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सत्यमेव जयते…. कुछ और सत्य -३

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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आमिर खान ने कुछ टूटे फूटे वास्तविक तथ्यों की एक संगीतमय झूठी कहानी बनायीं है या ये बात हो सकती है की उन्हें हर चीज पूरी मालूम नहीं I ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में दवा लिखने के लिए कमिशन और “जेनेरिक” दवाओ के अनैच्छिक प्रयोग की बात बताई गयी I
पहले तो ये जानना जरूरी है की एक डाक्टर का काम मात्र दवाई लिखना होता है और उस परामर्श पर्ची पर निर्देशित सूचि के हिसाब से दवाई विक्रेता यानि केमिस्ट को सही दवाई रोगी को देनी होती है, बिना दवाई के इलाज नहीं हो सकता ये भी हम सब जानते हैं I
आज फार्मा की लगभग बीस हजार कम्पनियाँ हैं जो कुछ हजार दवा संघटक या साल्ट बनाती हैं अब इन दवाइयों को बेचने के लिए बेहिसाब दुकाने नहीं हो सकतीं, इसलिए सीमित दुकाने होती हैं और जब दुनिया में मरीजो की संख्या अधिक होती ही जा रही है तो बिना दवाइयां लिखे इलाज भी नही किया सकता !!
अब, वही दवाई अगर कई दुकानों पर है तो वो दुकान केवल अपनी दुकान से ही बेचने के लिए डाक्टर से आग्रह कर सकता है इसके अलावा हर दुकान पर हर दवा नहीं मिलती (हर दवा की अपनी विशेषता, आवश्यकता, खास गुण होते हैं).. इसके अलावा एक तरह की दवा कई कम्पनियाँ बनाती हैं तो कोई कंपनी डाक्टर से एक दवाई के लिए आग्रह कर सकती है इसीलिए वो अपने लाभांश का एक भाग खर्च करती है . अब, इसमें ये जान लेना जरूरी है की ये सब होने का मतलब ये नहीं है की डाक्टर दवाई गलत लिखता है या मरीज को दवाई आवश्यकता से अधिक मात्रा में दी जा रही है.. इतना तो मूर्ख भी समझ सकता है की एक जानकार डाक्टर कभी भी दवाई निर्देशित मात्र से अधिक दे ही नहीं सकता क्योंकि औषधि की अति मात्रा विष यानि जहर के समान होती है और, डाक्टर अपने ही मरीज को खतरे में डाल जिसका जिम्मेदार पूरा पूरा जो खुद होता है, अपनी पेशेवर जिंदगी की हत्या क्यों करेगा? कम से कम एक सजग, स्थिर, क्षेत्र में स्थापित असली (यानि अच्छे सरकारी संसथान से पढ़ा प्रशिक्षित) डाक्टर को कत्तई नहीं कर सकता !!
आइये अब जानिए ये जिस दवा, जो हमें बड़े आराम से मिल जाती है, जिस को हम महंगा बताते रहते हैं वो आती कहाँ से है? औषधि या मेडिसिन कोई पेड़ का फल नहीं होता जो कही भी मिल जायेगा.. या जमीन से आलू की तरह निकाल लिया जा सकता है! हर दवा किसी चमत्कारिक अविष्कार के बाद ही हमें मिल पाती है , अविष्कार जिसमे ५-१० या अधिक साल भी लड़ सकते हैं और जो सैकड़ो हजारो चिकित्सको और चिकित्सा विज्ञानियों के कई लाख हजार दिनों की कड़ी तपस्या के कारन ही संभव हो पाता है .. जानने वाली बात ये है की लगभग सारी दवाओ पर शोध, अध्ययन, अनुसन्धान, उत्पादन कुछ विकसित देशो में ही होता है ..ये कहा जाता है की मात्र एक दवा को बाजार में लाने पर कम से कम १० अरब डॉलर यानि लगभग छः खरब रुपये खर्च होते हैं और ये भी कोई जिंदगी भर के लिए नहीं कोई पांच या छः वर्षो के लिए अधिकतम.. यानि कोई कंपनी ही, जी हाँ एक कंपनी ही दवाई बनाती है, भगवान के प्रसाद की तरह दवाई नहीं मिल जाती, अरबो खर्च करके हजारो मील दूर आपतक दवा पहुंचाने में कड़ी मेहनत करती है और वो भी हर तरह की लड़ाई लड़ने के बाद.. वो भी मात्र एक या दो सालो के लिए क्योंकि अमेरिका के बैथेसडा से उत्तर प्रदेश के बलिया तक पहुँचने में कई साल भी लग सकते हैं. औषधि या ड्रग विश्व में उपलब्ध होने के बाद भी वो भारत में तब तक नहीं उपलब्ध नहीं होगी जब तक भारत का तंत्र -तकनिकी नियामक और प्रशासनिक, उसे स्वीकृति न देदे..
इसलिए ये नौकरशाही और सरकार के हाथ में होता है की बाजार में उपभोक्ता रोगी तक पहुँचते पहुँचते दवा की कीमत कितनी होगी ? डाक्टर का काम रोगी के लिए सबसे कारगर और उपयोगी दवाई लिखना होता है वो सस्ती हो या महंगी ये निश्चित करना पूरी तौर पे सरकार का काम होता है.. इससे आपको ज्ञात हो जायेगा की अनुसंधानियो और चिकित्सा वैज्ञानिको की जन्दगी या उससे भी बड़ी कुर्बानियों और तपस्या का सारा लाभ राजनीतिग्य और दवाई कम्पनियाँ ही उठाती हैं ! इसके बावजूद यह कृतघ्न देश डाक्टरों को ही दोषी बनाने पर तुला हुआ है !
पर चिकित्सक तो आज भी इस देश की गरीब जनता को चिकित्सा परामर्श और दवाइयां अत्यंत कम व्यय पर देकर ही खुश है;;;;
पर इतना नुकसान उठाना हर डाक्टर के बस की बात नहीं हो सकती …आखिर देने के लिए आपके पास होना भी तो चाहिए..
और सरकारी संसथान से पढ़े चिकित्सक सामान्यतया सामान्य घरो के ही होते हैं तो फिर वो किस प्रकार लाखो करोडो का व्यय वहन कर सकते हैं ? ये तो या व्यापारी कर सकते हैं या फिर सरकार… और व्यापारी पैसा लगाएगा तो मुनाफा भी लेना चाहेगा तो बची सरकार पर आज तो सरकार ही खुद ही सबसे बड़ी व्यापारी है I
जहाँ सरकार को चिकत्सको की राय शुमारी से निति निर्धारण करना चाहिए वो अव्यवस्था मचा कर कंपनियों को छूट देकर खुद ही सबसे बड़ा मुनाफा खोरी करती है और जनता के प्रति अपने प्राकृतिक- कर्त्तव्य से पीछे हट जाती है!!
जहाँ तक बात जेनेरिक दवाइयों की बात है इन दवाइयों को खुद कम्पनियाँ ही नहीं बनातीं… दुसरे इन दवाइयों की गुणवत्ता का ध्यान न रखकर सस्ता रखने पर जोर रखा जाता है …
अगर देश में यही सस्ती दवाये मिले और हम आधुनिक दवाओ को भारत में आने ही न दें और कोई विकल्प न हो तो डाक्टर भी बस यही दवा लिखेगा..तो क्या आप अपने या अन्य देशवासियों के स्वास्थय से खिलवाड़ करने को तैयार हैं वो भी पैसा बचाने और अपनी मूढ़ता की कीमत पर?
जब, बाजार में कौन से दवाई बेचीं जानी है, कितनी बेचीं जानी हैं, कब तक बेचीं जानी है यह निर्धारण भी डाक्टर नहीं करता तो फिर उसे दोष देने का कारन?

