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आरुषि का न्याय नहीं हुआ अभी !!

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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१५ मई दो हजार आठ से एक १४ वर्ष की लड़की की अपने ही घर में मौत की घटना मीडिया का रोटी दाल (कुछ लोगों के लिए “ब्रेड बटर”) रहा है, जितना अधिक इस घटना को आसमान पर चढ़ाया गया दिल्ली में और समूचे देश में, उतना देश में रोज ही हो रही कई महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील राष्ट्रीय घटनाओं को लायक नहीं समझा गया ! हर टीवी चैनल के लिए मानों यह जीवन की सारी कमाई करने का एकमात्र धंधा हो गया, जीवन भर उनके चैनल को स्थापित करने के लिए यह किसी अमृतकलश जैसा हो गया, इस कई हजार साल पुराने देश में अचानक ही किसी क्रांति का सूत्रपात हो गया, मानों रात में सूर्य का उदय हो गया या ऐसी किसी जीव की उत्पत्ति हो गयी जो आज से पहले कभी था ही नहीं … ये ऐसी घटना बन गयी जो अरबों सालो में बस उसी दिन हुई थी, मानों ईसा और कल्कि का पुनर्वतार हो गया, जैसे हमें माउन्ट विसुवियस का विस्फोट और प्रशांत महासागर के सुनामी या नोबल, ऑस्कर के बारे में जानने की जरूरत थी उससे अधिक उत्कंठा मीडिया की इस केस के बारे में छोटी बड़ी मामूली, गैरमौजूद हर चीज मालूम करने की बढ़ गयी !! जाहिर सी बात है देश में ऐसे भी ऐसे रसीले खबरो की बड़ी कमी है, और बाकि देश में इस वीर रंगीले मीडिया की भी कम उपस्थिति है ! पर हर घटना होगी तो देखी जायेगी और बतायी भी जायेगी I
देश में पिछले कई सालों से कोलाहल रहा है और बहुत और कुछ बिखर गया है, कई जगहों पर स्थितियां विकृत हो गयी हैं, पर उससे बढ़कर भी सामाजिक नियम, वर्जना, अनुशासन और नैतिक आचरण में सबसे बड़ी विकृति आयी हैI और बड़े शहर खासकर दिल्ली में तो सबकुछ बस “फ्री फॉर आल” जिसकी जैसी मर्जी, बेहूदा मनमानी कर लेने का हो गया है!
मीडिया बड़े समय से शोरोगुबार और लफ्फाडेबाजी से मनचाही घटनाओं को देख रहा है, बाकि सबकुछ बड़े तरीके से अनदेखा कर रहा है, इस भीड़-भेड़ (या “भेड़िया”) से भरा समूह जिसमे मात्र बेकार, और सबसे अयोग्य लोगों की भरमार है हर घटना, हर परंपरा, हर चीज को अपने ही सड़े,(अपरिपक्व नहीं कह सकता) घटिया दृष्टि कोण से देख रहा है I इस समूह में, जिसकी महिमा मैं फिर कभी बखान करूँगा, कम उम्र, अधपक्के, नितांत जमीन से, मूल्यों से एवं आदर्शो से रहित व्यग्र-लालचियो की भरमार है जिनके हाथ में कलम और कैमरा आ गया है और कुछ भी बोलने की छूट है, कुछ भी कैसा देखने, अपनी समझ जितनी भी है, समझाने एवं फ़ैलाने की छूट है !
मीडिया है क्या और कैसे इसका खेल चलता है ये तो कभी फिर, पर अब किस तरह के आदर्श यह स्वच्छंद होती जनसँख्या को यह सिखा रहा है यह परेशान करने वाला है !
एक चैनल की प्रस्तोता कहती है क्या आरुषि को कभी न्याय मिल पायेगा?
एक कम उम्र की लड़की को ऐसी वीरांगना के रूप में दिखाया जाता रहा है, उसकी नाबालिग या कमसिन उम्र का छद्म लेकर उसपर महान आदर्शो, सहानुभूति के कई शाहकार खड़े कर दिए गए जो शायद हिंदी फिल्मों के फूहड़ कलाकारो ने भी अभी तक तक पैदा नहीं किये हैं !
