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मेरी चाय में कहे तू कैसे ,स्वाद नहीं है आता

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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चले पहनकर सिर पर टोपी .अचकन और पजामी ,
मियां शराफत ने हाथों में ले ली बेंत बदामी .
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इत्र लगाया बांह पर अपनी ,मूंछ को किया रंगीन ,
जूती पहनी पाकिस्तानी ,पैर न छुए ज़मीन .
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मिले अकड़कर गले दोस्त के ,बोले भाई सलाम ,
तुमसे मिलने हम हैं आये ,छोड़ के काम तमाम .
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अबकी बार खड़ा हूँ तेरे ,शहर विधायक पद पर ,
जिम्मेदारी मुझे जिताने की ,तेरे काँधे पर .
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हम दोनों की जात एक है ,काम भी एक है प्यारे ,
मेरा साथ अगर तू दे दे ,होंगे वारे न्यारे .
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मैं बेचूं हूँ रोज़ तरक्की ,तुझको ख्वाब दिखाकर ,
तू बेचे है आटा चावल ,कंकड़ धूल मिलाकर .
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मेरी चाय में कहे तू कैसे ,स्वाद नहीं है आता,
तेरे घर से दूध में पानी ,आता दूध से ज्यादा .
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मैंने भला कहा क्या सबको ,तू झूठा मक्कार ,
अब मेरे साथ में मेरे जैसा ,करना मेरे यार .
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जैसे तेरी चलवाई है ,मेरी तू चलवाना ,
अबकी बार मुझी को अपनी ,सारी वोट दिलाना .
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नेताओं के भेदभाव को ,दोस्त न तू अपनाना ,
तेरे आगे हाथ मैं जोडूं ,मुझे न भूल जाना .
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हाथ मिलकर गले लगाकर ,चले मियां जी आगे ,
पकड़के माथा दोस्त सोचता ,क्या देखा जब जागे .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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