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बेशक बारिश की बौछारें हर इंसान में हर्षोउल्लास की लहर पैदा कर देती है पर इस वर्ष की वर्षा ने उत्तर प्रदेश के अन्नदाताओं को खून के आंसू रुला दिया| कुछ दिनों पहले हुई औचक ओलावृष्टि और बारिश ने जो त्रासदी फैलाई उससे उबार पाना नामुमकिन सा नज़र आ रहा था वही सोमवार को एक बार फिर से हुई बारिश ने आग में घी डालने का काम किया| मेघों का अचानक बरसना या तो मेघ देवता के क्रोध को दर्शाता है या फिर हमारी गलतियों को|
चैत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जिस प्रकार की बारिश हुई वह अमूमन सावन में होती है| इन बारिश ने कई उत्तरी राज्यों की फसलों को बर्बाद किया जिससे अनेकों किसानों की खुदकुशी की खबरें सामने आई। तत्पश्चात इस मुद्दे ने सियासी रूप ले लिया और राज्य से केंद्र तक गरमा गर्मी होने लगी|
मौसम में परिवर्तन सिर्फ इस वर्ष नहीं आया वरन पिछले वर्ष भी मौसम चक्र में ऐसी ही फेर-बदल सामने आई थी| इससे साफ़ पता चलता है मामला सिर्फ उत्तर भारत में हुई बरसात का नहीं है, पूरे देश से मौसम चक्र बदलने के संकेत मिल रहे हैं। वन्य जीव से लेकर वनस्पति तक सभी के चक्र में परिवर्तन आने लगा है| प्रगति की इस भाग दौड़ ने हमे आशावादी जरूर बना दिया है पर इन अविष्कारों की छड़ी ने कहीं न कहीं पर्यावरण को विशेष रूप से बाधित किया है| जो वनस्पति आम मैदानों में होती थी अब भीम ताल में भी पाई जाने लगी है| जंगल, जल और जमीन के साथ जो बर्ताव कुछ दशकों में हुआ है, उसके घातक नतीज़ों की यह बानगी भर है| नदियां अब नालों में तब्दील हो गईं हैं और जंगलों का रकबा भी काम होता जा रहा है| इससे साफ़ नज़र आता है की बदलता जलवायु हमारे ही कारनामों का नतीजा है|
बदलते जलवायु चक्र ने कई घातक बीमारियों को भी जन्म दिया| मसलन इस वर्ष उत्तरी भारत में फैले स्वाइन फ्लू और बर्ड फ्लू का कहर| यह समस्याएं आगे आने वाले दिनों में किस अविष्कार को जन्म देगी यह तो अभी नहीं कहा जा सकता परन्तु एनवायरनमेंट से इस प्रकार की छेद-छाड़ आम आदमी को भविष्य में जरूर परेशान करेगी|
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