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http://en.wikipedia.org/wiki/2012_Delhi_gang_rape_case
अपराध के रूप महत्वपूर्ण -अपराधी की उम्र नहीं
संविधान का अनुच्छेद २१ कहता है कि
” किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा अन्यथा नहीं .”
और इस तरह प्राण का अधिकार एक मूल मानवाधिकार है और चैयरमेन रेलवे बोर्ड बनाम चंद्रिमा दास [२०००] २ एस.सी.सी .४६५ में उच्चतम न्यायालय ने भी माना कि अनुच्छेद २१ में प्रतिष्ठापित ”प्राण ”के अधिकार में मानव गरिमा के साथ जीवित रहने का अधिकार सम्मिलित है और यदि किसी स्त्री के साथ बलात्संग किया जाता है तो वह उसके अधिकार का उल्लंघन करता है .
इसी तरह भारतीय दंड सहिंता की धारा ८३ कहती है कि –
” कोई बात अपराध नहीं है जो सात वर्ष से ऊपर और बारह वर्ष से कम आयु के ऐसे शिशु द्वारा की जाती है जिसकी समझ इतनी परिपक्व नहीं हुई है कि वह उस अवसर पर अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों का निर्णय कर सके .”
इसका साफ मतलब ये है कि जो शिशु ७ से १२ वर्ष के बीच का है और अपने द्वारा किये गए कार्य का अपराध होना और उसके परिणाम को जानता है वह अपराधी है .
जब समझ का निर्णय भारतीय कानून ने इस आयु के मध्य में कर लिया है फिर उससे ऊपर के किशोरों की अपराधों की सजा के मामले में छूट प्रदान किया जाना भारतीय कानून को कठघरे में खड़ा करता है .और साथ ही प्रश्न उत्पन्न करता है कि आखिर ”जीने का अधिकार ”इस तरह आसानी से छीनने का अधिकार भारतीय कानून किस तरह स्वघोषित नाबालिग को अपराधी होने पर भी दे सकता है ?
भारत में विवाह के पश्चात् ही सेक्स को मान्यता प्राप्त है और विवाह के लिए लड़की की उम्र १८ वर्ष व् लड़के की उम्र २१ वर्ष रखी गयी है .ऐसे में बलात्कार के जरिये नाबालिग लड़कों द्वारा जो सेक्स संबंधों को हवस मिटाने का दर्जा दिया जा रहा है वह उनके द्वारा भारतीय कानून का खुलेआम मखौल उड़ाया जाना है . दामिनी गैंगरेप के बाद नाबालिगों की इस सम्बन्ध में जो कम सजा के बारे में जानकारी बढ़ी है उसके बाद इन अपराधों के इनके द्वारा किये जाने की संख्या भी तेज़ी से बढ़ी है .ऐसे में कानून का इनके प्रति नरम रुख आश्चर्य उत्पन्न करता है .
अब यदि देखा जाये तो फिर तो यह छूट १८ से कम के ही किशोरों को क्यूं बल्कि २१ से कम के सभी युवाओं को मिल जानी चाहिए क्योंकि कानून के अनुसार उनकी समझ तो इस संबंधों के लिए २१ वर्ष में ही परिपक्व होती है .
और यदि कानून को सही रूप प्रदान करना है तो फिर जिसमे इस सम्बन्ध में समझ परिपक्व हो चुकी है उसे नाबालिग मानना एक तरह से अपराध को खुली छूट देना है और ऐसे में अपराध का रूप देखकर ही ऐसी छूट के बारे में विचार किया जाना चाहिए क्योंकि १८ हो या १६ यदि पूर्ण सर्वेक्षण किया जाये तो आज बच्चों की बढती समझ देख शायद ही १२ से ऊपर के किसी भी बच्चे को इस छूट का लाभ मिलेगा क्योंकि आज बॉय-फ्रेंड व् गर्ल फ्रेंड की संस्कृति तेज़ी से बढती जा रही है और यही कह रही है कि अब अपराध के रूप पर कानून विदों को ज्यादा ध्यान देने होगा न की अपराधी की उम्र पर .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
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