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” घर से मस्जिद बहुत दूर है गालिब, चल आज किसी रोते बच्चे को हँसाया जाए”
वास्तव में अगर आप किसी को हँसा सकते है, खुश कर सकते हैं तो यही सबसे बडी इबादत और पूजा है । हँसाना कोई कठिन काम नहीं है लेकिन किसी तीसरे का मजाक बनाना या किसी को बेवकूफ बनाकर हँसाना कोई समझदारी का काम नहीं है ।
मुझे तो वो दिन याद आते हैं जब हम दादी नानी के यहाँ जाते थे और बडे छोटे सब मिलकर ताश खेलते थे,अंताक्षरी खेलते थे,कहानी, किस्से ,चुटकुले सुनाते थे और पहेली पूछते थे ।
मै अपने बच्चो और पति के साथ जब भी बैडमिंटन खेलती हूँ,तैराकी करती हूँ तो सभी के चेहरो पर एक प्राकृतिक खुशी देखती हूँ और घर में हम मिलकर स्क्रेबिल खेलते हैं ,ऊनो खेलते हैं, गणित की पहेली सुलझाते हैं तो आपस मे सकारात्मक वार्तालाप भी होता है और हँसना हँसाना भी ।
मेरे विचार से हँसने और हँसाने का सबसे सरल और असरदार तरीका है- खेलो, मस्ती से खेलो, आपस में मिलकर खेलो, सारे तनाव एक तरफ रखकर और सब कुछ भूलकर बस खेलो सबको खिलाओ और खूब जी भरकर हँसो और हँसाओ ।
हँसने हँसाने के लिए जरूरी है ये कुछ काम ।
खेले जी भरकर और टी.वी. को दें विश्राम ।।
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