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प्यार से भी मसलों का हल निकलता है

! मेरी अभिव्यक्ति !
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” प्यार है पवित्र पुंज ,प्यार पुण्य धाम है.

पुण्य धाम जिसमे कि राधिका है श्याम है .

श्याम की मुरलिया की हर गूँज प्यार है.

प्यार कर्म प्यार धर्म प्यार प्रभु नाम है.”

एक तरफ प्यार को “देवल आशीष”की उपरोक्त पंक्तियों से विभूषित किया जाता है तो एक तरफ प्यार को “बेकार बेदाम की चीज़ है”जैसे शब्दों से बदनाम किया जाता है.कोई कहता है जिसने जीवन में प्यार नहीं किया उसने क्या किया?प्यार के कई आयाम हैं जिसकी परतों में कई अंतर कथाएं छिपी हैं .प्रेम विषयक दो विरोधी मान्यताएं हैं-एक मान्यता के अनुसार यह व्यर्थ चीज़ है तो एक के अनुसार यह जीवन में सब कुछ है .पहली मान्यता को यदि देखा जाये तो वह भौतिकवाद से जुडी है .जमाना कहता है कि लोग प्यार की अपेक्षा दौलत को अधिक महत्व देते हैं लेकिन यदि कुछ नए शोधों पर ध्यान दें तो प्यार का जीवन में स्थान केवल आकर्षण तक ही सीमित नहीं है वरन प्यार का जीवन में कई द्रष्टिकोण से महत्व है .न्यू हेम्पशायर विश्व विध्यालय के प्रोफ़ेसर एडवर्ड लीमे और उनके येल विश्व विध्यालय के साथियों ने शोध में पाया कि जिन लोगों को दुनिया में बहुत प्यार और स्वीकृति मिलती है वे भौतिक वस्तओं को कम तरजीह देते हैं.वे लोग जिन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें लोग ज्यादा प्यार नहीं करते और अपना नहीं मानते ,वे भौतिक चीजों से ज्यादा जुड़े होते हैं .शोध कर्ताओं ने १८५ लोगों पर शोध किया और पाया कि दूसरी तरह के लोग ,पहली तरह के लोगों के मुकाबले वस्तओं को पांच गुना महत्व दे रहे थे .इसका सीधा साधा अर्थ यह है कि जिन्हें जीवन में प्रेम और जुडाव की कमी ज्यादा महसूस होती है वे चीज़ों के प्रति ज्यादा लगाव महसूस करते हैं या उनमे असुरक्षा की भावना होती है जिसे वे भौतिक उपलब्धियों के जरिये पूरा करने की कोशिश करते हैं .जाहिर है कि जिसको यह लगता है कि आसपास के लोग उसे प्यार नहीं करते या उसे अपना नहीं मानते वह असुरक्षित महसूस करने लगता है और तब उसे लगेगा कि दुनियावी चीज़ें ही उसे सहारा और सुरक्षा दे सकेंगी.

अमेरिका के स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक हालिया शोध में पता चला है कि प्रेम के कारण उपजे दर्दे दिल का इलाज भी प्रेम की अनुभूति से ही होता है .शोधकर्ताओं ने कुछ छात्रों को हल्का शारीरिक दर्द पहुंचाते हुए उनकी प्रतिक्रियाएं रिकॉर्ड की .गौरतलब है कि अधिकांश छात्र प्रेम की शुरूआती अवस्था में थे ,और पाया कि छात्रों के सामने उनके प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर रखने पर उनका ध्यान मामूली सा बँटा .शोध में सभी छात्रों के मस्तिष्क का स्कैन किया गया था .शोध में शामिल डॉ.जेरेड यंगर का कहना है “कि प्रेम एक दर्द निवारक का भी काम करता है.”

असलम कोल असली ने कहा है-

“कभी इश्क करो और फिर देखो,

इस आग में जलते रहने से

कभी दिल पर आंच नहीं आती

कभी रंग ख़राब नहीं होता.”

