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क्या करेगी जन्म ले बेटी यहाँ

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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क्या करेगी जन्म ले बेटी यहाँ
साँस लेने के काबिल फिजा नहीं ,
इस अँधेरे को जो दूर कर सके
ऐसा एक भी रोशन दिया नहीं !
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क्या करेगी तरक्की की सोचकर
तेरे लिए ये जहाँ बना नहीं ,
हौसलों को तेरे जो पर दे सके
ऐसा दिलचला कोई मिला नहीं !
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क्या करेगी सोच साथ देने की
तेरी नहीं कोई ज़रुरत यहाँ ,
कद्र जो तेरी मदद की कर सके
ऐसा कदरदान है हुआ नहीं  !
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क्या करेगी उनके ग़मों को बांटकर
तुझसे साझा उन्होंने किये नहीं ,
सह रही जो सदियों से तू आज तक
उनका साझीदार है यहाँ नहीं  !
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”शालिनी”ही क्या अनेकों बेटियां
बख्तरों में बंद हो आई यहाँ ,
मुजरिमों की जिंदगी क्यूं है मिली
इसका खुलासा कभी किया नहीं !
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शब्दार्थ -दिलचला-दिलेर ,साहसी .बख्तर-लोहे का कवच .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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