बड़ा ही शोचनीय है, आज झूठ बोलकर अपना उत्पाद बेचने वाले (गोरा करने वाली) क्रीम, पाउडर, (कीटनाशक मिला) पेय, (मिलावट वाला)मसाला, (एक करोड़ वाइरस मारने वाला-) जल शोधक आदि अन्य हर चीज बेचने के लिए जनता से अरबो लूटते हैं पर जनता को उनसे कोई शिकायत नहीं… उसी बाजारू उत्पाद जैसे कोल्ड ड्रिंक, दूध, गोश्त, मखन, वसा इत्यादि का सेवन कर लोग बीमार हो सकते हैं और होते हैं पर फिर भी अपना या अपने आश्रितों का इलाज करने में हुए खर्च को वहन करना नहीं चाहते… ये बड़ी अजीब बात है!
बात सच्ची तो ये है की हम अपनी जिंदगी में स्वस्थ्य को कोई स्थान देना नहीं चाहते.. इसका कारन यह है की हम सपने में भी नहीं सोचना चाहते की कभी हम बीमार भी पड़ें, यह स्वाभाविक है और हम सभी यही चाहते हैं की हम कभी बीमार न पड़ें.. पर, अगर ईश्वर ने देह दी है तो उसमे विकार भी दिया है और उसमे, हमारे न चाहने के बावजूद, व्याधि रहेगी ही. पर, हम नहीं चाहते और इसीलिए हस्पताल या डाक्टर के नाम से हमें एक चिढ होती है या हम सफ़ेद कोट को देखना भी नहीं चाहते.. सच भी है, कौन दुःख और रोग के परकालो को देखना चाहेगा भले ही वो परकाल रोग और दुःख कम करते हों? और तब तो कत्तई नहीं जब जीवन में आनंद लेने के लिए अन्य भी सामान उपलब्ध हो और जोरशोर से हो?
इसीलिए, हर भारतीय, सबकुछ नियोजन करता है पर स्वस्थ्य को सबसे पीछे रखता है …और यही काम हमारी आपकी भारत सरकार करती है… १% स्वास्थ्य बजट जो कई छोटे फिस्सड्डी देशो से भी कम है इससे ही मालूम चल जाता है की हमारी और हमारी सरकार की प्राथमिकतायें क्या हैं.. तो मनोरंजन, शराब, सिगरेट इत्यादि पे तो जमकर पैसे लुटाये जाते हैं पर अपनी ही जनता को, जिसे ऐसे तो कुछ सरकार से मिलता भी नहीं, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकता भी पूरी नहीं मुहैया की जाती है. विश्व क्या देश में ही असंख्य उदहारण हैं जहाँ थोडा व्यय करके अधिसंख्य गरीब या माध्यम आय परिवारों को स्वास्थ्य बीमा दी जा सकती है.. पर सरकार को इस्की फिकर नहीं है.. वो तो बस डाक्टर बनाकर उन्हें असहाय छोड़ देने में ही स्वस्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन समझती है प्रौद्योगिकी हो या चिकित्सा अपने ही पेशेवर को समुचित रूप से इस्तेमाल करना तो उसे आता भी नहीं.. कैसे आयेगा जब अंगूठा छाप लोग आप पर शासन करेंगे तब तक आप नीरीह और बीमार बने रहेंगे.. ये सरकारी अधिकारी तो डाक्टरों द्वारा दी गयी अधिकारिक विज्ञप्तियो और आग्रहों को भी नकार देते हैं!!
इक्कादुक्का अपवादों के बावजूद आज भी हर डाक्टर पूरी ईमानदारी के साथ सबसे बेहतर इलाज और वो भी नाममात्र के व्यय पर भारतीय जनता को देने की कोशिश करता है .. पर फिर भी जनता के सामने उसकी खराब छवि पैदा की जा रही है.. क्यों? क्योंकि मीडिया तो उसका गान करता है जिससे उसे कोई लाभ होता है… जैसे? जैसे की, फिल्म बनाने वालो का सबसे बड़ा एजेंट या दलाल तो मीडिया ही होता है..अपने सुना भी होगा चाय पार्टी और जेब भारी के बाद विश्लेषण और रेटिंग लिखे जाते हैं.. युहीं भी उन्ही फ़िल्मी कहानियो से इस मीडिया का समूचा जीवन निर्वाह चलता है … उसी तरह से राजनीतिज्ञों की रास लीला से भी मीडिया के “कुछ ” महानुभावो का बहुत भला होता है पर, किसी डाक्टर से उसे क्या लाभ? पर चोंच चलाने का काम तो उसे करना ही है सो किसी न किसी को खोजकर उसका शिकार करता है..
