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सिकंदर की जीत का सच !!

आर्यधर्म
आर्यधर्म
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हारा हुआ मनुष्य अपशिष्ट भी खाने को विवश होता है …विजयी के सामने अपने घुटने टेक उसकी हर अपमानजनक धौंस को पीने को विवश होता है… उसके हर झूठ हर गन्दगी को सर पर ओढ़ने को मजबूर होता है, प्राण को बचाने कीकीमत पर वो अपना सब कुछ दांव पर रख देता है I तलवार सच तो काटकर दफ़न कर देती है !!
आजतक भारतीयो को इतिहास में पढ़ाया गया है और आज भी पढ़ाया जा रहा है कि ग्रीक हमलावर सिकंदर या अलक्षेन्द्र ने भारतीय सीमान्त राजा पुरु या पोरस को हरा दिया और फिर उससे पूछ कि बोलो तुम्हारे साथ क्या सलूक किया जाये, तो पोरस ने जवाब दिया कि “वही जो एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है”!!
बड़े कमाल की बात है, मैसेडोनिया का यह अत्यंत महत्वाकांक्षी शासक जिसने अपने पिता फिलिप्स द्वितीय तक को, जिसने अपनी पांचवी रानी ओलम्पिया के पुत्र के लिए समूचे विश्व का सपना देखा था, भरी सभा में (पौसैनियस द्वारा) मरवा डाला था,… उस पिता को जिसने आठ रानियों के कई पुत्रो में मात्र अलक्षेन्द्र के लिए महास्वप्न देखा.. वो पुत्र जो विश्वप्रसिद्ध शिक्षकों अरस्तू, प्लेटो, इत्यादि द्वारा शिक्षित हुआ था, जिसने १६ वर्ष कि उम्र में ही युवराज बन, थ्रेस में खून कि नदियां बहा अपना साम्राज्य मजबूत बनाया, जिसने ग्रीस की प्राचीन महान सभ्यता और यूनानी नस्ल को विध्वंस करने में जरा भी शिकन नहीं दिखायी I वो जिसने परसिया या पारशीय राष्ट्र या फारस को वीभत्स रूप में विध्वंस किया, जिसने एशिया माइनर और मिश्र में अपने झंडे गाड़े और जो तात्कालिक विश्व के महानतम व सर्वाधिक ऐश्वर्यवान साम्राज्यों के समूह महा-राष्ट्र यानि राष्ट्रो के महाराष्ट्र — भारत वर्ष को पूरी लालसा से लीलने के लिए ही अपनी राजधानी पेल्ला, मैसेडोन से सिंधु की तरफ चला था .. उसने बैक्ट्रिया की ईंट से ईंट बजा दी .. बस सामने सिन्दुस्थान या भारतवर्ष ही था उसके विजय के लिए …फिर क्या हुआ ऐसा? वो सिकंदर, जिसने पारसियों की दस लाख की पैदल सेना को कुछ हजार सैनिक खोकर और यूनानियों की २०,००० की सेना को १२० सैनिक खोकर ही प्राप्त कर लिया था ..वो, जिसके जैसा रक्तपिपासु कमसेकम उसके देश के आसपास तो नहीं ही था, अपनी यूनानियों, मिस्रियों, बाल्कन (वाह्लीक), इलियरिन लडाको से भरी विशाल सेना से लैस यह अतिअकांक्षी आक्रांता, कैसे सिंधु नदी पार कर भारतवर्ष की भूमि पर उतरते ही अचानक बदल गया ? यदि ऐसी सेना जिसने मैसेडोन यानि आज का इटली से लेकर सिंधु नदी या आज के पाकिस्तान तक अपनी सल्तनत बिछायी तो फिर अचानक ही कैसे भारत के एक छोटे से राजा पर मेहरबान हो दयालुता से अभिभूत हो अपने देश वापस चला गया ? वो महान आक्रान्ता, जिसने आँख और हाथ खोलते ही १६ साल के उम्र से मानवी सिरो को धड़ से अलग करने का ही काम किया, अचानक कैसे २६ वर्ष की उम्र में साधू बन अपने देश को चला गया? क्योंनहीं आज पूरा भारत यूनानी भाषा बोलता है और कच्छा पहनता है? वो सिकंदर जिसकी घुड़सवार सेना विश्व की सबसे खूंख्वार सेना थी, जिसने भारत वर्ष के सीमावर्ती प्रदेशो में अभिसार को तटस्थ बना अम्भी को पूर्व राज्य का लालच दे एकमात्र भारतीय शूरवीर राजा पुरु को हराकर भारतभूमि पर कब्ज़ा करने का सपना संजोया था, ऐसा ह्रदय परिवर्तन कैसे हुआ उसका? क्या गंगा किनारे शीर्षासन मुद्रस्थ हिन्दू साधू की संसार की मोहमाया त्यागने की घटना ने उसको बदल दिया? आखिर क्यों राजा पुरु को हराने के बाद उस महान सिकंदर का मन पुरु की बात “मेरे साथ वो व्यव्हार करो जो एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है” मानने को कर गया?