एक लड़की के लिए मोमबत्ती जलाने और आंसू बहाने के लिए कई बारातें रोज रोज सजीं, रोज अपनी अमीरी, अंग्रेजियत के ऐशोआराम से ऊबी पढ़पढ़कर पगलाई भीड़ सडको पर कैमरो और कैमरेवालो की बकवास के चमकारो का रसास्वादन करती देश के हर चैनल पर रंगायमान होती रही !

arushi bi

एक ऐसी लड़की जिसे सब मासूम और पालने में झूलने वाली समझते हैं ऐसी लायक लड़की थी जिसे अपने पिता के उम्र के बराबर के एक पुरुष, वो जिसे वो चाचा के बराबर कहती थी, जो घर में नौकर था और जिसका जिम्मा घर को सम्भालना होता है और जिसपे किसी भी घर के मालिक को चाहते या न चाहते पूरा भरोसा करना होता है, उसके साथ हमबिस्तर हुआ करती थी, बात जो हैम सुनना नहीं चाहते !! यह महिलावादी और यह महिलाओं की फ़ौज मीडिया बलात्कार की कहानी बताते कहता है की ७०% बलात्कार घर में होते हैं तो इसे क्या कहा जायेगा? क्या इन महा बुद्धिमानो को बस यही शब्द मालूम है? शायद हाँ.
यही मीडिया एक बड़े उम्र के पुरुष से कम (या वयस्क) उम्र लड़की शादी पर शोर मचाता है, वोही जो ४६ साल के किसी पुरुष को १५ साला किसी लड़की का बाप के उम्र का बतायेगा, वही जो किसी अव्यस्क, युवा लड़के के किसी लड़की पर हमले को दुनिया का महापाप बताता फिरता है .. उसे इसमें कुछ ऐसा नहीं दिखा जो वो देश के नागरिकों के लिए आदर्श रूप सामने रख सके !! ये है आजका नीच (ये सबसे अच्छा शब्द है मेरे पास) मीडिया !
इस लड़की का समर्थन में पोस्टर, बैनर लगाये लड़कियों के हजूम ने एक से एक अटपटे और बेवकूफाना बातें लिख अपनी भड़ास निकालीं ! क्योंकि आज लोकतंत्र का चरम है, और जिसका जो मन है वो कर रहा है कह रहा है, खासकर ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार रखने वाले.. केवल गाना, मटकाना, नंगा होना, परदे पर नाटक करना ही इस अभिव्यक्ति में आता है इनकी माने तोह !!
लड़की की देह उसकी संपत्ति नहीं है जैसा कुछ बुद्धिवाली महिलाओं को लगता है, उसके समस्त कारण तो फिर कहीं बताऊंगा पर, अगर उन्हें देखना भर है तो बस एक बार ठीक से किसी भी स्त्री शारीर को देख लें मालूम हो जायेगा.. पुरुष के पास प्रकृतिप्रदत्त अधिकार है और जो सबसे पुरानाप्रथम और सबसे बड़ा अधिकार है और यही पुरुष का प्राकृतिक दायित्व भी है स्त्री की इच्छा की कोई जगह नहीं है !! ऐसी सभी महिलाओं के लिए जिन्हे बस लम्पट, स्त्री देह पर फिसलने वाले पुरुष मिलते रहे हैं और उन्हें खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाते रहे हैं और कुछ भी कहते रहे हैं, उनके लिए ये झटके से कम नहीं होगा.. जो महिलायें खुद को शक्ति का रूप समझती रही हैं, उनके लिए तो ये और भी अपाच्य होगा!! पर वो सारी मीमांसाएँ फिर कभी पर यहाँ तो बात इस लड़की की है ! और उस दोगलेपन की है जिसमे यह देश खासकर महिलायें चलती और इस देश को चलाती रही हैं ..और आज जिसका उपभोग यह शातिर मीडिया भरपूर उपयोग कर रहा हैI उसी नारी देह को पुरुषों के सामने नचाकर अपनी दौलत की पिटारी भरता है, और फिर उस देह को छूने वाले को पापी बताकर उसे महानतम पापी करार देदेता है.. स्त्री को कमजोर बताकर उसके लिए आरक्षण की पुरजोर मांग करता है और उसी स्त्री को पुरुष के बराबर बताकर हर नाजायज़ मांग जैसे सेना में भर्ती, बराबर वेतन और हर अपराध-सजा से मुक्ति भी चाहता है !! मजे की बात है यह दोगला मीडिया या कहें