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मिथ्या वाद भी दंडनीय

! मेरी अभिव्यक्ति !
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आजकल जहाँ एक तरफ न्यायालयों की धीमी प्रक्रिया को देखते हुए लोगों द्वारा अपना अधिकार छोड़कर न्यायालयीन वादों को समझौतों द्वारा निपटने के प्रयास जारी हैं वहीँ कितने ही मामलों में न्यायालयों में अपनी अनुचित मांगें मनवाने को झूठे वाद दायर करने की भी एक परंपरा सी चल पड़ी है ,ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 182 दंड का प्रावधान करती है ,धारा 182 भारतीय दंड संहिता में कहा गया है –
-धारा 182 -जो कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी इत्तिला ,जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है ,इस आशय से देगा कि वहयह उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको तद्द्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोक सेवक –
[क]-कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे ,जिसे वह लोक सेवक ,यदि उसे उस सम्बन्ध में ,जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गयी है ,तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता ,अथवा
[ख]-ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो ,
वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से जो एक हज़ार रूपये तक का हो सकेगा ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा ,
तो अब ध्यान रखें की यदि आप पर या आपके किसी जानकार पर किसी ने मिथ्या वाद दायर किया है और ऐसा कोर्ट में भी साबित हो जाता है तो उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 182 के तहत कार्यवाही अवश्य करें और दोषी को दण्डित कराएं ,
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

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