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दलित नहीं है संविधान _______

! मेरी अभिव्यक्ति !
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भारतीय जनता पार्टी जबसे मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र में सत्ता में आयी है तबसे हर ओर भारतीय जनता पार्टी का इतना नाम हो न हो पर मोदी जी छाये हुए थे किन्तु जबसे योगी जी भी भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व करते हुए उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज हुए तबसे यही लगने लगा कि ज़रूर इस दल में कोई चमत्कार है और ऐसा वास्तव में है यह पता लगा भारतीय जनता पार्टी का इतिहास जानकर -भारतीय जनता पार्टी का मूल श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा १९५१ में निर्मित भारतीय जनसंघ है। १९७७ में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण हेतु जनसंघ अन्य दलों के साथ विलय हो गया। इससे १९७७ में पदस्थ कांग्रेस पार्टी को १९७७ के आम चुनावों में हराना सम्भव हुआ। तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद १९८० में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया। यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और १९८४ के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही। इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो १३ दिन चली।

१९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले १० वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में सरकार का बनायी। इसके अलावा जुलाई २०१४ के अनुसार पार्टी पाँच राज्यों में सता में है।

भाजपा की कथित विचारधारा “एकात्म मानववाद” सर्वप्रथम १९६५ में दीनदयाल उपाध्याय ने दी थी। पार्टी हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। पार्टी सामाजिक रूढ़िवाद की समर्थक है और इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित है। जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा ख़त्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं। हालाँकि १९९८-२००४ की राजग सरकार ने किसी भी विवादास्पद मुद्दे को नहीं छुआ और इसके स्थान पर वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही।

और यही कारण रहा कि भाजपा में आज तक वह चमत्कार नहीं दिखा जो अब दिखाई दे रहा है ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय तक सिमटी रहने वाली भाजपा ने अब समझ लिया है कि भारत में अगर सत्ता के केंद्र में रहना है तो भारत की नब्ज़ को छेड़ना होगा और यह भी कि भारत की नब्ज़ पंडित दीन  दयाल उपाध्याय में नहीं भीमराव अम्बेडकर में बसती है क्योंकि भारत के दलितों के वे देवता हैं ,भगवान हैं और दलित इस देश में इतनी संख्या में हैं कि वे नेताओं के अनुसार सत्ता पलटने का माद्दा रखते हैं इसलिए वे दलितों पर विचारकर अम्बेडकर को अपने लिए अपनाना सबसे ज्यादा फायदेमंद मानते हैं

दलितों का इस देश में क्या स्थान है ये हम सब भी जान लें तो शायद राजनीति के मोदी-शाह की तरह प्रकांड पंडित बन जायेंगे -दलित का मतलब पहले पीड़ित , शोषित, दबा हुआ, खिन्न, उदास, टुकडा, खंडित, तोडना, कुचलना, दला हुआ, पीसा हुआ, मसला हुआ, रौंदा हुआ, विनष्ट हुआ करता था, लेकिन अब अनुसूचित जाति को दलित बताया जाता है, अब दलित शब्द पूर्णता जाति विशेष को बोला जाने लगा हजारों वर्षों तक अस्‍पृश्‍य या अछूत समझी जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्‍त होता है जो हिंदू धर्म शास्त्रों द्वारा हिंदू समाज व्‍यवस्‍था में सबसे निचले (चौथे) पायदान पर स्थित है। और बौद्ध ग्रन्थ में पाँचवे पायदान पर (चांडाल) है संवैधानिक भाषा में इन्‍हें ही अनुसूचित जाति कहा गया है। भारतीय जनगणना  2011 के अनुसार भारत की जनसंख्‍या में लगभग 16.6 प्रतिशत या 20.14 करोड़ आबादी दलितों की है। आज अधिकांश हिंदू दलित बौद्ध धर्म के तरफ आकर्षित हुए हैं और हो रहे हैं, क्योंकि  बौद्ध बनने से हिंदू दलितों का विकास हुआ हैं।

दलितों के एक नए मसीहा के रूप में भारतीय जनता पार्टी के मसीहा स्वयं को स्थापित कर ही रहे थे ,अपने को मणिशंकर के नीच कहने पर स्वयं की जाति को नीच न कहे जाने पर भी नीच में शामिल कर रहे थे ताकि दलितों में अपनी भली भांति घुसपैंठ बना सकें किन्तु तभी मोदी की भूलने की बीमारी मोदी के मंत्री अनंत हेगड़े को लग गयी और वे कुछ ऐसा बोल गए जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था और वह यह था -”संविधान को बदले जाने की ज़रुरत है और हम इसे बदलने ही आये हैं ”

परिणाम में हंगामा होना ही था और वह शुरू हुआ और फिर शुरू हुआ मरहम-पट्टी का दौर और इसकी मरहम-पट्टी करते हुए उत्तर प्रदेश के  मुख्यमंत्री योगी ने घोषणा की कि प्रदेश के सभी कार्यालयों में डा0अंबेडकर की फोटो लगाई जायेगी।

