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सामाजिक-मानविक प्रज्ञा, विकास-संतुलन और न्याय के सिद्धांतो पर जनहित के कार्यो को कार्यान्वित करना भारतीय नेताओ ने कभी सीखा ही नहीं है.
सामाजिक हो या राष्ट्रीय हित के निर्णय सबमे ये भारतीय नेता स्थापित मूल्यों, सिद्धांतो, धर्म और न्याय को तिरोहित कर मात्र राजनैतिक गुना गणित के लालच में ही फंस जाते हैं! देश की स्वाधीनता (? जिस पर वैसे तो एक बड़ा सवाल है!) को लगभग सत्तर साल हो चुके पर देश को गढ़ने वाले महत्वपूर्ण क्षेत्र यानि शिक्षा और स्वस्थ्य के साथ अभी भी क्षुद्र, निर्दयी, तिरस्कृत रूप में ही व्यव्हार किया जा रहा है.
भारत की जनसँख्या बड़े भयावह मुद्रा में, जो अन्यान्य विमर्श का मुद्दा है, १२५ करोड़ से अधिक (इतना तो सरकार का कहना है!!) हो चुकी है I इसके सम्बन्ध में भारत सरकार के पलायनवादी रवैये की बात तो हम कभी और करेंगे पर अभी बात इस जनता को समुचित खाद्य, शिक्षा और स्वास्थ्य मुहैया करने की इस सरकार की इच्छाशक्ति और कार्यान्वयन के बारे में कुछ बात करते हैं! सवा अरब के देश में सबके लिए भोजन, बिजली, पानी की अगर बात न भी करें तो सबसे मानवीय और प्रथम आवश्यक -स्वास्थ्य सुविधा देश के किसी भी औसत नागरिक की पहुँच से अभी तक कोसो दूर ही है ! भारत के साढ़े छः लाख गावों में मूलभूत स्वास्थ्य तंत्र अभी भी आसमान की कौड़ी है. संख्या की गणना के तौर पर ही जनसँख्या एवं चिकित्सक अनुपात में ही मानित २००० (सामान्य विकसित देशो के मानको पर) की जगह ६००० है जो वास्तव में १००००० (शहरी केन्द्रीकरण के कारण)से ऊपर ही है!! देश में १६७ सरकारी और उससे कहीं अधिक लगभग २०० निजी चिकित्सा संसथान हैं. लगभग सारे सरकारी संसथान आज से दस साल से पहले ही बने हैं यानि सरकार के पाले हुए एम् सी आई या स्वास्थ्य मंत्रालयों ने निजी खिलाडियों को चिकित्सा शिक्षा की महती जिम्मेदारी उपहार में बाँट दी है! ये सर्कार के महत्वपूर्ण क्षेत्रो में अपनी जिम्मेदारी से भागने का प्रत्यक्ष उदाहरन है!! लगभग ३२००० चिकित्सा स्नातको को सरकार (!?) पैदा तो करती है पर न उनकी समग्र गुणवत्ता, यानि प्राइवेट कोलेजो की, को नियंत्रण कर (पा-)ती है और न ही इन कुशल पेशेवरो को उनके उपयुक्त स्थानों में नियुक्त कर पाती है.
चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा सुविधा का एक विशिष्ट वर्गीकरण होता है. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान जैसे संसथान सबसे ऊँची सीढ़ी पर होते हैं जिनका काम मात्र चिकत्सा सुश्रुसा ही नहीं होता वरन चिकित्सा और स्वास्थ्य की शैक्षिक, सांगठनिक, अकादमिक, अनुसंधानिक आदि प्रणालियों में निति व नेतृत्व प्रदान करना भी होता है.अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान या “एम्स” मात्र रोगी के उपचार की सबसे गहन-गूढ़ प्रणाली ही नहीं है अपितु सर्वाधुनिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से सबसे बेहतर अनुसंधानों को देश के लिए काम में लाना इनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है!
आज दिल्ली का का एम्स लगभग बर्बाद हो चूका है मात्र रोगियों के अतिशय बोझ से! और १२५ करोड़ की वृहद् जनसँख्या पर एक ही एम्स है और बस चार अन्य उच्चतम चिकित्सा केंद्र!!