प्रेम के बारे में कवि, दार्शनिक,प्रेमीजन आदि ऐसे विचार व्यक्त करते ही रहे हैं किन्तु प्रेम न सिर्फ कलाकारों,लेखकों और दार्शनिकों को प्रेरित करता है अपितु आम इंसानों की रोजमर्रा की जिन्दगी में आने वाली परेशानियों से और तनावों से उबरने में भी मदद करता है .वाशिंगटन पोस्ट ने एक शोध के बारे में बताते हुए कहा कि यदि हमारा करीबी भावनात्मक संबल या सलाह दे तो नकारात्मक विचारों या तनाव से आसानी से उबरा जा सकता है .शोध के दौरान उन्होंने पाया कि एक खुशहाल दंपत्ति का ब्लड प्रेशर अविवाहित लोगों के मुकाबले कम था .हालाँकि बुरे वैवाहिक संबंधों से गुजर रही जोड़ी का ब्लड प्रेशर सबसे ज्यादा पाया गया.प्रेम सम्बन्ध जिन्दगी को मायने और अर्थ देते हैं .एरोन ने पाया कि “प्यार का एहसास मस्तिष्क के डोपेमायीं रिवार्ड सिस्टम को सक्रिय कर देता है .ख़ुशी और प्रेरणा जैसी भावनाओं के लिए दिमाग का यही हिस्सा जिम्मेदार है.

प्रेम के क्षेत्र में बाधा बनकर आज “एड्स “भी उपस्थित हुआ है किन्तु इस बीमारी के लिए भी कहा जाता है कि “एड्स के रोगी को नफरत नहीं प्यार दीजिये,इससे उसकी उम्र बढ़ेगी रोग घटेगा.”इस बात की पुष्टि की है स्विट्ज़रलैंड स्थित वेसल इंस्टीट्यूट फार क्लिनिकल अपिदेमोलोग्य ने.रिपोर्ट के अनुसार अगर एड्स प्रभावित रोगी प्यार पाए ,रोमांस करे तो उसकी जीवन अवधि बढ़ जाती है .शोधकर्ता डॉ.हेनर सी.बचर ने अपने प्रयोग को एक बड़े समूह पर किया .हैरान करते परिणाम यह थे कि जो रोगी घबराये हुए थे और जीने की आस छोड़ चुके थे उनमे न केवल जीने की लालसा बढ़ी बल्कि वे नई स्फूर्ति से भर गए.शोधकर्ता का मानना है कि उनके परीक्षण इस बात की पुष्टि करते हैं कि “प्यार और स्वास्थ्य साथसाथ चलता है .”

इस प्रकार देखा जाये तो प्रेम ही जीवन ऊर्जा का शिखर है जिसने प्रेम को जान लिया उसने सब जान लिया,जो प्रेम से वंचित रहा वह सबसे वंचित रह गया .प्रेम का अर्थ है समर्पण की दशा जहाँ दो मिटते है और एक बचता है .जिसे अपने लक्ष्य से,सहस से ,उद्देश्य से जरा भी प्रेम है वह स्वयं को मिटा देता है .यही सच्चा प्रेम है रही और मंजिल एक हो जाते हैं .जीवन आनंद की सच्ची रह वहीँ से निकलती है .कबीर ने भी कहा है –

“प्रेम न हाट बिकाय”

अर्थात प्रेम किसी बाज़ार में नहीं बिकता.प्यार के मायने बदल सकते हैं किन्तु सच्चे प्रेम का स्वरुप कभी नहीं बदल सकता.सच्चा प्रेम वह महक है जो हर दिशा को महकाती है .सच्चे प्रेम को तलवार की धार कहा जाता है और हर किसी के बस का इस पर चलना नहीं होता.इसलिए सच्चा प्रेम कम ही दिखाई देता है .वर्तमान युवा पीढ़ी प्रेम की और अग्रसर है किन्तु उसके लिए सच्चे प्रेम का स्वरुप कुछ अलग है .होटल मैनजमेंट कर रही पारुल के अनुसार-“प्रेम को मैं तलवार की धार नहीं मानती हूँ पर हंसी खेल भी नहीं मानती हूँ .मेरा मानना है कि ये एक दैवीय एहसास है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है ,व्यक्त नहीं किया जा सकता है .”

