saanjh aai
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पथिक कहाँ जाते हो ?
बताओ तो !
मुझ पर विश्वास करो !
मैं इसी श्रिष्टि का आदमी हूँ !
मैं यहाँ रहा हूँ ,अकेला बिना साथी के !
मेरी आँखों में आवेश है तड़प का ,स्वप्न का ,भूख का !
जब मैं यहाँ आया ,मा ने मुझे वाँसुरी दी थी !
बहुत दिन तक मैं उसे एकांत में बजता रहा ,
मैंने स्वर सीख लिया “क्लीं” निकाला !
मृत्यु को जीत कर कर्म हीन जीवन को तरंग दिया !
इस महा गीत से सैकड़ो का असंतोष मिट गया !
इस वृहद संसार के दुःख को मिटाता गया !
अपने दुःख सुख ,स्वार्थ से खुद को बचाता गया !
pathik shakuntla mishra
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