इसमें काम करने वाली औरतें जिन्हे अब नया हथियार मिल गया है अपनी भड़ास निकलने का लगातार यह कुकर्म कर रहा है औ भारतीय समाज हतप्रभ सा बस देख रहा है ! बड़े मजे की बात है की सारी महिला बराबरी, महिला अधिकार एवं सशक्तिकरण इस मीडिया को ऐसी ही महिलाओं के लिए चाहिए जो वेश्याएं हैं, लालची हैं, जिनका पारिवारिक दायित्वो से कोई सम्बन्ध नहीं और जो वास्तव में कहीं भी महिला कहलाये जाने लायक भी नहीं हैं! ये पुरुषो से बराबरी करने वाली और वास्तव में पुरुष हो चुकी, जिनमे अब कुछ बचा नहीं है, जो पुरुषो के किये सारे कुकर्म करती हैं …. जीहां, इन महिलाओं का असली रूप देखना हो तो जरा सा अंदर गहरे आकर देखें क्योंकि ये बाइसवीं शती की, आधुनिकता के चरम पर पहुंची, बराबरी का मजा लेने वाली क्या क्या करती हैं!! दारू, नशा-हर तरह का केवल धुंआ नहीं वो तो हर गली सड़क पर आपको दिख जायेगी, बिस्तर, होटल, और भी बहुत कुछ!!
ये ललनाएँ, अब शायद ये शब्द भी हमें पुरानी किताबों में दफ़न करने पड़ेंगे, अपनी देह पर दुनिया को नचा रही हैं उसका मजा ले रही हैं और उसे अपना अधिकार बता रही हैं ..
और जब, पुरुष जिसे उस देह का उपभोग बनाने के लिए ही बनाया गया है, जब उसपर अपना अधिकार जताता है, तो हाय तौबा ऐसी की मानो स्वर्ग की देवियों का अपमान कर दिया गया हो !!
जब लम्बा समय हो जाता है, तो कई चीजें अपना मतलब खो देती हैं कई नियम, कई रस्मे और कई पारम्परिक सोच.
पर, सोचिये आज ऐसी महिला है, वैसी कई हैं और जिनको अभी तक सबक सिखाया नहीं गया है, जो किसी लड़की के संकट में फंस जाने पर उसकी पिता के गुजरात सरकार से गुहार पर उसके(पिता के) अधिकार की वैधता की बात करती है, इस मीडिया और इन वेश्या सामान स्त्रियों की बात करें तोह पैदा होते ही लड़की इन मीडिया के दोगले दलालों के हाथ में सौंप दी जानी चाहिए और इसके बाद साडी उम्र उसे इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए की आखिर वो लड़की क्या क्या करती है!! ये है आजकी पश्चिमी टट्टी खाये डिग्रीधारी तथाकथित पढ़ीलिखी (मात्र) देह से महिलायें जो अब नए आदर्श की रचना कर रही हैंI
एक स्त्री ही नैतिकता या सदाचार को शुरू करती है और उसी के कारण उस सदाचार, नैतिकता का पतन भी होता है… ये ऐसे ही नहीं कहा गया हैI अगर देखें तो किसी स्त्री से भोग करना तब तक सम्भव नहीं जब तक उसकी सहमति न हो.. अगर वो हल्का भी विरोध कर दे तो उस पुरुष आक्रमणकर्ता की पहचान हो जाती है ..कोई स्त्री इतनी मूर्ख नहीं होती जिसे पुरुषो के सूक्षतम से सूक्षतम भावो को पढ़ने में परेशानी हो.. और पुरुष, यह सबको अच्छी तरह जान लेना चाहिए की पुरुष का सृजन परमपिता परमेश्वर ने बस इसी रूप में ही किया है, आज से नहीं पिछले ढाई अरब वर्षों से (कम से कम इस पृथ्वी पर!) पुरुष हमेशा स्त्री पर हमला करेगा और यही उसका प्राकृतिक धर्म है यह कोई अत्याचार, अपमान या शोषण नहीं है I जिस अनियंत्रित जिह्वा और अधकच्चे दिमाग से कुछ लोग कुछ भी लिख-बोल और न्याय कर रहे हैं वह प्राकृतिक न्यायों एवं शास्वत सिद्धांतो के प्रति महामूढ़ ही हैं ! पुरुष का दायित्व ही स्त्री की तरफ आकृष्ट होना है, और जिसमे, अगर शुद्ध प्राकृतिक यथार्थ देखा जाए, स्त्री की इच्छा की कोई महत्ता नहीं है बस एक पुरुष के लिए दुसरे पुरुष की प्रतिद्वंदिता के खतरे का ही सवाल होता है!!