हा, पर ऐसा नहीं है की हर डाक्टर एक जैसा आदर्श ही होता है.. ये मैं मानता हु, पर कोई डाक्टर जानबूझकर या मरीज को नुकसान पहुँचाने के लिए करता हो ऐसा शायद ही कभी होता हो. असल में ऐसा हो ही नहीं सकता.. जितना मुझे स्वयं ज्ञात है.. I
जिस तरह का प्रपंच आज चल रहा है उसको देखकर मुझे एक प्रसिद्द व्यक्तित्व की याद आती है.. कालिदास . कालिदास की तरह ही यह देश-समाज भी अपने ही रक्षको पर ऊँगली उठा कर संतुष्ट होता दिख रहा है I इससे दुर्दशा तो जनता की ही होनी है.. अगर आप जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट डालेंगे तो कोई आश्रय नहीं बचेगा.. I इस तरह का शत्रुता पूर्ण व्यव्हार चिकित्सको को अपनी ही जान बचाने को विवश करेगा.. चिकित्सक अब संयत-निश्चिन्त होकर मरीज की जान बचाने के लिए जान नहीं लड़ा पाएगा, अब वो इलाज करने के नए नुस्खे नहीं अपनी जान बचाने के लिए तिकड़म ढूंढेगा.. जिस तरह के झूठ की इस मूढ़ जनता को आदत हो चुकी है वो ही करने पर एक डाक्टर भी मजबूर हो जायेगा.. अगर जिस दिन ऐसा सभी डाक्टरों न सोच लिया तो मुझे डर है की हमारी अपनी गहरी क्षति होगी .. अगर कोई ये समझता है की डाक्टरों को इस तरह से धमका कर या डरा कर हम उनसे अपना काम ठीक से करा सकते हैं, अगर हम सोचते हैं की डंडा मारने से गाय अधिक दूध देगी या अधिक चाबुक चलाने से कोई घोडा रोकेट बन जायेगा तो ऐसी सोच हमारा दूरगामी गहरा नुकसान ही करेगी..
शिक्षा, ज्ञान, परामर्श और इलाज धमकी से नहीं मिल सकता.. जैसे डरा धमका कर प्यार और सम्मान हासिल नहीं किया सकता उसी तरह से किसी चिकित्सक से मरीज के प्रति उसके ज्ञानपूर्ण उच्च कोटि के उपचार को नहीं पाया जा सकता.. यह कमसे कम मैं अपने बारे में कह सकता हु ..वो जिसने कभी भी गलत आचरण नहीं किया है किसी से कमीशन या पैसे लेने की बात तो दूर है और ऐसा ही मैं अपने संसथान के जानने वाले अपने सभी मित्रो, कनिष्ठो और वरिष्ठ सह-कर्मशीलो के बारे में कह सकता हु..
जिस तरह से डाक्टर पर कुतर्क देकर और झूठी दलील देकर हमले बढ़ रहे हैं उससे डाक्टरों को भी अपनी सुरक्षा के बारे में खुद ही सोचने को मजबूर किया है.. पर, सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की जगह उनसे ही उगाही करने का तिकड़म रच रही है.. ये बेहद खतरनाक स्थिति है. हम सोच सकते है की जैसे इमानदारो की इस देश में कोई जिंदगी नहीं है उसी तरह से सरकारों को अवैध उगाही न सहने वाले डाक्टरों पर नया नर्सिंग बिल थोपने से चिकत्सा व्यय में बेतहाशा बढ़ोत्तरी होगी.. पर सरकार तो इसमें भी डाक्टरों का ही दोष निकल लेगी और मीडिया उसकी हाँ में हाँ मिलाएगा.