राज्यपाल ने कहा कि डॉ0 अम्बेडकर ने सबको साथ लेकर संविधान की रचना की। संविधान का अध्याय समाज को जोड़ता है।राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल और प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री को क्या करना है। सबको संविधान के माध्यम से बताने का प्रयास किया। उन्होंने डॉ अम्बेडकर को देखा है। सभी को वोट का अधिकार भी संविधान की देन है। महिलाओं को अधिकार भी संविधान ने दिलाया। पहले 21वर्ष वोट देने की थी लेकिन अब 18 साल है। यह भी संविधान की देन है।

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि डॉ0 अंबेडकर ने समाज के सभी वर्गो की भलाई करने वाले संविधान का निर्माण किया। वह चाहते थे कि समतामूलक समाज की स्थापना हो । उन्होने घोषणा की कि प्रदेश के सभी कार्यालयों में अंबेडकर की फोटो लगाई जायेगी।

और ये पहली  बार नहीं है कि संविधान निर्माण को लेकर बाबासाहेब  भीम राव अम्बेडकर का ही गुणगान किया जा रहा हो,वोट की खातिर नेतागणों द्वारा यह एक परिपाटी के रूप में अपना लिया गया है , वास्तविकता में संविधान सामूहिक प्रयासों से निर्मित हुआ और हमारे नेतागणों ने वोट पर निर्भरता को देखते हुए भीमराव अम्बेडकर को ही संविधान का सिरमौर कहना शुरू किया जबकि ये हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का और हमारे कुछ देश हित को समर्पित नेतागणों का मिला जुला प्रयास था ,

संविधान निर्माण की सर्वप्रथम मांग 1895  में बाल गंगाधर तिलक द्वारा स्वराज विधेयक के द्वारा की गयी ,1922  में महात्मा गाँधी ने संविधान सभा व् संविधान निर्माण की मांग प्रबलतम तरीके से की और कहा कि जब भी भारत को स्वाधीनता मिलेगी -”भारतीय संविधान का निर्माण भारतीय लोगों की इच्छाओं के अनुकूल किया जायेगा” ,अगस्त 1928  में नेहरू रिपोर्ट बनायीं गयी जिसकी अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरू ने की ,इसका निर्माण बम्बई में किया गया ,इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत का पहला लिखित संविधान बनाया गया ,मार्च 1946  में केबिनेट मिशन भारत भेजा गया जिसकी अध्यक्षता सर पैथिक लॉरेंस ने की इनकी सिफारिशों के आधार पर एक संविधान सभा की रचना की गयी इसी के आधार पर अंतरिम सरकार का गठन किया गया जिसने 2सितम्बर 1946  से कार्य करना आरम्भ किया इस सरकार के अध्यक्ष तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवेल थे और उपाध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे ,१५ अगस्त १९४७ को देश स्वतंत्र हुआ और तब नयी संविधान सभा का निर्माण हुआ पहली बैठक 9  दिसंबर 1946  को हुई जिसमे अस्थायी अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा को बनाया गया ,दूसरी बैठक 11  दिसंबर 1946  को हुई जिसमे स्थायी अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया ,इसी बैठक में उपाध्यक्ष एच-सी-मुखर्जी थे तथा संवैधानिक सलाहकार डॉ बी-एन -राव थे , संविधान सभा की कार्यवाही 13 दिसंबर, 1946 ई. को जवाहर लाल नेहरू द्वारा पेश किए गए उद्देश्य प्रस्‍ताव के साथ प्रारम्भ हुई.  22 जनवरी, 1947 ई. को उद्देश्य प्रस्ताव की स्वीकृति के बाद संविधान सभा ने संविधान निर्माण हेतु अनेक समितियां नियुक्त कीं. इनमे प्रमुख थी- वार्ता समिति, संघ संविधान समिति, प्रांतीय संविधान समिति, संघ शक्ति समिति, प्रारूप समिति. बी.एन.राव द्वारा किए गए संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के लिए संविधान सभा द्वारा 29 अगस्त, 1947 को एक संकल्प पारित करके प्रारूप समिति का गठन किया गया तथा इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ भीमराव अम्बेडकर को चुना गया. प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या सात थी, जो इस प्रकार है:

i. डॉ. भीमराव अम्बेडकर (अध्यक्ष)

ii. एन. गोपाल स्वामी आयंगर

iii. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर

iv. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

v. सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला

vi. एन. माधव राव (बी.एल. मित्र के स्थान पर)

vii. डी. पी. खेतान (1948 ई. में इनकी मृत्यु के बाद टी. टी. कृष्माचारी को सदस्य बनाया गया).

