उसके एक विषय के ज्ञानी नौकरशाह भी नहीं बता सकते!
नाचने नौटंकी करने वाले, तमाशा करके पैसा बनाने वालों के साथ अनुभव लेकर यह महोदया किस तरह के मानव संसाधन करेंगी ये सोचने की बात है. और जिस तरह से देश भर में गायक, नर्तक, नौटंकीबाज तैयार किये जा रहे हैं मुझे लगता है विश्व भर में भारत अब वेश्याओं को निर्यात करने वाला देश बन जायेगा .. फिल्म एवं टीवी उद्योग के दम पर !!!
हम जानते हैं की यूरोपियन देश या पश्चिमी सभ्यताएं किस बल पर समस्त विश्व पर हावी हो गयी थी, कैसे सारा विश्व उसका गुलाम हो गया ? क्या हमने कभी सोचा है?
और कैसे यही गुलाम भारत देश एक समय समस्त विश्व को शिक्षित करता था ? सोचा है हमने?
ये चरम प्रतिकर्ष, अधोगति है !
ज्ञान से होने वाला लाभ पहले ज्ञानियों के सम्मान उनकी जरूरतों का मान(व्यक्तिगत नहीं शिक्षा क्षेत्र समबन्धी) एवं ज्ञान के लिए सुपात्रों के चयन से शुरू होता है …
इस सबसे महत्वपूर्ण पद पर सबसे अयोग्य व्यक्ति को बैठाना यही साबित करता है की भारत देश की वो विकृति अभी तक नहीं सुधरी जो अंग्रेजों ने हमपर चस्पा कर दी है !!!!!!!!!! आश्चर्य हुआ आप सबको ? जीहां, जिस तरह का देश आप आज देख रहे हैं उसे अंग्रेजों ने ही निश्चित कर दिया था ….. मूर्ख एवं लम्पट वो भी तात्कालिक राजनैतिक दल यानि कांग्रेस से मिलीभगत के साथ !!
ज्ञान को सबसे ऊँचा महत्त्व युहीं नहीं दिया गया है ज्ञान किसी भी सम्पदा से बहुत मूल्यवान है दैहिक गुण इसके सामने कचरा है. पर ये सब समझने के लिए भी कम से कम कुछ न्यूनतम समझ होना जरूरी है.
पर, हमें विशिष्ट योगयता जांचने के लिए हमें किसी की लोकप्रियता या राजनैतिक मापदंड नहीं चाहियें … शिक्षा एवं स्वास्थ्य हर हालत में किसी उच्च शिक्षित योग्य व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाना चाहिए ….. क्या साढ़े पांच लाख से वोट से चुनाव जीतने वाले को मेडिकल की डिग्री बाँट देनी चाहिए ?
जो लेखक और मीडिया कम पढ़े लिखे हर दल एवं पूर्ववर्ती सरकारों में अनपढ़ या कम पढ़े लिखे सांसदों और मंत्रियों की सूची गिन रहे हैं या सोनिया गांधी और इंदिरा गांधी जैसों के प्रधानमंत्री बनने का तर्क दे रहे हैं उनको बताया जाना चाहिए की राजनेता बनना एक बात है और किसी विशिष्ट क्षेत्र का जिम्मेवार होना एकदम दूसरी बात. संख्या बल ही सब कुछ नहीं होता, एक “देवज्ञ ब्राह्मण करोड़ों मूर्खों से भी श्रेष्ठ होता है” ये बात समझने में कुछ समय लगेगा ! *
मैं प्रधानमंत्री महोदय से विनती करता हूँ की इस कलाकार की जगह किसी भी सामान्य सांसद को उस पद पर बिठाया जा सकता है और क्यों किसी राजनीतिज्ञ को ही विशिष्ट क्षेत्रों का भार दिया जाये (और उसे जो चुनाव हार चुकी हो !) अगर उसपर इतना विश्वास है तो कोई भी और मंत्रालय दिया जा सकता है मैं तो कहता हूँ उसे उपप्रधानमंत्री बना दीजिये या उसके लिए नया फ़िल्मी मंत्रालय बना देना दें तो भी कोई हर्ज नहीं. बावजूद इसके की हमें उनकी स्वयं की नेतृत्व क्षमता एवं शिक्षा की महत्ता की समझ पर पूरा विश्वास है, पर इस तरह का चयन सबसे महत्वपूर्ण विभाग की उपेक्षा दर्शाता है और जैसी आशा हमें इस सरकार से है उसपर तुषारापात भी !
क्यों नहीं प्रशासन एवं नौकरशाही के साथ ही इन दोनों राजनैतिक पदों पर भी विशिष्ट पेशेवरों यानि शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विशेषज्ञों को अधिष्ठित किया जाये?
अगर हमें वास्तविक रूप में भारत को वैश्विक नेता बनते देखना है तो हमें यह नवीन कदम उठाने होंगें !!
[हर बात मीठी हो जरूरी नहीं, पर सही बात ही करनी चाहिए चाहे वो कड़वी ही क्यों न हो ]

डा. शैलेश
काशी.

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