होना तो यही चाहिए की सरकार हर डाक्टर को अपना हस्पताल या क्लिनिक खोलने में सहायता करे ताकि डाक्टर भी बिना विवशता के जन कल्याण का स्व कार्य कर सके..

ये भी बड़ा ही विस्मयकारी दुःख है की लोग (कई लेखो में) बिना अनुभव या दृष्टान्त के (मीडिया के दुष्प्रचार और अल्पज्ञान के कारन !) डाक्टरी पेशे पर बेवजह ऊँगली उठाने में तत्पर हो रहे हैं कोई कहता है डाक्टर बेवजह दवाई लिखकर खूब पैसे बनाता है, कोई कहता है डाक्टर ऑपरेशन में तौलिया छोड़ देता है, किडनी चोरी कर लेता है इत्यादि इत्यादि…. इसपर हंसा जाये या रोया जाये? मुझे याद नहीं आता इस तरह की वास्तविक सच खबर मैंने कब देखि थी? हा ऐसा फिल्मो, कार्टूनों में तो अक्सर दिखाया जाता है..! हा एक गुडगाँव का डॉ. अमित कुमार याद आता है ..ये डाक्टर भी कोई असली डाक्टर नहीं था बल्कि बिहार से फर्जी डिग्री लेकर आया डाक्टर था.. अब कौन कौन से बाते समझाई जाएँ?

