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झलकाई मर्दानगी तेजाब फैंककर .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,

दिखलाई हिम्मतें ही तेजाब फैंककर .

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अरमान जब हवस के पूरे न हो सके ,

तडपाई  दिल्लगी से तेजाब फैंककर .

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ज़ागीर है ये मेरी, मेरा ही दिल जलाये ,

ठुकराई मिल्कियत से तेजाब फैंककर .

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मेरी नहीं बनेगी फिर क्यूं बने किसी की,

सिखलाई बेवफाई तेजाब फैंककर .

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चेहरा है चाँद तेरा ले दाग भी उसी से ,

दिलवाई निकाई ही तेजाब फैंककर .

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देखा है प्यार मेरा अब नफरतों को देखो ,

झलकाई मर्दानगी तेजाब फैंककर .

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शैतान का दिल टूटे तो आये क़यामत ,

निपटाई हैवानगी तेजाब फैंककर .

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कायरता है पुरुष की समझे बहादुरी है ,

छलकाई बेबसी ही तेजाब फैंककर .

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औरत न चीज़ कोई डर जाएगी न ऐसे ,

घबराई जवानी पर तेजाब फैंककर .

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उसकी भी हसरतें हैं ,उसमे भी दिलावरी ,

धमकाई बेसुधी ही तेजाब फैंककर .

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चट्टान की मानिंद ही है रु-ब-रु-वो तेरे ,

गरमाई ”शालिनी” भी तेजाब फैंककर .

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शालिनी कौशिक

[कौशल]


शब्दार्थ  :ज़ागीर -पुरुस्कार स्वरुप राजाओं महाराजाओं द्वारा दी गयी ज़मीन ,मिल्कियत-ज़मींदारी ,निपटाई -झगडा ख़त्म करना ,निकाई-खूबसूरती


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