Menu
blogid : 14516 postid : 1112814

शरद पूर्णिमा

saanjh aai
saanjh aai
  • 70 Posts
  • 135 Comments

रुद्ध है आराधन का द्वार
सफल होगा कैसे आह्वान
मेरे उर का यह सिंधु अथाह
जग दी फिर दर्शन की चाह !
कौन रोकेगा मेरी चाह ?
ह्रदय में चलने दो यह राग
एक पल को तो जागे भाग
वेदना में भी जीवन आग
तपूंगी मैं पीड़ा के बीच
मिटाये कौन मेरा एकांत ?
वेदना के सन्मुख है पर्व
मुझे दारुण दुःख देता आज
आज है महारास की रात
आज करना है कल्मष दाह
देवता भी देखंगे आज
पूर्ण होंगे सबके अरमान
चांदनी थिरक रही मधुवन
जले हैं अम्बर दीप अनंत
चीर कर आज निशा का अंध
चाँद भी उतरा धरती मध्य
उभर आया है आज ये मन्त्र
हो गया जीव आत्म निस्पंद

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh