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तल्ख़ तेवर तेरा देखना चाहती हूँ…
तेरे दिल के घावों को सबको दिखाना चाहती हूँ …
यूँ दबी सहमी सी कब तक रहोगी ?
यूँ पर्दों में कब तक छिपोगी ?
कभी तो जरा तू नजरें उठा
कभी तो बन बेशर्म ज़रा
बता इस ज़माने को
तू भी एक मिसाल है
हैं तल्खियाँ तेरे मन में भरी
हैं वेदनाएं तेरी आँखों में भी
हैं बगावत इस ज़माने की रूढ़ियों से
हैं जस्बात तेरे मन में भी
फबकियां सुन ना बहुत हो गया
रोना-धोना बहुत हो गया
कैंडल मार्च से कुछ नहीं होगा
पलट के अब तू बरस जा जरा
नफ़ाज़त और हिफाज़त को छोड़
अब दुनिया को अपना रूप दिखला ज़रा
शर्म उनको नहीं तो तुझे क्यों है?
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