3 जून, 1947 ई. की योजना के अनुसार देश का बंटवारा हो जाने पर भारतीय संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 324 नियत की गई, जिसमें 235 स्थान प्रांतों के लिय और 89 स्थान देसी राज्यों के लिए थे. देश-विभाजन के बाद संविधान सभा का पुनर्गठन 31 अक्टूबर, 1947 ई. को किया गया और 31 दिसंबर 1947 ई. को संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या 299 थीं, जिसमें प्रांतीय सदस्यों की संख्या एवं देसी रियासतों के सदस्यों की संख्या 70 थी. प्रारूप समिति ने संविधान के प्रारूप पर विचार विमर्श करने के बाद 21 फरवरी, 1948 ई. को संविधान सभा  को अपनी रिपोर्ट पेश की. संविधान सभा में संविधान का प्रथम वाचन 4 नवंबर से 9 नवंबर, 1948 ई. तक चला. संविधान पर दूसरा वाचन 15 नवंबर 1948 ई० को प्रारम्भ हुआ, जो 17 अक्टूबर, 1949 ई० तक चला. संविधान सभा में संविधान का तीसरा वाचन 14 नवंबर, 1949 ई० को प्रारम्भ हुआ जो 26 नवंबर 1949 ई० तक चला और संविधान सभा द्वारा संविधान को पारित कर दिया गया. इस समय संविधान सभा के 284 सदस्य उपस्थित थे. संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे. इस कार्य पर लगभग 6.4 करोड़ रुपये खर्च हुए. संविधान के कुछ अनुच्छेदों में से 15 अर्थात 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392 तथा 393 अनुच्छेदों को 26 नवंबर, 1949 ई० को ही परिवर्तित कर दिया गया; जबकि शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी, 1950 ई० को लागू किया गया. संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 ई० को हुई और उसी दिन संविधान सभा के द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया.

अब अगर हम आपस में विचार विमर्श करें तो क्या हम संविधान को एकमात्र अम्बेडकर की देन कह पाएंगे शायद नहीं क्योंकि हमें दलितों को उनके मसीहा बनकर दिखाकर उनसे वोट नहीं हड़पनी हैं और हमें यह भी पता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत सम्बन्धी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा जिसमें ३ मंत्री थे। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसम्बर 1946 से आरम्भ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अम्बेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन बैठक की। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतन्त्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए उनकी सेवाओं को सम्मान देने के लिए उन्हें  ‘संविधान का निर्माता’ कहा जाता है। संविधान को 26 जनवरी1950 को लागू किया गया था तो ये सब जानते हुए दलितों को बहकाकर उन्हें भीमराव अम्बेडकर के नाम पर ठगने का क्या मतलब है अगर ऐसे ही ठगना है तो फिर डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाम पर भी तो ठग सकते हैं किन्तु पता है कि वे किसी अल्पसंख्यक कोटे से नहीं थे और उनके अनुयायियों को उनके शोषण के नाम पर ठगा नहीं जा सकता ,

और रही २१ से १८ वर्ष वालों को वोटिंग अधिकार की बात तो सब जानते हैं कि ये अधिकार संविधान ने नहीं राजीव गाँधी की कॉंग्रेस सरकार ने दिया पर क्योंकि राजीव गाँधी व् कॉंग्रेस पार्टी मोदी-योगी के विरोधी पक्ष से हैं इसलिए उनका नाम ये नहीं लेंगे कहीं वोट बैंक उनकी तरफ न मुड़ जाये और अगर ये कहें कि हमारे ऐसा कहने के क्या सबूत हैं तो वे यह हैं –

भारत के निचले सदन ने 18 साल के बच्चों को वोट देने वाला बिल पारित किया

सान्याह हजरारीका द्वारा,  न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए विशेष

प्रकाशित: 16 दिसंबर, 1988

नई दिल्ली, 15 दिसंबर – प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने आज संसद के निचले सदन के माध्यम से संवैधानिक संशोधन को धक्का दिया, जिसने मतदान की उम्र 21 साल से घटाकर 18 कर दी, जिससे 50 मिलियन से अधिक लोगों को मतदान का अधिकार दिया गया।

इस प्रकार बार बार संविधान निर्माता के नाम पर बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर का नाम लिया जाना इन सभी राजनीतिक दलों द्वारा बंद किया जाना चाहिए क्योंकि सच्चाई इस सबसे परे हैं और ये संविधान की सेवा में समर्पित हमारे सभी देश बंधुओं का अपमान है ,संविधान निर्माण में हमारे किस किस कार्यकर्ता का हाथ है यह मात्र इतना सा ही नहीं है जितना यहाँ लिखा है बल्कि इसमें हम सभी भारतवासियों का हाथ है और यही कारण है कि इसकी प्रस्तावना में ”हम भारत के लोग ” शब्द का जिक्र किया गया है इसलिए कृपया हमारे नेतागण बाबा साहेब के नाम  पर दलितों को पागल बनाना बंद करें और दलित भाई भी उनके नाम के इस तरह के ठगों से बुलवाना बंद करें ताकि एक देशभक्त सच्चे कार्यकर्ता बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर की आत्मा को शांति पहुंचे क्योंकि अगर उनकी भावना अपना नाम ही बुलवाने की होती तो क्या वे संविधान की प्रस्तावना में ये शब्द जोड़ते -इसे पढ़िए और सोचिये –

संविधान की प्रस्तावना

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

शालिनी कौशिक

[कौशल ]








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