saanjh aai
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अहा ! देखो जल ही गई होलिका
जली है ,जलेगी कुटिल होलिका
अहा ! देखो उड़ने लगी है अबीर
दिवा -रात है सप्तरंगी लकीर ।
ख़ुशी आज गायेगी जोशे धमार
सुनो मित्र मेरे ,क़लम की पुकार
मसि आज बोलेगी जादू ज़ुबान
खड़े हो मेरे देश के नवजवान ।
मनाएँगे अबके बरस ऐसी होली
कि रौशन हो सपने खिले सबकी होली
उड़ाएँगे रंगो का …हम ऐसा रेला
रुके चाँद पे जाके रंगो का रेला
विभा रंग की आज ऐसी उड़ेगी
कि कुमकुम औ केसर सबको लगेगी
पढ़ो सामने के अक्षर ..क्या कहते
बन्द हुए गर सब दरवाज़े तब भी होली है
प्रकृति उड़ाए इत्र न तुम बच पाओगे
नाम है हो -ली प्रखर रंग है
कैसे तुम बच जाओगे ?
कैसे तुम बच जाओगे ??
शकुन्तला मिश्रा
डिस्क्लेमर: उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण डॉट कॉम किसी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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