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खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो ,

खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .

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ख़ातून की खातिर जो ,खामोश हर घड़ी में ,

खब्ती हो इस तरह से ,ये लट्ठ लिए पड़ी हो .

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खिज़ाब लगा दिखते,खालू यूँ नौजवाँ से ,

खरखशा जवानी का ,किस्सा लिए पड़ी हो .

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करते हैं खिदमतें वे ,दिन-रात लग तुम्हारी ,

फिर क्यूँ न मुस्कुराने की, जिद किये पड़ी हो .

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करते खुशामदें हैं ,खुतबा पढ़ें तुम्हारी ,

खुशहाली में अपनी क्यूँ,खंजर दिए पड़ी हो .

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खिलवत से दूर रहकर ,खिलक़त को बढ़के देखो ,

क्यूँ खैरियत की अपनी ,खिल्ली किये पड़ी हो .

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ऐसे खाहाँ की खातिर ,रोज़े ये दुनिया रखती ,

पर खामख्याली में तुम ,खिसियाये हुए पड़ी हो .

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खुद-इख़्तियार रखते ,खुसिया बरदार हैं फिर भी ,

खूबी को भूल उनकी ,खटपट किये पड़ी हो .

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क्या जानती नहीं हो ,मजबूरी खुद खसम की ,

क्यूँ सारी दुख्तरों को ,सौतन किये पड़ी हो .

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”शालिनी ” कहे खाला,खालू की कुछ तो सोचो ,

चढ़ते वे कैसे ऊपर ,जब बेंत ले पड़ी हो .

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शालिनी कौशिक

[WOMAN ABOUT MAN]

शब्दार्थ :-खाविंद-पति ,खातून-पत्नी ,खाला-मौसी ,खालू-मौसा खारिश -खुजली ,खुसिया बरदार -सभी तरह की सेवा करके खुश रखने वाला ,खर खशा-व्यर्थ का झगडा ,खाहाँ-चाहने वाला ,खिलवत -एकांत ,खिलक़त-प्रकृति ,खामख्याली -नासमझी

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