सन्दर्भ -मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा, 6 की मौत
”मुख्तलिफ ख्यालात भले रखते हों मुल्क से बढ़कर न खुद को समझें हम, बेहतरी हो जिसमे अवाम की अपनी ऐसे क़दमों को बेहतर समझें हम. ………………………………………….. है ये चाहत तरक्की की राहें आप और हम मिलके पार करें , जो सुकूँ साथ मिलके चलने में इस हकीक़त को ज़रा समझें हम . ………………………………………….. कभी हम एक साथ रहते थे ,रहते हैं आज जुदा थोड़े से , अपनी आपस की गलतफहमी को थोड़ी जज़्बाती भूल समझें हम . ………………………………………….. देखकर आंगन में खड़ी दीवारें आयेंगें तोड़ने हमें दुश्मन , ऐसे दुश्मन की गहरी चालों को अपने हक में कभी न समझें हम . ………………………………………….. कहे ये ”शालिनी” मिल बैठ मसले सुलझा लें , अपने अपनों की मोहब्बत को अगर समझें हम . शालिनी कौशिक [ कौशल ]
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