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इरोम शर्मिला: एक जलती मशाल

बात पते की....
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‘‘ ‘‘ सन् 2000 में भारतीय फौजियों ने शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) के कस्बे में घुसकर कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया था । मणिपुर पूर्वोतार राज्य में सेना को ‘‘विशेष अधिकार अधिनियम’’ के तहत किसी को भी गिरफ़्तार करने और बिना मुकद्दमा चलाये अपने कब्जे मे रखने के अधिकार प्राप्त है। इन अधिकारों का सेना के लोगों ने भरपूर दुरुपयोग किया है। ऐसी कई घटनाओं में सेना के इस अमानवीय व्यवहार की बात सामने आ रही है। ना जाने कितने बेगुनाहों को मौत के घाट उतार चुके हैं ये लोग। 2000 में शर्मिला की दुनिया उजड़ने के बाद उसने इस विशेषधिकार कानून के खिलाफ़ अपनी लडाई शुरु की। एक असहाय के पास ‘गांधीवादी’ से बड़ा कोई हथियार नहीं था और इस हत्याकाण्ड के बाद शार्मिला ने भूख हड्ताल शुरू कर दी।

Kolkata: Wednesday 14.09.2011

हम यदि जानवरों पर भी ऐसा व्यवहार करें तो सारी दुनिया में इसके खिलाफ आवाजें उठ जाती है परन्तु भारत के कुछ हिस्सों में गोलियों से सरेआम सेनाबल इंसानों को सड़कों पर भून देती है और सरकार चूँ तक नहीं करती। जी हाँ! आज मणिपुर की इरोम शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) की एक अपील श्री अण्णा हजारे के नाम समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला। हांलाकि इस आंदोलन के बारे में मुझे कोई विशेष जानकारी नहीं थी इसलिए नेट का सहारा लेकर पहले संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया। पता चला की हमारे देश की सरकार दरिन्दों के शिकार करने के कानून से इंसानों का भी शिकार करती है जानकर हमें न सिर्फ ग्लानि हो रही है साथ ही मन करता है कि तत्काल हमें इरोम शर्मिला की मांग पर न सिर्फ संसद में बहस करनी चाहिए, इरोमा की रिहाई एवं इसके आंदोलन को पूरे भारत का समर्थन मिलना चाहिए।

इस लेख की पृष्ठभूमि पर जाने से पहले आपको मणिपुर की महिलाओं द्वारा किए जाने वाले सैकड़ों आंदोलनों के इतिहास में मणिपुरी महिलाओं का ही योगदान रहा है। उनके अन्दर से निकलने वाली जनचेतना की आग को मणिपुर साहित्य में काफी सम्मानित स्थान दिया जाता है।

देश में बंगाल के बाद मणिपुर ही देश का एक ऐसा राज्य है जहाँ देश की महिलाएं अपने सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों के प्रति काफी न सिर्फ सजग है पुरुषों से एक-दो कदम नहीं काफी आगे मानी जाती रही है। यहाँ की महिलाएं अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति न सिर्फ सजग रहती हैं। अपने अधिकारों को प्राप्त करने क लिए संघर्षरत भी रही है। इरोम शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) इसी आग की एक कड़ी है। सबसे पहले अपनी कलम से आपको नमन करता हूँ। जिस प्रकार श्री अण्णाजी का संघर्ष महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव रालेगांव सिद्धि से उठकर देश में जनचेतना की एक मिशाल बन गई। उसी प्रकार एक दिन मणिपुर की महिलाऐं भी देशभर की महिलाओं के अन्दर व्याप्त भय को समाप्त कर राजनीति को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करेगीं मेरा मानना है। मणिपुरी महिलाऐं देश के लिए ‘मीरा पेबिस’ बनकर देश की महिलाओं का पथप्रदर्शक बनेगी। मणिपुर में ‘मीरा पेबिस’ का शाब्दिक अर्थ है महिलाओं के हाथों में मशाल। इसे क्रांति का सूचक माना जाता है।

इस देश की शर्मनाक दशा यह है कि हम पोटा जैसे देश की सुरक्षा से जुड़े कानून अथवा आंतकवादिओं को सजा देने के कानून को कमजोर करने की पूर जोड़ वकालत संसद में और संसद के बाहर करते नजर आते हैं। देश की सुरक्षा को कमजोर करने के लिए सांप्रदायिक ताकतों से यह कह कर हाथ मिला लेते हैं कि अल्पसंख्यकों को वेबजह तंग किया जाता है। माना की कानून का दूरुपयोग किया जाता रहा है। अभी हाल ही में उच्च न्यायालय ने भी जमीन अधिग्रहण कानून को लेकर भी कुछ इसी प्रकार की टिप्पणी की है जबकि उच्च न्यायालय खुद इसी कानून के पक्ष में हजारों फैसले सुना चुकी है। परन्तु सरकार की नजर में हर पक्ष को देखने का नजरिया अलग-अलग होने से देश के कुछ भागों में जनता के मन में एक असंतोष की भावना व्याप्त है।

सन् 2000 में भारतीय फौजियों ने शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) के कस्बे में घुसकर कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया था । मणिपुर पूर्वोतार राज्य में सेना को ‘‘विशेष अधिकार अधिनियम’’ के तहत किसी को भी गिरफ़्तार करने और बिना मुकद्दमा चलाये अपने कब्जे मे रखने के अधिकार प्राप्त है। इन अधिकारों का सेना के लोगों ने भरपूर दुरुपयोग किया है। ऐसी कई घटनाओं में सेना के इस अमानवीय व्यवहार की बात सामने आ रही है। ना जाने कितने बेगुनाहों को मौत के घाट उतार चुके हैं ये लोग। 2000 में शर्मिला की दुनिया उजड़ने के बाद उसने इस विशेषधिकार कानून के खिलाफ़ अपनी लडाई शुरु की। एक असहाय के पास ‘गांधीवादी’ से बड़ा कोई हथियार नहीं था और इस हत्याकाण्ड के बाद शार्मिला ने भूख हड्ताल शुरू कर दी।

Written By: Shambhu Choudhary, Kolkata
http://ehindisahitya.blogspot.com/

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