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आस …

saanjh aai
saanjh aai
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नहीं रुकतें हैं आस मेरे
निरंतर करतें हैं उपहास !
कहें हैं -रुको गति है जहाँ !
क्या कहा ?
गति है नाम तो रुकना कहा ?
असंभव है जब तक है श्वांस
नहीं रूकती है गति कभी
नहीं रुक सकती मेरी आस
बड़े हैं दुःख ,वेदना यहाँ
मगर मैं हो जाती निरुपाय
रुके ना आस ,रुके ना गति !
तो कैसे रुकूँ ,कहो मैं हाय !
यही है जीवन का अधिवास
मुझे है किन्तु त्रास में आस !!!

shakuntla  mishra-aas

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