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हिंदी की जगह आज अंग्रेजी ही घेरती जा रही है -[हिंदी बाज़ार की भाषा है गर्व की नहीं ,हिंदी गरीबों अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गयी है .]-contest -2

! मेरी अभिव्यक्ति !
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हिंदी की जगह आज अंग्रेजी ही घेरती जा रही है -[हिंदी बाज़ार की भाषा है गर्व की नहीं ,हिंदी गरीबों अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गयी है .]-contest -२
हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा बस कहने मात्र को ही रह गयी है .जिस प्रकार यह कहा गया है कि भारत में गाय की पूजा होती है और भारत में ही गाय काटी जाती है इसी सत्य पथ का अनुसरण आज ही क्या जबसे हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर विराजमान किया गया है तब से ही किया जा रहा है .
भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोकतंत्र की स्थापना की गयी थी यहाँ के स्वतंत्रता आन्दोलन में जुटी जनशक्ति देखकर और दुःख भी यहाँ का ये लोकतंत्र ही बनकर रह गया .जनता के प्रतिनिधि सत्ता में बैठकर स्वयं को जनता के सेवक न मानकर उसके सिर का ताज मानकर बैठ गए .और जनता भी कौन दोषमुक्त कही जाएगी वह भी अपने स्वार्थ सिद्ध करने में जुट गयी और परिणाम यह हुआ की यहाँ स्वार्थपूर्ति की दोनों ओर से ऐसी रेलमपेल चली की देश हित गहरे अंधकार में डूब गया .विभिन्न संस्कृतियों ,भाषाओँ के मेल वाला हमारा यह देश आज ऐसे जंगल में फंसकर रह गया है जहाँ जिसको जितना हिस्सा मिल जाता है वह हड़प लेता है .कोई सख्ती यहाँ चल ही नहीं पाती और इसलिए कोई सही काम इस देश में होना एक स्वप्न बनकर रह गया है .चीन जैसा देश सख्ती से एक बच्चे का कानून लागु कर सकता है फिर भारत क्यूं नहीं ?चीन गुलाम नहीं होता क्योंकि वहां गद्दार नहीं हैं किन्तु भारत गुलाम होता है और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी उसी ताकत का गुलाम रहता है क्योंकि यह उसकी इच्छा में है .
कोई भी कार्य जब तक उसके पीछे जनशक्ति न हो ,होना इस देश में असंभव है क्योंकि यहाँ एक -एक वोट एक ऐसी संपत्ति है जिसे हासिल करने के लिए सत्ताधारी दल कोई भी जुगत भिड़ाते हैं .गुलामी के दौरान यहाँ की जनता अंग्रेजियत की ऐसी गुलाम हुई कि आज तक भी उस दासता से मुक्त नहीं हुई .”dogs and indians are not allowed ”भी आज तक हिन्दुस्तानियों का अंग्रेजी प्रेम न घटा पाए .किसी हिंदुस्तानी के घर के द्वार पर कहीं भी यह देखने को नहीं मिला कि ”अंग्रेजी का हम अपमान नहीं करते क्योंकि हमारे यहाँ अतिथि देवो भवः की परंपरा है किन्तु हिंदी के घर में अंग्रेजी मात्र अतिथि है और वही रहेगी ,वह इस मकान की मालकिन नहीं बन सकती .”और यह लिखा होना मुश्किल है क्योंकि यहाँ की जनता अंग्रेजी के रंग में ऐसी रंगी जा रही है कि ये कहना कि हिंदी बाज़ार की भाषा है ,तो ये भी कहाँ सच है ?
बाजार में दुकानों पर जो गर्व ”शॉप ”लिखने में महसूस किया जाता है वह दुकान लिखने में नहीं ,सर्राफ स्वयं को ”गोल्ड स्मिथ” कहलवाना ज्यादा पसंद करता है .पंसारी चाहता है कि उसे ”टिम्बर मर्चेंट ”कहा जाये .सर्राफ की दुकानों से चादर व् गोल तकिये गायब हो चुके हैं तकियों चादर का स्थान अब टेबिल-चेयर ने ले लिया है .बाजार में किसी उत्पाद के अभिकर्ता आयें या दुकानों पर उपभोक्ता अब कहाँ उनका स्वागत लस्सी या शरबत से होता है हर जगह चाय ,कॉफ़ी ,या फिर कोल्ड ड्रिंक ही इस्तेमाल होते हैं ..
दूसरी ओर ये कहना कि यह गरीबों अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गयी है तो ये भी गलत क्योंकि आज के गरीब अनपढ़ भी हिंदी बोलकर नीचा नहीं दिखना चाहते ,वे भी अंग्रेजी बोलते हैं और उसी में शान महसूस करते हैं .कमजोरी न कह ”वीक्नेक्स” बोलते हैं ”वीकनेस ”का अपभ्रंश .भले ही गलत बोल रहे हों किन्तु बोल तो अंग्रेजी रहे हैं इसका सुकून उनके चेहरे पर साफ देखा जा सकता है .अस्पताल की जगह हॉस्पिटल सबकी जबान पर चढ़ा है गवर्नमेंट कहने से सिर ऊँचा होता है सरकार कौन जानता है .और फिर मिसकॉल जनलोकप्रिय शब्द का स्थान ले चूका है कौन कहेगा इसे ”छूटी हुई पुकार ”
और क्या क्या कहें व् कहाँ कहाँ झांके ,हिंदी को तहखाने में मुहं बंद कर डाल चुकी अंग्रेजी अब उसी के घर में चाट पकौड़ी खा रही है और सभी को वही मालकिन नज़र आ रही है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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