पर, सामाजिक नियमो को लम्बे समय तक पत्थर की तरह पालन करने वाले और कम समझ रखने वाले न्यायकर्ताओं के चलते नियमो* का कुछ का कुछ कर दिया जाता है I जो भी है, उन्ही सामाजिक नियमो को मानकर हर पुरुष,और केवल पुरुष ही, अपनी कई इच्छाओं को जो उसमे प्राकृतिक प्रचंड रूप में हैं, उनक शमन करता है, उनका महानतम बलिदान करता है* .. एक लड़की का पालन करता है!! सॉजिये कोई गणमान्य, समृद्ध चिकित्सक केवल एक लड़की पैदा करता है यानि पुत्र के प्रति कोई उसका कोई दुराग्रह नहीं था, और जिसकी लड़की इतनी नीच है जो न पिता-माता समझती है, ना बड़ा छोटा जिसे ना तो सामाजिक नियमो का कोई ज्ञान है और ना जिसे पिता के सख्त निर्देश के प्रति कोई सम्मान ..जो लड़की ये कहती है “ये सब तो होता रहता है ” , “ये ओ सब मेरी सहेलियां करती हैं”, “अरे इसमें क्या हो गया”, “ये तो मॉडर्न जमाना है” ..और कोई आश्चर्य नहीं की उसने अपने प्रबुद्ध पेशेवर (डाक्टर) पिता को अपनी आजादी और भारतीय (वर्त्तमान) न्यायालयों की धमकी भी दी हो (जैसा विदेशी धूर्त, उद्दंड संताने करती हैं) !! ये सब उसके लैपटॉप, और उसकी प्राथमिक रिपोर्ट के बाद पुलिस ने सबसे पहले स्वीकार करी, जिसकी याहू और अन्य नेट प्रोफाइल से (जिसे बाद में सरकारी कुत्ता एजेंसी ने दबा लिया!) इस नन्ही छोटी मासूम, अबोध,नादान, बेचारी लड़की की सारी करतूत पता चलती है !!
हम, इस देश के लोग क्या, अधिकतर मानव अपनी बनी बनाई धारणाओं में जीते हैं..जो पहले हम सोच भी नहीं सकते थे वो सब, आज सम्भव है !! आज इन लड़कियों के पास नेट है, और भी सुविधा का सब कुछ है, पैसा है और सबसे खतरनाक उनपर माता-पिता की निगरानी नहीं है ! ये जान लें हम सभी, दिल्ली में लड़कियां ११-१२ साल कि उम्र में गर्भपात करा रही हैं (ये आधुनिकता का परचम है या बर्बादी का चरम?? बताइये!?) !! इस लड़की के तो माता-पिता व्यस्त डाक्टर थे जो समाज के ही काम आ रहे थे, पर ऐसे कई अन्य अभिभावक हैं जो ऐयाशी में आकंठ डूबे हुए, अपने बच्चो को स्वछंदता देना महान दयालुता समझते हैं ! माता-पिता आजादी देते हैं तो क्या हमारी दैहिक इच्छाएं या मानसिक भी, इतनी बड़ी हो जानी चाहिए कि हम कुछ भी करदें, जो एक छोटी सी लड़की अपने पिता तक को पलटकर जवाब दे और वो भी ऐसा शर्मनाक जो हम ना सुन सकें .. जो छिछोरी लड़की, उसी पिता के एक छोटे अंश से पैदा हुई हो!?