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हमारी हर इतिहास की पुस्तक इसी प्रकार की कहानियां हमें सिखाती रहती हैं .. हम भी सिकंदर को सिकंदर महान कहते हैं ..क्यों?! मालूम नहीं … हम पूछते भी नहीं. …
१३०० वर्षों के मुगलई और अंग्रेजी शासन ने हमारी बुद्धि भी कुंद कर दी …
यूनान या यवनदेश, जिससे उत्पन्न हुआ आजका पश्चिमी समाज और खासकर अंग्रेजो का खड़ा किया गया झूठा वैश्विक साम्राज्य अपने को मानता है, वास्तव में मेडिटेरेनियन या “मध्य-धरातल” सागर के किनारे बसा ये छोटा सा जनसमुदाय भारतवर्ष से बाह्य सीमा पर स्थित म्लेच्छ राज्यों(भारतीय प्राचीन साहित्य में) में आता था .. वास्तव में इन स्थानो और आसपास के स्थानो को भारतीय आसुरी राज्य कहते थेI अलक्षेंद्र, मैसेडोन के सक्षम शासक का अत्यंत महत्वकांक्षी पुत्र था ..वह निस्संदेह कुशल लडाका था पर ये भी है के उसे पहले से ही एक बड़ा साम्राज्य विरासत में मिला था और खुद सिकंदर अत्यंत दुर्बुद्धि और आत्मकेंद्रित युवा था और इसी के कारन उसका वंश भी अपना राज्य उस सीमा तक बढ़ाया पाया I वह साम्राज्य, जो उनके स्वयं के लिए तो कलपनातीत था पर उन्हें विश्व के अधिकांश तात्कालिक विश्व पर स्थित हिन्दू साम्राज्य कि कोई जानकारी नहीं थीI हो भी नहीं सकती थी I यवन भौगोलिक इतिहासकार टॉलमी और उसी कि तरह भारत के महान राज्यो के बारे में बस सुनते ही रहते थे , जैसे “पॉलीबोथरा” कि कल्पना गंगा किनारे स्थित महान भारतीय साम्राज्य के शक्ति केंद्र पाटलिपुत्र के रूप में करना ! उसी गलती को मेंस्थानीज एवं फिरसे अट्ठारहवी शतब्दी में विलियम जोन्स इत्यादि ने दुहराया और जिसे सारे अंग्रेज, जिन्होंने एक तथाकथित महान साम्राज्य बनाया, आज तक गा रहे हैं! भारत से इतर म्लेच्छों के लिए वह साम्राज्य काफी बड़ा हो सकता था पर, भारत के लिए तो वह मामूली ही कहा जायेगा! पर वास्तव में यवन कालातीत के कई दर्जन आक्रमणो (और कुछ वर्षो के शासन) के बाद भी भारत के बारे में कल्पनाएँ ही करते थे !
पर, सन ३२७ ईसापूर्व में क्या हुआ था?
सिकंदर के बारे में विश्व के कई लोग जानते थे और हैं, पर हम आज तक नहीं जानते उसके हश्र का पता भी कइयों को है !!
