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विशाल अग्रवाल बनाम छत्तीसगढ़ स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड [2014 ]3 .एस.सी.सी.696 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट को पंजीकृत करना पुलिस प्राधिकारियों का कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व है .पुलिस प्राधिकारी उसका अन्वेषण करने और इसके पश्चात् मजिस्ट्रेट के समक्ष इसकी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए बाध्य होते हैं ,जो अन्वेषण के समाप्ति पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 के अधीन पुलिस रिपोर्ट पर अपराध का संज्ञान लेने के लिए सशक्त होता है .
इसी प्रथम सूचना रिपोर्ट के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 में कहा गया है कि –
[1 ] संज्ञेय अपराध किये जाने से संबंधित प्रत्येक इत्तिला यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक दी गयी है तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तिला पर ,चाहे वह लिखित रूप में दी गयी हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गयी हो ,उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे ,जो उसे दे और उसका सार ऐसी पुस्तक में ,जो उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जाएगी ,जिसे राज्य सरकार इस निमित्त विहित करे ,प्रविष्ट किया जायेगा .
इसके साथ ही दंड विधि [संशोधन ]अधिनियम ,2013 द्वारा एक परन्तुक इसमें अंतःस्थापित किया गया है ,जो कि 3 .2 .2013 से भूतलक्षी रूप से प्रभावी होगा ,जिसमे कहा गया है –
[परन्तु यदि किसी स्त्री द्वारा ,जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता [1860 का 45 ] की धारा 326 -क ,326 -ख,धारा 354 ,धारा 354 -क ,धारा 354 -ख ,धारा 354 -ग ,धारा 354 -घ ,धारा 376 ,धारा 376 -क,धारा 376 -ख,धारा 376 -ग,धारा 376 -घ,धारा 376 -ड़ या धारा 509 के अधीन किसी अपराध के किये जाने या किये जाने का प्रयत्न किये जाने का अभिकथन किया गया है ,कोई इत्तिला दी जाती है तो ऐसी इत्तिला किसी महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा अभिलिखित की जाएगी :
परन्तु यह और कि –
क-यदि वह व्यक्ति ,जिसके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता [1860 का 45 ] की धारा 354 ,धारा 354 -क ,धारा 354 -ख ,धारा 354 -ग ,धारा 354 -घ ,धारा 376 ,धारा 376 -क,धारा 376 -ख,धारा 376 -ग,धारा 376 -घ,धारा 376 -ड़ या धारा 509 के अधीन किसी अपराध के किये जाने या किये जाने का प्रयत्न किये जाने का अभिकथन किया गया है ,अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से निशक्त है ,तो ऐसी इत्तिला किसी पुलिस अधिकारी द्वारा उस व्यक्ति के ,जो ऐसे अपराध की रिपोर्ट करने की ईप्सा करता है ,निवास स्थान पर या उस व्यक्ति के विकल्प के किसी सुगम स्थान पर यथास्थिति ,किसी द्विभाषिये या किसी विशेष प्रबोधक की उपस्थिति में अभिलिखित की जाएगी ;
[ ख] -ऐसी इत्तिला के अभिलेखन की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी ;
[ग ]-पुलिस अधिकारी धारा 164 की उपधारा [5 -क] के खंड [क]के अधीन किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उस व्यक्ति का कथन यथासंभव शीघ्र अभिलिखित कराएगा .]
[2 ]उपधारा [ 1 ] के अधीन अभिलिखित इत्तिला की प्रतिलिपि ,इत्तिला देने वालों को तत्काल निशुल्क दी जाएगी .
और अब आते हैं इस धारा की उपधारा [3 ] पर क्योंकि सबसे ज्यादा प्रयोग इसीका भारतीय कानून से न्याय की आकांक्षी जनता को करना पड़ता है .धारा 154 की उपधारा [3 ] कहती है –
”कोई व्यक्ति जो किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के उपधारा [1 ] में निर्दिष्ट इत्तिला को अभिलिखित करने से इंकार करने से व्यथित है ,ऐसी इत्तिला का सार लिखित रूप में और डाक द्वारा सम्बद्ध पुलिस अधीक्षक को भेज सकता है जो ,यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसी इत्तिला से किसी संज्ञेय अपराध का किया जाना प्रकट होता है तो ,या तो स्वयं मामले का अन्वेषण करेगा या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी द्वारा इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति में अन्वेषण किये जाने का निदेश देगा और उस अधिकारी को उस अपराध के सम्बन्ध में पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की सभी शक्तियां होंगी .”
इतने विस्तृत रूप में संज्ञेय मामलों में इत्तिला का प्रावधान किया गया है और कोर्ट द्वारा बार बार सम्बंधित थानों को इन्हें दर्ज करने के निर्देश भी ,किन्तु थानों द्वारा कोर्ट के इन निर्णयों का पालन न करते हुए अपनी अधिकारिता का ही प्रयोग किया जाता है जिससे व्यथित व्यक्ति अपनी रिपोर्ट एस.पी.के यहाँ भेजता है पर वहां स्थिति और भी दुरूह है समय बीतता जाता है और पीड़ित की रिपोर्ट कचरे के डिब्बे में चली जाती है और इस तरह एक व्यक्ति की पीड़ा कूड़े का ढेर बन जाती है .इसलिए बहुत से मामलों में फिर व्यथित वकीलों की सलाह से कोर्ट की शरण लेता है और अपनी ऍफ़ .आई.आर.कहीं पर भी न दे केवल देने का नाटक करते हुए कभी परिवाद वाद के रूप में मजिस्ट्रेट के यहाँ दायर करता है तो कभी 156 /3 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट पीड़ित की शिकायत पर संज्ञान लेता है .
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