अत्यंत शर्मनाक है,…
ऐसी लड़की, जिसकी शकल से पता चल जाता है की विक्षिप्त नहीं थी और अधिक ही चालाक थी, जो अपने पिता, जो उसकी करतूत से अत्यधिक सदमे में होगा और उसको उसने एक ही नहीं कई कई बार तस्दीक भी दी, उसने अपने पिता की भी बेइज्जती करीI क्या किया जायेगा ऐसी लड़की का? छोटी उम्र? अभी बलात्कार में कमउम्र के छूट जाने पर यही सुवर मीडिया दहाड़ मारमार कर “अन्याय- शोषण- अत्याचार “चीख चिल्ला रहा था और वहीँ एक लड़की को उसी कम उम्र पर छूट दे रहा है? एक बालक तो अपनी नैसर्गिक वृत्ति को व्यक्त करता है, जिसे आज पुरुषो क बनाये सामाजिक नियमो ने ही अपराधबोध से बाँध दिया है, पर एक लड़की, जिसके लिए, आज नहीं हजारो साल से शील, आत्मनितंत्रण, अनुशासन एवं वर्जनाओं का धारण आदर्श एवं आवश्यक बताया गया है, किसी मनुष्य द्वारा नहीं बल्कि खुद ईश्वर द्वारा * वो उसकी मानसिक और शारीरिक गठन में अमिट रूप से निहित है (जिसकी विवेचना फिर करूँगा), अगर वो इतनी उद्दंड है और जिसे डांट फटकार और सख्ती के बावजूद जो नीचता पर उतारू थी… ऐसी लड़की जो इतनी कम उम्र में ही बिगड़ गयी थी तो उसका यही हश्र होना चाहिए था!!
पर अधिक खतरनाक बात है इस मीडिया का प्रचार जिसने हॉरर किलिंग जैसा शब्द आविष्कृत कर लिया है जिसका धर्म जाने किस दुनिया से बनता है, शायद फ़िल्में हैं जो वेश्याओं का कोठा है, जहाँ नैतिकता रोज अपना मुंह छुपाती है और स्त्रीयता अपना मुंह काला करती है, जहाँ हर परंपरा तोड़ी, खेली और जिसका चीरहरण होता है जहाँ पर सारे सामाजिक नियम बदल जाते हैं जो देश में अन्य जगह लागू होते हैं! तभी अमन वर्मा, शिनी आहूजा, रमेश भाटकर इत्यादि पर कोई कारर्वाई होती नहीं होती और ससम्मान ‘क्लीन चिट’ दे देती जाती है! पर, इन वेश्याओं के आगे ना झुकने वाले मधुर भंडारकर की छीछालेदर कर दी जाती है ! आज का मीडिया फ़िल्मी भांडो के बनाये कथानक-संवाद को भारत के युवाओं और नागरिको को शिक्षित करने में इस्तेमाल कर रहा हैI फ़िल्मी कहानियों पर अपनी दिन और रात करने वाला देश भर को फ़िल्मी कलाकारों की कल्पना को भारत का नैतिक मापदंड बनाना चाहता है II
यह नीच मीडिया(सभी नहीं पर अधिकतर), जिसे आसाराम बापू ने सही कुत्ता कहा है, धर्म के बनाये नियमो, जिन्हे हजारो सालो से वैज्ञानिकता, व्यवहारिकता पर परखा जा चूका है, का हर रोज मजाक उड़ा रहा है.! पैसे बनाने आया यह गंदे लोगों का समूह, नीचता की गन्दगी के रसातल पर पहुँचता जा रहा है! ऐसे युवाओं की जिनकी भोग-वासना इतनी अंधी हो चुकती है, जिनके लिए बेपरवाह ऐयाशी और खुल्लमखुल्ला बेहयाई आधुनिकता और प्रगतिशीलता का रूप है, और इन पशु सरीखे नवयुवाओं और आज तो कई बच्चे भी, अपनी दैहिक वासना के लिए किसी भी हद तक जाने और किसी की भी अवहेलना करने से पीछे नहीं है!! और यह मीडिया बच्चों के इसी नाजुक असंतुलन का दोहन अपने स्क्रीनों पर भीड़ जुटाने के लिए कर रहा है ,क्या यह मीडिया, इसमें जो भी काम कर रहा है, समाज के तानेबाने को तहसनहस नहीं कर रहा ?!
