क्या करेगी जन्म ले बेटी यहाँ साँस लेने के काबिल फिजा नहीं , इस अँधेरे को जो दूर कर सके ऐसा एक भी रोशन दिया नहीं ! …………………………………………………… क्या करेगी तरक्की की सोचकर तेरे लिए ये जहाँ बना नहीं , हौसलों को तेरे जो पर दे सके ऐसा दिलचला कोई मिला नहीं ! ……………………………………………….. क्या करेगी सोच साथ देने की तेरी नहीं कोई ज़रुरत यहाँ , कद्र जो तेरी मदद की कर सके ऐसा कदरदान है हुआ नहीं ! …………………………………………………. क्या करेगी उनके ग़मों को बांटकर तुझसे साझा उन्होंने किये नहीं , सह रही जो सदियों से तू आज तक उनका साझीदार है यहाँ नहीं ! ………………………………………………. ”शालिनी”ही क्या अनेकों बेटियां बख्तरों में बंद हो आई यहाँ , मुजरिमों की जिंदगी क्यूं है मिली इसका खुलासा कभी किया नहीं ! …………………………………………. शब्दार्थ -दिलचला-दिलेर ,साहसी .बख्तर-लोहे का कवच . शालिनी कौशिक [कौशल ]
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