सिकंदर कि सेना अपने अश्व सेना के लिए प्रसिद्ध थी और यही सेना और अपनी धूर्तता लेकर भारत को खा जाने के लिए आया था.. उसने सीमावर्ती राज्यों को अपनी तरफ भी मिला लिया और जो नहीं मिला उसको रास्ते से हटाने के लिए अपने क्रूर सेनापतियों जिसमे मेसेडोनियन लड़ाकों के साथ उसके वाह्लीक, मिश्री और पर्शियन सहयोगी भी थेI
भारत की सीमा में पहुँचते ही पहाड़ी सीमाओं पर भारत के अपेक्षाकृत छोटे राज्यों अश्वायन एवं अश्वकायन की वीर सेनाओं ने कुनात, स्वात, बुनेर,पेशावर (आजका) में सिकंदर सेनाओं को भयानक टक्कर दीI मस्सागा ‘मत्स्यगराज’ राज्य में तो महिलाएं तक उसके सामने खड़ी हो गयीं पर धूर्त यवनी ने मत्स्यराज को हत करने के बाद संधि का नाटक करके रात में हमला करके उस राज्य की राजमाता सहित पूरे राज्य को उसने तलवार से काट डाला उसमे कोई नहीं बचा.. एक बच्चा भी नहीं!! यही काम उसने दुसरे समीपी राज्य ओरा में भी किया, इसी लड़ाई में सिकंदर की एड़ी में तीर लगा, जिसको आधार बनाकर अतियुक्त सिकंदर के बड़बोले प्रशस्तिकारो ने अकाइलिस की कथा बनाई!
अब इसके आगे पौरव राज्य था जिसके राजा महाभारत कालीन कुरु वंशी के सम्बन्धी पुरु वंश के राजा पुरु थे जिसे यवन पोरस बोलते थे और सिंधु तट पर उनके विनाश के लिए यवनी सेना करीब १०-१२ प्रमुख सेनापतियों के साथ बस तैयार ही थीI अपने जासूसों और धूर्तता के बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे, पर युद्ध शुरू होते ही उसी दिन यह विदित हो गया की पौरव कौन हैं और क्या हैं? राजा पुरु के शत्रु लालची अम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने करीब ३७००० की सेना, जिसमे ७००० घुड़सवार थे, राजा पुरु की सेना जिसमे २०,००० की सेना के खिलाफ, जिसमे २००० घुड़सवार थे और कई नागरिक योद्धा थे, निर्णायक युद्ध के लिए तैयार था और जिसमे जीत के प्रति वो आश्वस्त था I सिकंदर की सेना में कई युद्धो के घुटे योद्धा थे जिसमे कई उसके विजित प्रदेशो के सैनिक भी थे जिन्हे विजित राज्यो को विद्रोह से रोकने के लिए भी सुदूर तक ले जाया गया था, भारतीय सीमावर्ती राज्यों से संघर्ष में ही सिकंदर (के सेनापतियों) को अनुमान हो गया था की आगे क्या हो सकता हैI पर सनकी सिकंदर अपने ही घमंड में इस भारतीय राज्य को नेस्तनाबूद करने को उद्दत था क्योंकि उसे भारतवर्ष पर राज्य करना था!! अपनी सनक में वो बहुत कुछ नहीं देख पाया जनता तो वो और भी कम था .. राजा पुरु के पास करीब २०० की गजसेना थी ! यहाँ जानने वाली बात है की हाथी मात्र अफ्रीका एवं भारत में ही पाये जाते हैं, यवनो ने हाथी सेना क्या हाथी तक कभी नहीं देखे थे ! यवनी कुशल घुड़सवारी के महारथी थे और अधिकतर युद्ध उन्होंने इसी सेना और अपने युद्धक हथियारो जैसे कैटापल्ट इत्यादि के बल पर ही जीते थे .. वर्षो तक यवनी स्वयं को ही समूचे विश्व के स्वामी समझते रहे थे, और यही सब उन्होंने अपने इतिहास में भी रचा. !
पहले से ही क्षतिप्राप्त यवनी सेना ने अगले दिन जो झेला उसने उनके दिमाग ठीक कर दिए .. राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी सात फूट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े! इसके पहले झेलम नदी पर दोनों सेनाओं के बीच कई दिनों तक सतर्क आशंकित निगाहो का आदानप्रदान होता रहा !
भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफूटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई कई शत्रु सैनिको और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिको भी मार गिरा सकता था ! इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिलीI यवनी सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए, यवनी सरदारो के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अन्तः प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया ! कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उनतक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है! राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया, ऐसा मैसेदैनियन सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था, कोई आजतक सिकंदर, सिकंदर के अश्व क्या उसकी विशिष्ट अन्तः टुकड़ी तक को खरोंच नहीं दे पाया था ! सिकंदर जमीन पर गिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था, मैसेडोनिअ का महान विश्वविजेता बस पल भर का मेहमान था की तभी राजा पुरु ठिठक गया ! यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहाँ से भगा ले गए I
भारत में शत्रुओं के उत्तरपश्चिम से घुसने के दो ही रास्ते रहे हैं जिसमे सिंधु का रास्ता कम खतरनाक माना जाता था! क्यों?
