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कभी दुनिया के लिए खजाना खोलने वाला अमेरिका आज खुद कर्ज की दलदल फंस गया है। कर्ज सीमा बढ़ाने को लेकर ओबामा प्रशासन और विपक्ष के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा है। इस स्थिति में यदि सरकारी कर्ज पर लगी पाबंदी में ढील नहीं दी गई तो दुनिया भर में अमेरिकी साख खतरे में पड़ सकती है। पर इसका सबसे ज्यादा असर इंडियन इकोनॉमी पर पड़ने की आशंका है। आर्थिक विश्लेषकों को डर है कि कहीं यह संकट भारत में बेरोजगारों की फौज न खड़ी कर दे।
इंडियन इकोनॉमी पर असर
अमेरिका और भारत के बीच अरबों डॉलर का व्यापार होता है। 2000 से 2010 के दौरान भारतीय निर्यात में 180 फीसदी की जबर्दस्त बढ़ोतरी हुई। 2005-09 के दौरान द्विपक्षीय प्रत्यक्ष निवेश में भी 30 फीसदी का इजाफा हुआ। बिजनेस के लिहाज से भारत, अमेरिका का 12वां सबसे बड़ा पार्टनर है। आर्थिक संबंध को और मजबूती देने के लिए अमेरिकी प्रशासन भारत को टॉप 10 में देखना चाहता है। यदि अमेरिकी इकोनॉमी आर्थिक मंदी अथवा कर्ज संकट में फंसती है तो इसका सीधा असर भारत पर पड़ना तय है। आउटसोर्सिंग, आईटी और अन्य सेक्टर से होने वाले आयात-निर्यात इससे प्रभावित होंगे।
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