देखने वाली बात ये है उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश की कुल लगभग ३० करोड़ की जनसँख्या पर मात्र दस चिकित्सा महाविद्यालय और कोई एम्स नहीं है जबकि देश की राजधानी दिल्ली की अकेले १.३ करोड़ की जनसँख्या पर एक एम्स सहित १० मेडिकल कॉलेज (मात्र सरकारी, प्राइवेट अलग!) और लगभग डेढ़ सौ अस्पताल उपलब्ध, वो अलग हैं !! अगर बिहार छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्यप्रदेश को भी इस आंकड़े में सम्मिलित कर ले तो स्थिति अत्यंत विषम हो जाती है. सोचने वाली बात है की देश की सबसे धनी और सबसे सुविधासंपन्न(औसत व्यक्ति आय, मूलभूत सुविधा उपभोग, जीवन गुणवत्ता स्तर, वाहन व्यक्ति अनुपात दिल्ली में सर्वाधिक है !) जनता के लिए कई गुना अतिशय स्वास्थ्य सुविधा और लगभग पूरे मध्य उत्तर भारत के लिए मिलकर कुल उतनी ही व्यवस्था !!! क्या इन सबसे गरीब राज्यों के बदहाल लोगो को दिल्ली की जनता के मुकाबले कम बीमारी होने की सम्भावना होगी? क्या उन्हें कम सुविधाएँ दी जनि चाहियें या क्या वो कमतर नागरिक हैं??
फिर, हम देखें तो पाएंगे की सारे के सरे चिकित्सा कॉलेज मात्र किसी राजनैतिक राजधानी में ही स्थित हैं चाहे वो राज्य हो या केंद्रीय राजधानी. और इन सभी जगहों पर नेताओं के लिए विशेष व्यवस्था होती है. बाकि जनता को प्राइवेट या अन्य चारो के भरोसे छोड़ दिया जाता है!
साफ़ है की राज्यनिहित अधिकारों का ये नेता अवैध प्रयोग अपने ऐशोआराम के लिए करते हैं और सामान्य जनता के लिए निष्ठुर हो जाते हैं I
दिल्ली में स्थित एम्स में सत्तर प्रतिशत रोगी उत्तर प्रदेश और बिहार आदि से आते हैं. आखिर क्यों है इतना भेदभाव? कौन बना रहा है उत्तर प्रदेश और बिहार को बीमार राज्य?
क्यों छोड़ा गया है इतनी बड़ी जनसँख्या को सड़क छाप हकीमो, झोला छापो और गंवार मौकापरस्तो के हाथो फंसने और मरने को ?
क्या हम जानते हैं उत्तर प्रदेश और बिहार(समग्र प्राचीन) को? ये वो गंगा प्रक्षेत्र हैं जहाँ विश्व के सर्वप्रथम एवं विश्व प्रसिध विश्विद्यालय रह चुके हैं जिन विश्वविद्यालयो ने समूचे विश्व को शिक्षित किया है*, जिस काशी की गोद में आयुर्वेद यानि विश्व की पहली चिकित्सा प्रणाली और चिकित्सा शिक्षा और अनुसन्धान को सुश्रुत, चरक, पतंजलि, जीवक आदि कई महान भारतीय मनीषियों ने संपुष्ट किया है. यहीं स्थित है तात्कालिक विश्व के सबसे बड़े ज्ञान केंद्र में से एक नालंदा विश्विद्यालय जहाँ कौन सी विधा न पढ़ी, पढ़ाई और न गढ़ी गयी?
गुलामो के देश ने गुलामी के केन्द्रों में अपने ठिकाने बनाकर अपनी आत्मा के केंद्र को भूल गए.
यही काशी है जहाँ दुनिया की पहली शल्य चिकित्सा हुई, जहाँ भैषज, रसायन औषध विज्ञान और पुनरुत्पन्न की क्रियाओं का सृजन और उन्नयन हुआ… और आज यही क्षेत्र सबसे पिछड़े बना दिए गए हैं.
काशी तो धर्म, ज्ञान, चिकित्सा, जागरण, राष्ट्र चेतना का केंद्र है और केवल इसीलिए ही नहीं यहाँ एम्स होना चाहिए..