गहराई से देखने पर यही लगता है की मीडिया या लोगो का तरीका कमियों की सुधार के लिए जिम्मेदार कारणों को सुधारने की मांग करना नहीं है वरन चिकत्सको को अपमानित करना है क्योंकि वो खुद के नहीं कही और से सुने या मान्यताओ के आधार पर बटोरे हुए हैं.
गंभीरता इसी बात से परिलक्षित होती है की आज यह मीडिया तो आयुर्वेद, यूनानी इत्यादि करने वालो को भी डाक्टर करके की संबोधित करता है, झोला छापो को भी “डाक्टर” ही बता देता है.. बिना किसी गुण अथवा डिग्री के अलंकारिक मानद उपाधि-डॉक्टरेट पाए लोगो को भी “डाक्टर” ही बना देता है
आज रोज ही कई प्राइवेट कोलेजो से ऐसे ही कितने अमित कुमार निकाल रहे हैं. अब, ऐसा नहीं है की कोई डाक्टर गलती करता ही नहीं होगा पर गलत हम उसे डाक्टरी पैमाने पर ही ठहरा सकते हैं पर ऐसा आज होता नहीं.. और चाहे आमिर खान या किसी और के आरोपों पर पहले तो जाँच होनी चाहिए की वो आरोप सही भी है.. जैसे आंध्र प्रदेश का बच्चेदानी ऑपरेशन घटना ..हर घटना के पीछे सच्चाई बताई जा सकती है और वास्तविक चिकित्सीय रिपोर्ट दी जा सकती है.
वास्तव में इन तथ्यहीन आरोपों को देखकर तो यही लगता है की लोग अपनी व्यथा नहीं कह रहे बल्कि समय बिताने के लिए डाक्टरों का चरित्र हनन और उसकी गरिमा गिराने का कुचक्र कर रहे हैं खासकर जब इससे उनको लोकप्रियता और आमदनी मिल जाये तो!!

कुछ लोगो को सरकारी हस्पतालो की और सरकारी डाक्टरों की छीछालेदर में भी आनद आने लगा है और ये मीडिया के महाज्ञानी विदेशो की संख्याआंकड़े और वहां के वैभव ऐश्वर्य का बखान और उससे तुलना में भारतीय चिकित्सको की भी खिल्ली उड़ाने में पीछे नहीं रहते I भारत के सरकारी हस्पताल दुनिया के ऐसे चिकिसा संसथान हैं जो उच्च गुणवत्ता की उपचार सेवा कहीं कम माटी-तुल्य वेतन या खर्च पर देते हैं I
वहीँ, प्राइवेट और सरकारी हस्पतालो की तुलना में और भी कई बातें हैं जैसे, जहाँ प्राइवेट हस्पताल अपना मरीज चुनते हैं वहीँ सरकारी हस्पताल किसी भी मरीज को वापिस नहीं कर सकते.. ये सही है की कार्पोरेट हस्पतालो से इलाज का खर्च कई गुना बढ़ गया है पर लोग सरकारी हस्पतालो में इलाज करवाना भी स्टेटस सिम्बल से निचे मानते हैं.. तो इसमें किसी औसत डाक्टर का क्या दोष?

सरकारी डाक्टर के लिए न तो कार्य की कोई अवधि (वर्किंग आवर्स) है, न उसके सामर्थ्य और सेवा के बराबर वेतनमान है, इसके अलावा प्रशासकीय और अन्य दबाव किसी भी अन्य देश और क्षेत्र के मुकाबले कई गुना अधिक है इसके बावजूद भी उसकी नहीं सुनी जाती.. दिल्ली का सफदरजंग हस्पताल दुनिया का सरकारी क्षेत्र का सबसे बड़ा हस्पताल है जहाँ हर साल २३ लाख तक मरीज इलाज करवाते हैं.. बावजूद इसके की यह हस्पताल चिकित्सक, अन्य मानव संसाधन और सहायक कर्मचारियों की भीषण कमी से जूझ रहा है पर सरकार की तो जिद ही है उपेक्षा करने में

अब आमिर खान जैसे अंगूठा छाप, शालीन वेश्यावृत्ति करने वाले मसखरे, (मैं मानता हु की वो बड़े सुकुमार, ग्लैमरस लगते हैं और बड़े लोकप्रिय भी हैं) डाक्टर को यह सिखा रहे हैं की सबसे उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण लेने वाले के बाद उसे पैसा नहीं कमाना चाहिए, जो व्यक्ति ४ करोड़ प्रति दिन (एपिसोड) के हिसाब से लेता है उन जैसे नाचने मटकने वाले फ़िल्मी कलाकार जो बिना किसी योग्यता के करोडो हजम करते हैं (और देश-समाज के लिए उनका योगदान कुछ नहीं होता) उनके मुंह से तो ऐसी बात थोथी लगती है I