पल्लवी कहती हैं-“प्रेम करना आसान लग सकता है पर यह निभाना उतना ही मुश्किल है .ये एक ऐसा करार है जो कभी ख़त्म नहीं होता है .”

ये तो प्रेम का एक रूप है .प्रेम तो कई स्वरूपों में ढला है .देश प्रेम,प्रभु प्रेम.मानव प्रेम, मातृ -प्रेम पितृ प्रेम,पुत्र प्रेम आदि इसके अनेको स्वरुप हैं.प्रभु ईसा मसीह ने सभी प्राणियों , अपने पड़ोसियों आदि से प्रेम का सन्देश दिया .गुरु नानक ने प्रेम करने वालो को सारी दुनिया में बिखर जाने का आशीर्वाद दिया ताकि वे प्यार को सारेजहाँ में फैला सकें .सभी धर्मो के गुरु जन प्राणी मात्र को प्रेम का सन्देश देते हैं और आपस में मिलजुल कर रहने की शिक्षा देते हैं.उनका भी मानना है कि प्रेम वह है जो अपने प्रिय के हित में सर्वस्व त्याग करने को तैयार रहता है .प्यार त्याग करता है बलिदान नहीं मांगता .प्रेम की ही महिमा को हमारे कविजनो ने अलग अलग तरह से वर्णित किया है –

देश -प्रेम

“जो भरा नहीं भावों से बहती जिसमे रसधार नहीं ,

वह ह्रदय नहीं है पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं .”

मानव प्रेम-

“यही प्रवृति है जो आप आप ही चरे ,

मनुष्य है वही जो मनुष्य के लिए मरे.”

प्रेमी जनों का प्यार यहाँ देखिये-

“जब जब कृष्ण की बंसी बाजी निकली राधा सज के

जान अजान का ध्यान भुला के लोक लाज को तज के ,

वन वन डोली जनक दुलारी पहन के प्रेम की माला,

दर्शन जल की प्यासी मीरा पी गयी विष का प्याला.”

मातृ पितृ भक्ति कहे या मातृ-पितृ प्रेम -इसके वशीभूत हो श्रवण कुमार माता पिता को कंधे पर बिठाकर तीर्थ यात्रा करते हैं,पितृ भक्ति में परशुराम माता का गला काट देते हैं,मात्र भक्ति में श्री गणेश भगवान भोलेनाथ से अपना मस्तक कटवा देते हैं और पुत्र प्रेम में माँ पार्वती भयंकर रूप धारण करती हैं और गणेश को भोलेनाथ से पुनर-जीवन दिलवाकर उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य के स्थान पर विराजमान कराती हैं.

सच पूछा जाये तो दुनिया की समस्त समस्याओं का हल प्रेम में है.अनादर,उपेक्षा,द्वेष,ईर्षा और अंधी स्पर्धा की मारी हुई इस दुनिया में हर व्यक्ति हर प्रसंग एक बिदके हुए घोड़े की तरह हमारा वजूद कुचलने को उद्धत घूम रहा हो तब आहत अहम् पर यह कितना बड़ा मरहम है की कोई तो है जो मेरी कद्र करता है,कोई तो है जिसकी आँखों में मुझे देख चमक पैदा होती है .मुझे देखकर जो मेरी भलमन साहत पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता.

इस तरह यदि हम विचार करें तो प्रेम का जीवन में वास्तविक महत्व जीवन अस्तित्व से है और अस्तित्व ऐसा की –

“हज़ार बर्फ गिरें लाख आंधियां चलें

वो फूल खिलकर रहेंगे जो खिलने वाले हैं,”

प्यार से बढ़कर कुछ नहीं और सच्चा प्रेम वही है जो रोते को हंसी दे ,गिरते को उठने की ताक़त दे

मरणासन्न व्यक्ति में जान फूँक दे.सच्चे प्रेम की महक संसार महसूस करता है और सच्चे प्रेम के आगे ये दुनिया झुकती है.सच्चा प्रेम समस्याएँ मिटाता है चाहे दिलों की हों या देशों की.बलिउद्दी देवबंदी ने कहा
है-

“फैसले सब के सब होते नहीं तलवार से ,

प्यार से भी मसलों का हल निकलता है.”

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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