लखनऊ और पटना दोनों में एम्स जैसे संसथान पहले से हैं बल्कि इन दोनों शहरो में कई कई हस्पताल और मेडिकल कॉलेज हैं जबकि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में एक भी ढंग का चिकित्सा संसथान क्या कहें अदद मेडिकल कॉलेज तक नहीं है!
वाराणसी में स्थित आई एम् एस यानि चिकित्सा संसथान वास्तव में भेड़ की खाल में चूजा है, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में यह तथाकथित चिकित्सा संसथान मात्र एक विभाग है जिसे मेडिकल कॉलेज की मान्यता भी प्राप्त नहीं है और जिसे धोखे, चालबाजी और झूठी जानकारी के ऊपर चलाया जा रहा है. लगभग २५ करोड़ की जनसँख्या को चिकित्सा सुविधा देने वाला यह हस्पताल राजनीती के हाथो विवश है! कैसे?
सर्वप्रथम, अन्य ३५० मेडिकल कॉलेजों जैसे यह आई एम् एस स्वाथ्य मंत्रालय की विधानों और मान्यता के अंतर्गत नहीं आता..यहाँ एक ऐसा हस्पताल है जहाँ रोगियों के लिए जरूरी दवाइयां क्या रुई का टुकड़ा(गौज़ पीस) तक उपलब्ध नहीं है.. वास्तव में यह किसी चिकित्सा संस्थान का भूत’ मात्र है जिसकी लाश पर विश्वविद्यालय के अधिकारी और करता धर्ता अपनी झोली भर रहे हैं !! और जिनको दिल्ली की केंद्र सरकार का पूरा समर्थन मिलता रहा है. क्योंकि पिछले आने वाले सभी कुलपतियो और क्षेत्रीय नेताओ ने एम्स का शगूफा छोड़कर मात्र अपनी जेब ही भरी है या फिर राजनीती का स्वांग करा !
बनारस के इस तथाकथित एम्स की वार्षिक अनुदान राशी है ५ करोड़ जबकि दिल्ली के एम्स की है ११०० करोड़!! इस राशि में विदेशो, गैर सरकारी संस्थाओं, संस्थानिक प्रोजेक्ट्स इत्यादि में मिलने वाली राशि शामिल नहीं है!!!
सच्चाई यह है की आई एम् एस को चलाने वाले फैकल्टी और तंत्र विश्विद्यालय अनुदान आयोग के प्रावधानों के तहत आते हैं नाकि स्वाथ्य मंत्रालय के, जिसका चिकित्सा शिक्षा से कोई लेना देना नहीं है! और सच्चाई यह है की समूचे चिकित्सक शिक्षक मंडल की मांगो को अनसुना करके अकादमिक और प्रशासनिक एकनिष्ठता और चिकित्सा संसथान के अनुरूप व्यवस्था को लागू करने के सभी अधिकारिक और जन्प्रतिनिधिक आग्रहों को नकार दिया गया है!
एक राजनीतिज्ञ महामना मालवीय की राजनैतिक पहचान को बचाए रखने के नाम पर एक महत्वपूर्ण जनोपयोगी संसथान का गला घोंटा जा रहा है!!
और रायबरेली में एम्स का विचार हर तरह से भर्त्सना के लायक है.. मात्र २० किलोमीटर की दूरी पर संजय गाँधी जैसा स्नातकोत्तर संसथान और लखनऊ में लगभग दस सरकारी और प्राइवेट कोलेजो और किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के होते हुए भी रायबरेली जैसी जगह में एम्स खोलना राजनैतिक चाटुकारिता, निकृष्ट हठधर्मिता और उत्तर प्रदेश की जनता खासकर पूर्वी उतरप्रदेश या पूर्वांचल की जरूरतों और जनाकाक्षाओं पर धृष्ट कुठाराघात है I
इस कदम का हर प्रकार से विरोध होना चाहिए और हम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कोंग्रेस सरकार के इस मनमाने निर्णय के समर्थन की भर्त्सना करना चाहते हैं !
ये सबके जानने वाली महत्वपूर्ण बात है की देश में हर कोने में एम्स बनाने की योजना भी इस सरकार की नहीं थी, एनडीए की एम्स बनाए वाले केन्द्रों की प्रथम सूची में बनारस के चिकित्सा संसथान का भी नाम है इसके बावजूद अब भी इसे नजरंदाज करना निस्संदेह अत्यंत शोचनीय है!
