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लोकसभा चनाव २०१४ नज़दीक हैं और इसलिए सर्वाधिक सुर्ख़ियों में हैं हमारे राजनेता .सत्ता कौन नहीं चाहता ,कुर्सी का नशा हर किसी के सिर चढ़कर बोलता है .हर कोई जो ओखली स्वरुप राजनीति में सिर घुसा देता है वह मूसल स्वरुप किसी आरोप अस्त्र से नहीं डरता और फिर वह जिसे जैसे भी हो जैसे जनता को उसका दिल जीतकर ,उसको लुभाकर ,बहकाकर अपने लिए कुर्सी का प्रबंध कर ही लेता है .सभी जानते हैं कि नेता होने के मायने क्या हैं ,”सिकंदर हयात ”जी के शब्दों में –
”मुझे इज़ज़त की परवाह है ,न मैं ज़िल्लत से डरता हूँ ,
अगर हो बात दौलत की ,तो हर हद से गुज़रता हूँ ,
मैं नेता हूँ मुझे इस बात की है तरबियत हासिल
मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद करता हूँ .”
और नेता की यही असलियत उसे आमतौर पर जनता के व्यंग्य के तीर झेलने को मजबूर करती है .चाहे-अनचाहे उसे ऐसी बहुत सी बाते सहनी पड़ती हैं जिससे उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता भी नहीं होता किन्तु वह यह सहता है क्योंकि वह ताकत उसे राजनीति से मिलती है ,वह सामर्थ्य उसे जनता के स्नेह और कभी स्वार्थ से मिलता है और इन्ही के बल पर वह झूठे-सच्चे सभी आरोपों को झेल जाता है. जनता के आरोप झेलना अलग बात है क्योंकि जनता का राज है यहाँ किन्तु आज भारतीय राजनीति एक ऐसी दिशा में जा रही है जहाँ स्वयं राजनीति के धुरंधर एक दूसरे पर स्वयं को पाक-साफ़ दिखाते हुए आरोपों के तीर चला रहे हैं जिन्हें सहने को तो यहाँ कोई भी तैयार नहीं दिखता .भारतीय राजनीति के आकाश में अभी हाल ही में एक नयी पार्टी का उदय हुआ है और चूँकि अभी तक उसके हाथ में सत्ता की कुंजी का कोई सिरा भी नहीं था इसलिए वह फिलहाल बेदाग होने का दम भरकर लोगों की आँख में काजल बनकर बस गयी है और इसके चंद नेता जो अपनी जिम्मेदारियों को निभाने से मुंह चुराए हुए थे यहाँ आकर स्वयं को जनता के सबसे बड़े खैर-ख्वाह दिखाने लगे और बरसों से जनता के हित में लगे हमारे नेताओं पर मनचाहे आरोप लगाने लगे .आरोप सही हैं या गलत कहना मुश्किल है किन्तु जिन पर लगाये जा रहे हैं उनका तिलमिलाना स्वाभाविक है क्योंकि जब तक आरोप के साथ सबूत न हों तब तक वे विश्वसनीय नहीं होते किन्तु ये बात बुद्धिजीवी वर्ग समझ सकता है .भारत की आम जनता जिसमे अनपढ़ ,निरक्षर लोगों की संख्या काफी ज्यादा है वे इस बात को समझेंगे ये विश्वास करना कठिन है और इसी बात का फायदा उठाकर ये पार्टी जो स्वयं को आम आदमी पार्टी कहती है उसी आम आदमी को पागल बनाने में लगी है और उनकी नज़रों में वर्त्तमान राजनेताओं की बरसों से की गयी मेहनत पर ऊँगली उठाकर हमारी लोकतंत्रात्मक प्रणाली को ध्वस्त करने में जुटी है .
अरविन्द केजरीवाल रोज़ प्रैस कॉन्फ्रेंस करते हैं और रोज़ किसी न किसी नेता के खिलाफ भ्रष्ट होने का आरोप लगाकर आग उगलते रहते हैं .जिस प्रकार वे बाकायदा मंच सजाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने मुंह में जो आया वह कहने में लगे हैं वह मानहानि की श्रेणी में आता है और इसलिए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उन्हें मानहानि का नोटिस भेजा है .भारतीय दंड संहिता की धारा ४९९ कहती है –
धारा ४९९-मानहानि-जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा ,या संकेतों द्वारा ,या ऐसे दृश्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाये या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी ,ऐतस्मिन पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है .
