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अभी हाल ही में हुए दंड विधि [ संशोधन] अधिनियम ,२०१३ में तेजाब सम्बंधित मामलों के लिए धारा ३२६ -क व् धारा ३२६-ख अन्तः स्थापित की गयी हैं जिसमे धारा ३२६-क ” स्वेच्छ्या तेजाब ,इत्यादि के प्रयोग से घोर उपहति कारित करना ”को ही अपने घेरे में लेती है जिसमे कारावास ,जो दस वर्ष से कम नहीं किन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगा और ज़ुर्माना जिसका भुगतान पीड़िता को किया जायेगा ……और धारा ३२६ -ख स्वेच्छ्या तेजाब फेंकने या फेंकने के प्रयत्न को ही अपने घेरे में लेती है जिसमे ५ वर्ष का कारावास ,किन्तु जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने का दंड मिलेगा .इन दोनों ही धाराओं की व्यवस्था करते समय हमारे कानून विदों ने इस तरह की घटना की कल्पना नहीं की कि अगर तेजाबी हमले में पीड़िता की मृत्यु हो जाती है तो जुर्माने का भुगतान किसे किया जायेगा क्योंकि आज तक हुई अधिकांश घटनाओं में तेजाब पीड़िताओं की ज़िंदगी झुलसी है मौत नहीं किन्तु अभी हाल में गुजरात में एक घटना ने तेजाब पीड़िता की ज़िंदगी ही नहीं मौत को भी झुलसा दिया और उसे मौत का शिकार बना दिया किन्तु अब कानून उन्हें ज्यादा से ज्यादा क्या देगा ३२६-क और ३०२ का अंतर्गत सजा जो कि फांसी हो भी सकती है और नहीं भी जबकि इस तरह के मामलों में निश्चित रूप से फांसी होनी चाहिए क्योंकि तेजाब ने यहाँ मात्र घोर उपहति नहीं कि वरन मौत दी है और इस सम्बन्ध में कानून को नयी व्यवस्थाएं भूतलक्षी संशोधन करते हुए लागू करनी ही होंगी .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
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