सिकंदर सनक में आगे तक घुस गया जहाँ उसकी पलटन को भरी क्षति उठानी पड़ी, पहले ही भारी क्षति उठाकर यवनी सेनापति अब समझ गए थी की अगर युद्ध और चला तो सारे यवनी यहीं नष्ट कर दिए जायेंगे, यह निर्णय पाकर सिकंदर वापस भागा पर उस रास्ते से नहीं भाग पाया जहाँ से आया था और उसे दुसरे खतरनाक रास्ते से गुजरना पड़ा जिस क्षेत्र में प्राचीन क्षात्र या जाट निवास करते थे (आज भी करते हैं) उस क्षेत्र को जिसका पूर्वी हिस्सा आजके हरयाणा में स्थित था और जिसे “जाटप्रदेश” कहते थे !! इस प्रदेश में पहुँचते ही सिकंदर का सामना जाट वीरों से (और पंजाबी वीरों से सांगल क्षेत्र में) हो गया और उसकी अधिकतर पलटन का सफाया जाटो ने कर दिया, भागते हुए सिकंदर पर एक पंजाबी\जाट सैनिक ने बरछा फेंका जो उसकी वक्ष कवच को बींधता हुआ पार हो गया I यह घटना आजके सोनीपत नगर के पास हुआ था (मैं उस वीर की पहचान जानने का प्रयास कर रहा हु) I इस हमले में सिकंदर तुरंत नहीं मरा बल्कि आगे जाकर जाटप्रदेश की पश्चिमी सीमा गांधार में जाकर उसके प्राणपखेरू उड़ गए!! (यवनी इतिहासकारों ने लिखा– सिकंदर बेबीलोन (आधुनिक इराक) में बीमारी से मरा!- ३२६ ई. पू.)
महान यवनराज्य के बड़बोले इतिहासकारों के लिए ये अत्यंत अपमानजनक एवं असहनीय था !! सिकंदर के दरबारियों एवं रक्षकों ने इस अपमान से बचने के लिए वो कथा बनायीं जो सिकंदर की महिमामंडित छवि से मेल खा सके! और उन्होंने पोरस और सिकंदर की अतिश्योक्तिपूर्ण नाटकीय गाथा बनायीं !!
पर हर विदेशी ने पूरा गप्प नहीं लिखा प्लूटार्क ने लिखा — सिकंदर राजा पुरु की २०, ००० की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया आगे विश्व की महानतम राजधानी की विशालतम सम्राट धनानंद की सेना ३ ५० ००० की सेना उसका स्वागत करने के लिए तैयार थी जिसमे ८०,००० घुड़सवार, ८००० युद्धक रथ एवं ७०००० विध्वंसक हाथीसेना थी उसके सैनिक मुर्गी-तीतर जैसे काट दिए जाते ..I
उस महान सिकंदर की महान सेना में किसने वापस लौटे ये तो बस सोचने वाली ही बात है!!
पर, आज हम वो क्यों जानते हैं जो सभी यवनी-ग्रीक अपनी स्वमुग्धता में मानते हैं?
ग्रीको की शिक्षा यूरोपियनों ने ली और अंग्रेजों ने ग्रीक-रोमनों की सभ्यता से प्रेरणा ली और वही इतिहास अपने निवासियों को पढ़ाया !!
व इतिहास अंग्रेजों के साथ भारत में आ गया और अंग्रेजी गुलामी के साथ हम आज भी सिकंदर को महान और प्रथम भारतीय वीरो में से एक राजा पुरु को पराजित एवं लज्जित मानते हैं…. शर्म नाक है, पर उससे भी अधिक शोचनीय है की हम आज भी नहीं जानतेI
हम आज भी अपने नायको को नहीं जानते, क्योंकि गुलामी हमारी मानसिकता में रचबस गयी है, हमारी पहचान मुगलो और अंग्रेजो की गुलामी से अधिक नहीं है आज भी कई, या शायद सभी भारत को विदेशी इतिहास से समझ रहे हैं, ग्रीक और रोमन सभ्यता को महानतम समझ रहे हैं.. और उसी ग्रीको-रोमन साम्राज्य से विशुद्ध अनुचर की तरह अंग्रेजो को वापस इस देश पर शासन करने का आमंत्रण देने के लिए अपने प्रधानमत्री को भेजते हैं!!

कदाचित, हम अभी जिन्दा नहीं हुए हैं !!!

[शीघ्र ही- सिकंदर के असली इतिहास का रहस्य]

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