वास्तव में यह देश वह है जहाँ महिलाओं का अपराध विश्व में सबसे अधिक है..जहाँ, आकर देखिये दिल्ली में, लडकियां खुलेआम शराब, ड्रग्स और सिगरेट-बीड़ी का व्यसन करने में जरा भी नहीं शर्माती.. जहाँ लड़कियां शराब के नशे में, प्रधानमंत्री आवास तक में गाडी घुसेड़ देती हैं और, जैसा सुना गया प्रधानमंत्री ने मुस्करा इसका स्वागत किया, और पूरे शहर में ये अपनी देह का व्यापर अपनी हनक पर करती हैं !! ये है, महिलाओं का सशक्तिकरण जो पूरे विश्व में यही पर है.. !
लड़की जो भी मनमानी करे, वो उसके महिलाधिकार हैं, उसके वीरांगना-देवी होने का परिचायक ..उसपर कोई कानून लागू नहीं होता. ये उद्दंड स्त्रियो की बढ़ती ताकत है या परमलंपट, चूजे पुरुषो की कमी-कमजोरी? ?? माता-पिता जो उसे २०-२५ साल तक हर आपत्ति, दुःख, भार उठाकर, पर सबसे बढ़कर अपनी दायित्व भावना से पेरित होकर अपने सामाजिक धर्म को पूरे लगन से निभाते हैं… और उनकी इच्छा को और उन्हें पूरे समाज में अपमानित करने में आज एक लड़की को किसी लड़के के साथ भागने में जरा भी शर्म नहीं आती.. कई गंदे तर्क देने वाले दलाल मीडिया के समर्थन से हेकड़ी दिखाने वाली ये लड़कियां ही सबसे अधिक तलाक करवाती हैं, सबसे अधिक घर तोड़ती हैं, (इसके पर्याप्त तथ्य हैं) देश को कुछ नहीं देती जबकि समाज में अस्थिरता ही देती हैं.. हाँ, इस नीच दलाल मीडिया के लिए सबसे अधिक उपयोगी साबित होती हैं… ऐसी धर्म एवं समाज की अवमानना करने वाली लड़कियों (और लड़कों को भी) सबसे बुरी सजा मिलनी चाहिए. पर, लड़की, जो जितना भी मूर्खतापूर्ण आलाप यह रंडियापा मीडिया करे, जो कहीं भी लड़के के बराबर नहीं है, के लिए सारी वर्जनाएं बेशक सही हैं! हाँ, पर इसमें उसकी बिलकुल ही ध्यान ना देकर पारिवारिक दायित्वो का उल्लंघन स्वीकार्य नहीं है और इसे मात्र धर्म को सही रूप में स्थापित करके ही किया जा सकता है!!
