लड़की की शादी और उसमे दहेज़ एक बहुत बड़ी समस्या है जिसके निबटारे के लिए देश में बहुत सख्त कानून बना है .जो इस प्रकार है –
दहेज निषेध अधिनियम, 1 9 61 में धारा 3
दहेज देने या लेने के लिए दंड-1
(1) ] यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, दहेज देने या लेने पर ले जाता है या लेता है, तो उसे दंडित किया जाएगा [एक अवधि के कारावास के साथ जो 3 से कम नहीं होगा [पांच वर्ष, और ठीक से जो पन्द्रह हजार रूपए से कम या इस तरह दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक हो, नहीं होगा: -1 [(1)] यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, देता है या लेता है दहेज देने या लेने से, वह दंडनीय होगा [एक पद के लिए कारावास के साथ जो 3 वर्ष से कम नहीं होगा, और जुर्माने के साथ पंद्रह हजार रुपये से कम नहीं होगा या इस तरह के दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक है] \: “बशर्ते न्यायालय, फैसले में दर्ज किए जाने के लिए पर्याप्त और विशेष कारणों के लिए, 4 [पांच साल] से कम अवधि के लिए कारावास की सजा को लागू कर सकता है।] [5] ([2] उप-धारा (1) के संबंध में या इसके संबंध में लागू होंगे- 1 [(2) उप-धारा (1) में कुछ भी, या इसके संबंध में लागू नहीं होगा- “
(ए) उपहार जो दुल्हन (उस तरफ से कोई मांग किए बिना) के विवाह के समय दिए गए हैं: बशर्ते कि इस तरह के उपहार इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार बनाए गए सूची में दर्ज किए गए;
(बी) उपहार जो दूल्हे के विवाह के समय दिए गए हैं (बिना किसी मांग के लिए): बशर्ते कि इस तरह के उपहार इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार बनाए गए सूची में दर्ज किए गए हैं: आगे जहां ऐसे उपहार दुल्हन या दुल्हन से संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा या उसके द्वारा किए जाते हैं, ऐसी प्रथा एक प्रथागत प्रकृति की होती है और इसके मूल्य उस व्यक्ति की वित्तीय स्थिति के संबंध में अत्यधिक नहीं होता है जिसके द्वारा, या जिनके पर ओर से, ऐसे उपहार दिए जाते हैं।]
यही नहीं इसके साथ साथ भारतीय दंड संहिता में भी इसके लिए प्रावधान किये गए हैं –
2.4 भारतीय दंड संहिता के तहत दहेज़ हत्या को रोकने के लिए प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B के अनुसार दहेज़ हत्या है: जब विवाह के सात सालों के अन्दर किसी महिला की मौत जलकर या शारीरिक चोट या सामान्य स्थितियों से अलग होती है और यह पाया जाता है कि अपनी मौत से कुछ समय पहले अपने पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा दहेज़ के लिए या दहेज़ संबंधी मांगों के सम्बन्ध में उस हिंसा या प्रताड़ना की शिकार हुई थी तो ऐसी मृत्यु को दहेज़ हत्या कहा जाता है. दहेज़ हत्या के लिए दोषी पाए व्यक्ति को सात साल की न्यूनतम कारावास की सजा तय की गयी है और न्यायाधीशों को ज्यादा गंभीर सजा देने का अधिकार है. धारा 304-B को लागू करने के लिए निम्न कारकों का होना आवश्यक है:
महिला की मृत्यु
महिला की मृत्यु चाहे वह आत्महत्या हो या हत्या, धारा 304-B को लागू करने की सबसे पहली शर्त है. अगर महिला हमले से बच जाती है तो यह अपराध धारा 304-B के तहत दर्ज न होकर धारा 307 के तहत दर्ज किया जाता है.
असाधारण परिस्थतियों में मौत
अभियोजन पक्ष के लिए मुक़दमा जीतने के लिए आवश्यक है कि प्राकृतिक या हादसे में हुई मौत को असाधारण परिस्थितियों में हुई मृत्यु को दर्शाया जा सके. जलने, जिस्मानी घावों, गला घोंटने, जहरखुरानी, फांसी से होने वाली मौत सभी अप्राकृतिक मौत के उदहारण हैं. धारा 304-B को प्रत्यक्ष प्रमाण की जरुरत नहीं है. किसी लड़की के द्वारा इस आरोप के साथ कि उसके ससुरालवालों ने नाकाफी दहेज़ की कारण उसका जीना मुश्किल कर दिया था, के कारण की गयी आत्महत्या, उसकी मौत को अप्राकृतिक मौत की श्रेणी में रखती है. (देविंदर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य सरकार, 2005, Cr.L.J.4160 SC )
शादी के सात सालों के अन्दर मृत्यु:
304-B के तहत मुकदमा चलाने के लिए विवाह के सात साल की नियत अवधि का होना जरूरी है.अगर शादी के सात साल बाद महिला की मौत होती है तो मामले को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (ख़ुदकुशी के लिए उकसाना) के साथ भारतीय प्रमाण अधिनियम की धारा 113-A (विवाहित महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का पूर्वानुमान) के तहत दर्ज किया जाता है. यह अवधि विवाह की तिथि से गिनी जाती है न की लड़की की विदाई वाले दिन से. डी. एस. सिसोदिया बनाम के. सी. समदरिया (2001 Cr.L.J. NOC 156 Raj) के मामले में राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि शादी की तारीख को शादी के जलसे से मानना चाहिए न की ‘मुकलावा’ के उत्सव से.