भारतीय संविधान ने भारतीयों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी है और इस कानून ने भी कुछ दशाओं में ऐसे कथनों का बचाव किया है किन्तु केजरीवाल और उनकी टीम जैसे आग उगल रही है उससे तो यही प्रकट होता है कि जैसे ये सब ही करप्शन मीटर हैं और मात्र ये ही पब्लिक हैं वही पब्लिक जिसके बारे में ये कहा जाता है –
”ये जो पब्लिक है ये सब जानती है पब्लिक है
अजी अंदर क्या है अजी बाहर क्या है
अंदर क्या है बाहर क्या है
ये सब कुछ पहचानती है पब्लिक है
ये सब जानती है
पब्लिक है .”
और पब्लिक होने के नाते उन्हें ये सब कहने का हक़ है किन्तु इस धारा ४९९ द्वारा दिए गए इन बचावों के अनुसरण में ही जो निम्न प्रकार हैं –
केजरीवाल और उनका दल इन अपवादों में से कई का सहारा अपने बचाव में ले सकता है किन्तु उन्हें ये साबित करना होगा कि उन्होंने जो कुछ कहा वह उन अपवादों के अधीन आता है और इसलिए उन्हें अपने आरोपों के साथ में सबूत भी देने होंगें क्योंकि यह अज्ञानियों के ,निरक्षरों के समूह में ही हो सकता है कि उनके आरोपों को उनकी वाचाल व् निरंकुश भाषण शैली के आधार पर सत्य मान लिया जाये किन्तु बुद्धिजीवियों से भरे इस देश में और कानून के अनुसार चलने की महत्वाकांक्षा वाले इस राष्ट्र में हर तथ्य की सच्चाई के लिए सबूत चाहियें और इसलिए ये सबूत भी इन्हें ही देने होंगें क्योंकि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा १०१ कहती है –
” कि जो कोई न्यायालय से यह चाहता है कि वह ऐसे किसी विधिक अधिकार या दायित्व के बारे में निर्णय दे जो उन तथ्यों के अस्तित्व पर निर्भर है ,जिन्हें वह प्रख्यात करता है ,उसे साबित करना होगा कि उन तथ्यों का अस्तित्व है ………”
और धारा १०३ कहती है –
”कि किसी विशिष्ट तथ्य के सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो न्यायालय से यह चाहता है कि वह उसके अस्तित्व में विश्वास करे ,जब तक कि किसी विधि द्वारा उपबंधित न हो कि उस तथ्य के सबूत का भार किसी विशिष्ट व्यक्ति पर होगा .”
अब चूँकि ये आरोप जनता के समक्ष ही लगाये जा रहे हैं तो यहाँ जनता ही न्यायालय की भूमिका में है और इसलिए जनता के समक्ष सबूत पेश किया जाना केजरीवाल व् उनके साथियों का दायित्व है क्योंकि मात्र आरोप लगाना उन बादलों के समान ही है जो गरजते हैं बरसते नहीं .यदि उनके पास सबूत हैं तो पेश करें और यदि सबूत नहीं हैं तो उनकी इस तरह की कार्यवाही देश विरोधी ही कही जायेगी क्योंकि इस तरह वे अपनी ऊँगली हमारे देश के लगभग सभी पूर्व व् वर्त्तमान नेताओं पर उठा रहे हैं और लगभग सभी को भ्रष्टाचार के लिए जनता की कोर्ट में कठघरे में खड़ा कर रहे हैं जैसे आज तक देश को चलाने और सँभालने का काम उन्होंने ही किया हो और उनके अतिरिक्त सभी नेताओं ने केवल देश को लूटने व् खसोटने का .जैसे कि सभी उंगली समान नहीं होती वैसे ही सभी नेता उनके आरोपों की श्रेणी में नहीं आते और यदि केजरीवाल व् उनके सहयोगी सबूत नहीं रखते तो उन्हें कोई हक़ नहीं बैठता इस तरह ऊँगली उठाने का क्योंकि जैसे सिकंदर हयात जी का नेताओं के बारे में कहा गया शेर सही है वैसे ही मेरे द्वारा कहा गया शेर भी गलत नहीं है –
”फिकर रहती है दिन और रात ,तुम्हारा घर बनाने की ,
फिकर रहती सुबह और शाम ,तुम्हें आगे बढ़ाने की ,
तुम्हारे जीवन में खुशियां,हैं लाना फ़र्ज़ ये मेरा
फिकर रहती खिला भरपेट ,सुखों की नींद लाने की .”
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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