आज, आरुषि हत्याकांड के सारे पुर्जे टटोले, सबूतो की बखिया उधेड़ने और हर किरदार का खूब चीरफाड़ करी जा रही है .. और उस बर्बाद लड़की के माता-पिता को अपराधी बनाकर उनका रोज ही चरित्र हनन किया जा रहा है … ठीक है, कानून तो ऐसे ही चलेगाI क्योंकि इस कानूनों में पुरुष ही अधिकतर अपराधों में दायरे में आता है.. पर, हमनें ऐसे अपूर्ण कानून संहिता में सुधार करना होगा.. जबतक ऐसा नहीं होता हमारे धार्मिक एवं प्रबुद्ध लोगों को यह जिम्मेदारी लेनी होगी की जो स्त्री अपनी आजादी का ऐसा नाजायज़ अतिक्रमण करे उसे ऐसी ही सख्ततम सजा मिले … पर ऐसे नहीं सबके सामने ! जीहां, एक लड़की को भी. और, यह शास्त्रसम्मत भी है…II वो ज़माने चले गए जब लड़कियां घरो की शोभा, परदे संस्कार से सुसज्जित, अपने स्त्रयोचित गुणो शील-सतीत्व सहित घर संसार की जड़ हुआ करती थीं ..पर आज उसको इन सब शब्दो से शर्म आती है..वास्तव में, दिल्ली खासकर, और बम्बई, की लड़कियां अब लड़कियां नहीं रहीं .. पुरुष तो हो नहीं सकती, अब कुछ और ही हो गयी हैं ! पर, इससे फर्क केवल उन्हें पड़ेगा जो अपना धर्म ही लड़कियों पर फिसलना समझते हैं!
इस देश का काल अब करीब ही है, ऐसा मैं कहता हूँ .. अब, वो सभी वास्तविक पुरुष, जो अपनी शीलता और अनुशासन पर स्थिर थे, पर अब जिनकी खिल्ली उड़ाई जाने लगी है खुद उन्ही लड़कियों द्वारा जो मात्र, लड़को द्वारा दिए गए लिहाज (इज्जत नहीं), का अपमान कर रही हैं ..और अब ऐसे सभी पदभ्रष्ट लोगों को अपना अंजाम झेलना होगा ….
यही काल है .. !!
मीडिया को अगर अपनी ताकत का बहुत घमंड है तो उसे अपनी अकल ठिकाने लगा लेनी चाहिए, खासकर विदेशी संस्कार में रंगे और पश्चिमी क्रांति के रचयिता पुरोधाओं को !!
क्योंकि सजा का समय सबका आता है.. अभी तो वो जश्न में मशगूल है अपनी चमक के नशे में चूर !! सभी धर्मसंपन्न, जागरूक युवाओं को ये अधिकार है की अगर कोई और मदद ना कर रहा हो तो उन्हें ही ऐसे बहकने वालों को त्वरित सीख देनी चाहिए!! यह आधुनिकता, हेप, मॉडर्निस्म नहीं है ..जो सही समझते हैं वो कीजिये.. स्त्री अधिकार केवल शील की सीमा में रहने वाली स्त्रियों के लिए है.. हाथ में कैमरा, कलम पकड़ कर, पीछे लम्पट चैनल मालिकों के दम पर फूलने वाली, देह का सौदा करने वाली, नैतिकता का बलात्कार करने वाली आईसी ढेरो लड़कियां मीडिया, फ़िल्म और ऐसे ही अन्य क्षेत्रो में भरपूर हैं !! और, शर्मनाक है, ये भारतीयो के अपनी बेटियों के प्रति संवेदनशील भावना का दोहन कर रही हैं !! भारतियों को सावधान रहने की जरूरत है, दिल्ली की महिला चाहे वो कहीं से आयी हो, भारत के किसी अन्य स्त्री जैसा कत्तई नहीं है इसलिए उसके लिय अधिक आवेशित ना हों.
बाकि, उन्हें भी सजा मिलेगी ही !!!
बड़ा आश्चर्य है, बिना सबूत के देश के खिलाफ आतंक का षड़यंत्र रचने वालों को छूट दे देनी वाली भारतीय कोर्ट बिना सबूत के मात्र सीबीआई के हाथ पर उन्ही माता-पिता को सजा देना जिन्होंने ने अपनी एकमात्र संतान खो दी है ..यह बेहद रोषकारी एवं शर्मनाक है ..
और देखें तो यह एक विदेशी महिला का खेल लगता है जो अपने यूरोपियन, अतिमहिलावादी और उच्छृंखल एजेंडो को इस देश पर सरकारी एजेंसी द्वारा थोप रही है, यह साफ़ साबित करता है की यह पूरी सरकार मात्र भारतीयता का विध्वंस करने के लिए ही काम कर रही है!!
अभी कइयों का न्याय बाकी है ………………….!!

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