पति या पति के परिजनों के द्वारा महिला क्रूरता या यातना की शिकार होनी चाहिए
क्रूरता शब्द को शारीरिक और मानसिक क्रूरता दोनों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A के विवरणों के लिए भी प्रयुक्त होता है. इस धारा के अनुसार क्रूरता से आशय है “जानबूझकर किया गया ऐसा काम जिसे किसी महिला की आत्महत्या की संभावना या उसे जीवन, हाथ-पैरों या सेहत को चाहे शारीरिक या मानसिक तौर पर क्षति पहुँचती हो या उसे इस तरह से यातना दी जाए कि जिसमें यातना का उद्देश्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की नाजायज मांगों को पूरा करने के लिए या ऐसी नाजायज मांगों को उसके या उसके रिश्तेदारों द्वारा पूरा न कर पाने की सूरत में उसे या उसके किसी जानकार को नुकसान पहुँचाने की मंशा निहित हो.” श्रीमती शांति बनाम हरियाणा राज्य सरकार (AIR 1991 SC 1226) के मामले में उच्चतम न्यायलय का बयान था , “धारा 304 –B में ‘क्रूरता’ के बारे में कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन ऐसे अपराधों की समान पृष्ठभूमि को देखते हुए हमें क्रूरता या प्रताड़ना को धारा 498 A के तहत प्रस्तुत दंडनीय क्रूरता के रूप में देखना चाहिए.”
इस प्रकार की क्रूरता या प्रताड़ना दहेज़ की मांग से संम्बंधित होनी चाहिए:
अगर लड़की के साथ हुई क्रूरता या प्रताड़ना दहेज़ से संबंधित नहीं है तो ऐसे मामलों को भारतीय दंड संहिता के कुछ अन्य महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधानों के तहत रखा जा सकता है मगर धारा 304-B के तहत मामले को दर्ज नहीं किया जाएगा. धारा 304-B के तहत दर्ज मामलों में अभियोजन पक्ष को साबित करना पड़ता है कि प्रताड़ना या क्रूरता दहेज़ की मांग से सम्बद्ध थी.
दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961की धारा 2 के अनुसार ही परिभाषित ‘दहेज़’ शब्द को समझा जाना चाहिए. इस परिभाषा में ‘विवाह के उक्त पक्षों के सम्बन्ध में ’ महत्वपूर्ण शब्द हैं. इसका मतलब है कि “किसी को किसी समय पर संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा देना या देने का आश्वासन देना विवाह के पक्षों से संबंधित होना चाहिए.” दंपत्ति में से किसी को धनराशि के भुगतान या संपत्ति देने की कई अन्य घटनाएं भी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए अलग अलग समाजों में बच्चे के जन्म पर या दूसरे समारोह में रीति-रिवाजमूलक प्रथाएं प्रचलित हैं. इस तरह के भुगतान को ‘दहेज़’ के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता है. (सतवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य सरकार, (2001) 8SCC 633)
इसी तरह आर्थिक तंगी या कुछ जरूरी घरेलू खर्चों के लिए रकम की मांग को दहेज़ की मांग नहीं कहा जा सकता है. (अप्पासाहेब बनाम महाराष्ट्र सरकार, AIR 2007 SC 763).
महिला की मौत से कुछ समय पहले ही उसके साथ इस प्रकार की क्रूरता या प्रताड़ना घटित होनी चाहिए.
भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B और प्रमाण अधिनियम की धारा 113-B में उल्लिखित ‘मौत से कुछ समय पहले ही’ का अर्थ है कि यहाँ पर एक निश्चित और जीवंत सम्बन्ध होना चाहिए यानी की दहेज़ की मांग पर आधारित क्रूरता और सम्बन्ध हत्या के बीच में साफ़ तौर पर दिखाई देने वाला कार्य-कारण सम्बन्ध होना चाहिए. दोनों, यानी हत्या और प्रताड़ना के बीच में अधिक समयांतराल नहीं होना चाहिए.
भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B में मौजूद शब्दों, ‘मौत से कुछ समय पहले ही’ को कोई खास समयावधि में नहीं बांधा जा सकता और न ही इसे किसी समय के पैमाने पर मापा जा सकता है कि यातना मौत से कितने समय पहले दी गयी हो. इस सम्बन्ध में किसी नियत समयावधि का संकेत करना खतरनाक हो सकता है और इसे प्रत्येक मामले की खास परिस्थितियों के अनुसार तय किया जाना चाहिए.[साभार http://vle.du.ac.in/mod/book/print.php?id=12503&chapterid=26164]
इसलिए दहेज़ लेते या देते समय आप इस सब को जान लें तभी इस गैरकानूनी कदम को उठायें क्योंकि आप सभी कानून का पालन करने का दम भरते हुए भी इस गैरकानूनी कार्य से जुड़े रहने में ही गर्व महसूस करते हैं तभी कानून आज तक भी अपने इस पुनीत उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया है।
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