! मेरी अभिव्यक्ति !
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मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती,
बनके ज़हर जो जिंदगी जीने नहीं देती.
जी लेता है इन्सान गर्दिशी हज़ार पल,
एक पल भी हमको साँस ये लेने नहीं देती.
भूली हुई यादों के सहारे रहें गर हम,
ये जिंदगी राहत से गुजरने नहीं देती.
जीने के लिए चाहियें दो प्यार भरे दिल,
दीवार बनके ये उन्हें मिलने नहीं देती.
बैठे हैं इंतजार में वो मौत के अगर,
आगोश में लेती उन्हें बचने नहीं देती.
शालिनी कौशिक
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