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ये प्रेम जगा है .

! मेरी अभिव्यक्ति !
! मेरी अभिव्यक्ति !
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ज़रुरत पड़ी तो चले आये मिलने
न फ़ुरसत थी पहले
न चाहत थी जानें
हैं किस हाल में मेरे अपने वहां पर
खिसकने लगी जब से पैरों की धरती
उडी सिर के ऊपर से सारी छतें ही
हड़पकर हकों को ये दूजे के बैठे
झपटने लगे इनसे भी अब कोई
किया जो इन्होने वो मिलने लगा है
तो अपनों की खातिर ये प्रेम जगा है .

………………………………….

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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