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और आखिर परिवार के मुखिया को बोलना ही पड़ गया कि ”बंद करो नमो नमो का उच्चारण ”और मच गयी भाजपा और विरोधी दलों में खलबली .आर.एस.एस. मूल वाली भाजपा चाहे जितनी कोशिशें करें पर अपने यथार्थ को नहीं झुठला सकती और यथार्थ में वह आर.एस.एस. की ही उपज है .भाजपा से जुड़े लगभग सभी वरिष्ठ नेता संघ के सदस्य रहे हैं और इसलिए संघ भाजपा के पिता के समान है और संघ से इसी सम्बन्ध का परिणाम है कि भाजपा की सभी गतिविधियां संघ के नियंत्रण में ही रहती हैं .यह संघ का ही दबाव रहा कि लाल कृष्ण अडवाणी को स्वयं को प्रधानमंत्री पद की लाइन से अलग करना पड़ा ,यह संघ का ही नियंत्रण था कि राजनाथ ,सुषमा जैसे विरोधियों को भी मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना पड़ा ,यह भी संघ का ही प्रभाव है जो जोशी को वाराणसी से हटाकर मोदी को वहाँ ज़माने हेतु प्रयासरत है और संघ के इसी असर का इस्तेमाल करते हुए मोहन भगवत ने नमो-नमो का उच्चारण बंद करने के आदेश दिए क्योंकि साफ़ तौर पर उनके अनुसार इस तरह पार्टी में व्यक्तिवादी सोच पनप रही है जबकि भाजपा के नाम में ही उसकी सोच व् शैली निहित है ,यह भारतीय जनता की पार्टी है इसमें उनके अनुसार किसी व्यक्ति का कोई महत्व नहीं है यहाँ संगठन का महत्व है और यहाँ जिसका आगमन होता है देश सेवा के लिए होता है किन्तु जैसे आज हमारा संयुक्त परिवार का संगठन टूट रहा है वैसे ही भाजपा में से भी टूट की आवाज़ें आनी आरम्भ हो चुकी हैं और उसमे मोहन भगवत के इस बयान के लिए ये कहा जाने लगा है कि यह एक परिवार की पार्टी नहीं है जबकि वे खुद ये नहीं जानते कि नमो नमो का उच्चारण कर तो वे इसे नमो की ही पार्टी बना रहे हैं और नमो परिवार की ही पार्टी का रूप दे रहे हैं .फिर भी इतना तो साफ़ हो ही गया है संघ भाजपा में इस नमो नमो के उच्चारण से सहमत नहीं है कम से कम मोहन भगवत के शब्दों से तो ये ही जाहिर हो रहा है और उनका यह आदेश जहाँ भाजपा के लिए असमंजस पैदा कर गया है वहीँ भाजपा और मोदी के विरोधियों को चुटकियां लेने के लिए एक नया मुद्दा दे गया है ,सही है ,इरफान सिद्दीक़ी के शब्दों में – शालिनी कौशिक |
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