वैसे, जनसँख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कम से कम तीन एम्स होने चाहिए– जिनकी आदर्श स्थिति झाँसी-बुंदेलखंड क्षेत्र, गोरखपुर या समीपवर्ती और सबसे पहले वाराणसी में उत्तर प्रदेश के पहले आयुर्विज्ञान संसथान की स्थापना होनी चाहिए..
सही तो यही है की पूर्वांचल और बुंदेलखंड ही इसके पहले हक़दार हैं.. मैं उत्तर प्रदेश के मुखिया श्रीमान अखिलेश यादव, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, राइबरेली की सांसद श्रीमती सोनिया गाँधी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री गुलाब नबी आजाद से दैनिक जागरण के माध्यम से सविनय अनाधिकारिक प्रार्थना करता हु की उत्तर प्रदेश में एम्स वाराणसी में बनाया जाना चाहिए नाकि रायबरेली में ! मैं भाजपा संगठन और नेता श्री नितिन गड्करीजी, श्री राजनाथजी, तथा अन्य भाजपाई, सपाई नेताओ से आग्रह करता हु की वो भी इस मुहीम में पूर्वांचल की अनाथ जनता का साथ दे जिसकी आवाज उठाने के लिए आज कोई नेता भी अस्तित्व में नहीं है !!
मैं वाराणसी के सक्षम सांसद महोदय श्री मुरली मनोहर जोशी से भी निवेदन करता हु की वो एम्स को वाराणसी नगरी में लाने का प्रयास प्रारंभ करें.. आखिर पूर्वांचल की इस भावी राजधानी को अपनी पहली सौगात तो मिलनी ही चाहिए! वाराणसी आज भी समूचे विश्व यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया से लेकर पूरे एशिया और साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप से लाखो पर्यटकों और अनुसंधानियो का आकर्षण केंद्र है पर उनके लिए यहाँ उपयुक्त स्वास्थ्य व्यवस्था शर्मनाक रूप से नदारद है! नेपाल से लेकर मध्यप्रदेश और बिहार,छत्तीसगढ़ से लेकर लखनऊ तक आने वाले करीब ३० करोड़ की टार्गेट जनसँख्या के रोगियों के होने वाले कष्ट की समस्त व्याख्या तो यहाँ की ही नहीं जा सकती !!
पूर्वांचल के ये क्षेत्र मष्तिष्क ज्वर, काला आजार, अन्धता, कुपोषण इत्यादि के अलावा अत्यधिक मातृत्व मृत्य दर, शिशु मृत्यु दर सहित अन्य भीषण स्वस्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं! उत्तर प्रदेश के पिछड़े होने और रुग्न होने में इस स्वास्थय कुव्यवस्था का बहुत बड़ा हाथ है, अब इससे सब कुछ तो ठीक नहीं होगा पर उस दिशा में ऐसे संसथान का आ जाना एक शुभ शुरुआत होगा I और इसलिए अब इस और ध्यान देना आवश्यक हो गया है!
मैं आशा करता हु, और जिस माध्यम और साधन से मैं प्रयास कर सकता हु, समस्त उत्तर प्रदेश, विशेषकर पूर्वांचल के जागरूक नागरिको से अनुरोध करता हु की वो केंद्र सरकार-प्रधान मंत्री कार्यालय, स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री को पत्रादि लिखकर अपनी इस मांग को दृढ़ता से रखें.. मैं दैनिक जागरण का भी आभारी हु उनकी सजगता और कर्त्तव्यपरायणता उल्लेखनीय है, पर अब वाराणसी में एम्स यानि आयुर्विज्ञान संस्थान का होना परमावश्यक है और उसके लिए अब समस्त जनता का समग्र गंभीर प्रयास भी अत्यंत आवश्यक है!!
मांग यही है की हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थित आई एम् एस को ही आयुर्विज्ञान संस्थान में “अपग्रेड” किया जाये… आशा है की विश्व विद्यालय के कुलपति महोदय मात्र खानापूर्ति ही नहीं, और इस संस्थान को एम्स बनाने के जन प्रयासों को गंभीरता से सहयोग करेंगे!
डॉ स्कन्द स. गुप्त .
काशी.
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