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अपने ख्वाबों को ये ,कुछ यूँ देते अंजाम ,
छीन निवाला बच्चों का करते लूट बबाल ,
करते लूट बबाल करोड़ों फूंके खुद पर
असली छूना कठिन चढ़ें कल्पनाओं के रथ पर .
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मधु का छत्ता कहने पर देश को माँ हैं कहते ,
ऐसी तुलना देख मगरमच्छ टसुएँ बहते ,
उसी देश को अपने मुख से कह गए बर्बाद
ये कहने पर क्यूं नहीं शब्द वे आये याद .
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”देश माँ है मधुमक्खी का छत्ता नहीं ”,
बर्बाद कहने में माँ को क्यूं दिल दुखा नही ,
माँ की तरक्की औलादों के दम से पाए तरक्की ,
क्यूं ऐसा कह बनाते हमको आप हैं शक्की .
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बढ़ रहे हैं आज निरंतर जग में हिंदुस्तानी ,
भारतीय दिमाग की ताकत सारे विश्व ने मानी ,
जिसके बेटे इस दुनिया में झंडे अपने गाड़ रहे
उसका माथा आज गर्व से क्यूं नहीं ऊँचा कहें ?
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बहक गए हैं ,फिसल गए हैं ,
चिढ में अपनी भटक गए हैं ,
अपने सामने रखके आईना
बर्बाद देश को कह गए हैं .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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