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आधी बांह का कुरता पहने ,उलटे हाथ घडी है ,
सिर पर पगड़ी पहन सुनहरी ,त्यौरी चढ़ी पड़ी है .
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अपने घर को छोड़ के भागे ,बाप का माल हड़पने ,
काम पड़े पर कहे तुनककर ,मेरी नहीं अड़ी है .
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खुद के काम के ढोल बजाये ,और में कमी निकाले ,
अपनी बात की तारीफों की आदत इसे बड़ी है .
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शीशे के घर में रहकर ये ,मारे कंकड़ पत्थर ,
भूल गया खुद उसकी मूरत ,लाठी लिए खड़ी है .
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अपने दम आगे बढ़ने की ,हिम्मत नहीं है जिसमे ,
हाथ बांधकर वह हस्ती ही ,करने नक़ल बढ़ी है .
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जिस ताकत ने किया मुल्क का ,नाम जहाँ में ऊँचा ,
उसे मिटाने की सौगंध ले ,थामी हाथ छड़ी है .
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ख़तम अगर करने की कुव्वत ,ख़तम करो मक्कारी ,
जो सत्ता की दहलीजों में,दीमक लगी कड़ी है .
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खिले कमल है कीचड में ही ,सबने यहाँ है देखा ,
प्रभ चरण छूने को ”शालिनी” हाथ से नाल जुडी है .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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