saanjh aai
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नव वर्ष में …
लम्हे जो बिखरे हैं
टूटे हैं
चलो उनको पिरोतें हैं
रिश्तों की माला में !
कोहरे की चादर ओढ़
जख्मों को सी लेंगे !
अंजुरी भरे प्रेम की
पलकों में अश्रु भरे
पंथ मैं निहारती
खुद को अर्पित करती !
संध्या की लालिमा में
शुभ की आराधना में
खुद को मैं हार जाती
पर तुमको पाकर मैं ,
जीवन को जीत जाती !!!
शकुन्तला मिश्रा – नव वर्ष में
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