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क्रिकेट का रंग हर वर्ग के लोगों में देखा जा सकता है. क्रिकेट के लिए लोगों का पागलपन उसके प्रति विश्वास को दर्शाता है. भारत जैसे देश में क्रिकेट एक धर्म है जिसकी पूजा हर उम्र के लोग करते हैं. खिलाड़ियों के प्रति स्नेह, उनको अपना आदर्श मानना भारत के युवाओं के चेहरे पर साफ झलकता है. लेकिन क्या यह खिलाड़ी अपने इन्ही क्रिकेट भक्तों के विश्वास को कायम रख पा रहे हैं. उनके अन्दर वह खुशी, विश्वास, देशप्रेम की भावना जगा पा रहे हैं.
खिलाड़यों ने खेल को नहीं बल्कि ऐशो-अराम की जिन्दगी अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा है. वे इसमें ही अपने भविष्य को तलाश रहे हैं. कुछ दशक पहले भारत में ऐसे भी खिलाड़ी हुआ करते थे जो खेल में मेहनत को तवज्जो देते थे. खिलाड़ी जब स्टेडियम में पहुंचते थे तो वह अपने बॉडी को वार्म-अप करते जोश के साथ मैदान पर पहुंचते थे. वह अपने आप को फिट रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम तो करते ही थे साथ-साथ अपने रोजाना के डाइट से कभी नहीं भटकते थे. इस तरह की लगन, जोश तथा मेहनत आज के खिलाड़ियों में कम देखने को मिलती है. मेहनत तो दूर वह खुद के बैट और पैड किट को भी नहीं उठाते. वह मैदान में पहुंचने के लिए लग्जरी गाड़ियों का सहारा लेते हैं. क्रिक़ेट में ज्यादा पैसा और चमक-दमक होने की वजह से इन खिलाड़ियों ने अपने सेहत पर भी ध्यान देना छोड़ दिया है. खाली समय में उनका अंतिम स्थान स्टेडियम न होकर बार और पब हो चुके हैं.
जहां पहले के खिलाड़ी अपने कॅरियर को प्रदर्शन के बदौलत ऊंचाइयों पर ले कर जाते थे. एक-दो साल के लिए नहीं बल्कि आठ-दस साल तक अपने क्रिकेट टीम को सेवा देते थे. लेकिन आज के खिलाड़ियों में वह दम खम नहीं दिखता. अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में वे बेहतर प्रदर्शन तो करते है. लेकिन कुछ समय बीतने के बाद उसे लम्बे कॅरियर के रूप परिवर्तित नहीं कर पाते. खराब प्रदर्शन ने उन्हें टीम से कई बार अंदर बाहर किया है. उनमें पहले जैसे खिलाड़ियों की तरह वह जज्बा नहीं दिखता जिससे वह अपने आप को टीम के अंदर पक्का स्थान दे सकें.
इन खिलाड़ियों ने खेल की बजाय चकाचौंध की जिन्दगी को अपने रोजाना के टाइम-टेबल में शामिल कर लिया है. नियमित रूप से अपने आप को फिट न रखने की वजह से ये खिलाड़ी अपने जरूरी प्रदर्शन को भी सही रूप नहीं दे पाए. जब भी कोई बड़ी सीरीज शुरू होती है छोटे-बड़े सभी खिलाड़ी अपने आप को अनफिट घोषित करके सीरीज को बीच मझधार में छोड़कर चले जाते हैं. इनका ढुलमुल प्रदर्शन इन्हें और टीम को उपर से बिलकुल नीचे लेकर आ जाता है.
इन लोभी और लालची खिलाड़ियों ने जिस तरह आईपीएल और दूसरे टी-20 चैम्पियंस लीग को अपनी कमाई का जरिया बना रखा है वह क्रिकेट के बड़े रूपों जैसे टेस्ट मैच और वनडे दोनो को बिगाड़ने का काम कर रही है. अगर यही खिलाड़ी वक्त रहते अपने आप को सुधार नहीं पाए तो वह अपने कॅरियर पर ही कुल्हाड़ी मारने का काम करेंगे. इन खिलाड़ियों का क्रिकेट के प्रति अपने आप को समर्पित न कर पाना क्रिकेट भक्तों को धोखा देने जैसा है. तो क्या आप उम्मीद करते हैं कि पैसे के लालची और वासना के पुजारी आज के खिलाड़ी क्रिकेट की गरिमा को बरकरार रख सकेंगे?
अपनी राय जरूर दीजिएगा.
धन्यवाद.
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