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अच्युत

saanjh aai
saanjh aai
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तुम अच्युत
मैं चंचल श्वांस|
तुम विमल कमल
मैं भ्रांति |
तुम वर्षों के विछड़े वियोग
मैं योग खोजती पंथी |
तुम निश्छल तप के सिद्ध राग
मैं मृदु मानस का सहज भाग |
तुम हो निधिवन की शीतल शाख
मैं छाँव खोजती विकल पांख |
तुम प्राणों के झंकृत सितार
मैं व्याकुल विरही तान |
तुम हो जीवन के सरसिज पथ
मैं जीवन पथ की रेणु |
तुम हो राधा के मुरलीधर
मैं बाट जोह्ती यमुना नीर |
तुम दुस्तर भवसागर कुशल
मैं तरने की अभिलाष |
तुम पौरुष के पुरुषोत्तम हो
मैं याचक प्रेम अधीर |
तुम चित्रकार ब्रम्हांड पटल
मैं क्षणिक तूलिका तेरी |
मेरी कविता के यश हो तुम
मैं तो हूँ मंद समीर |
मैं तो हूँ मंद समीर ||

अच्युत _ शकुन्तला मिश्रा

 

डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।

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