डाक्टर को पैसा क्यों नहीं कमाना चाहिए? क्या डाक्टर किसी की हत्या करता है, या दलाली करता है, या फिल्मकारों की तरह वेश्यावृत्ति, अश्लीलता फैलाकर पैसा कमाता है? या माफिया, संसाधनों की चोरी या फिर नेताओ की तरह राष्ट्रीय धन की लूट से तिजोरी भरता है?
क्या डाक्टर किसी के गले पर चाकू रखकर इलाज करता है या उन्हें बीमार होने पर मजबूर करता है?
पैसा कमाना बुरी बात नहीं है और किसी की स्वस्थ्य रक्षा करके या किसी को शिक्षित करके पैसे कमाना तो सबसे पुनीत-पुण्यदायक (तरीका) है (बावजूद इसके की मैं स्वयं पैसा पैदा करने का काम नहीं करता!!) पैसे कमाने का, खासकर तब जब साथ में समाजसेवा का भी काम चलता हो, जी हा मेरे कई वरिष्ठ व मित्र बिना प्रचार के समाज में परोपकार के काम करते रहते हैं और मैं भी.
मेरे विचार में, डाक्टर पैसे कमाता है यह देखना छोड़, इलाज अच्छा करता है या नही ये देखना चाहिए और वही एक डाक्टर से अपेक्षित भी है..आप भी डाक्टर से उसकी डिग्री पूछें, उसका कोलेज पूछें, उसकी कैटेगरी पूछें, उसका विशिष्ट क्षेत्र पूछें और तब इलाज करवाएं.

पर इस देश के लोगो के लिए जिन्हें रोज इन फ़िल्मी कलाकारों को भगवान बनाकर पूजा करने का जो चरणामृत पिलाया जाता है जो इन बनावटी लोगो की खोखली चमक को भगवत सत्य मान लेते हैं उनको शायद यह बात एक बार गले से नही उतरेगी ऐसा मुझे लगता है.. पर क्या किया जा सकता है कलियुग में तो धर्म का एक ही पाद शेष होगा(चार में से), सज्जन दुर्जनों से घिरे होंगे, भ्रष्टाचार चरम पर होगा, ज्ञानियों की नहीं शुद्रो (वेश्याओं, नटो, मसखरो, मॉडल, फ़िल्मी कलाकार, पाखंडियो, पापियों , गुंडों, भ्रष्टाचारियो, मीडिया इत्यादि) का बोलबाला होगा.. और वही आज हो रहा है.

पर, इतना तो मैं कह सकता हु की जिस तरह से नदी में बहते बिच्छू को गेरुवा वस्त्र धारी साधू उसके बार बार डंक मारने पर भी डूबने से बचाने का यत्न करता रहा था उस तरह से आज भी एक चिकित्सक ईश्वर प्रदत्त इस महान कर्म को करता रहा है और करता भी रहेगा..!

बतौर चिकित्सक, हमारी हमेशा कोशिश रही है और हमारे जैसे कई अन्य चिकित्सको का यही अभियान है की सुयोग्य लोग ही चिकित्सा सेवा में आयें और इस क्षेत्र में आने के बाद पूरे पेशेवर धर्म और मानवीयता के साथ अपना कर्म करें इसके लिए हम ऐसा सोचते हैं की आईएमए या अन्य किसी संस्था को संवैधानिक जिसमे दंड विधान या अधिकारिक शक्ति हो जिससे वो स्वयं ही इस क्षेत्र में व्याप्त विकृतियों को सख्ती से दूर कर सके साथ ही हम एक ऐसा फोरम या प्लेटफार्म जनता को दे सकें जिसमे जनता की परेशानी खुद डाक्टरों द्वारा सुनी जाये और यथासंभव जनता से संवाद स्थापित किया जाये और जहाँ आवश्यक हो शिकायत को दूर किया जाये.

पर, इस काम के लिए आवश्यक है की जनता स्वयं नेता-मीडिया-पुलिस-झोलाछाप गठजोड़ पर हमला करे और चिकित्सको का हाथ मजबूत करे ताकि उनको खालिस उपचार व सेवा मिल सके.. और देश को तगड़े नागरिक I

जय हिंद!

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(आगे, चिकित्सा सेवा क्षेत्र, चिकित्सा शिक्षा, चिकित्सा अनुसंधान इत्यादि में व्याप्त विसंगतियां, व्यावहारिक कमियां और चुनौतिया)

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