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व्यंग्य-दिल्ली ठगों की नगरी?

बात पते की....
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व्यंग्य-दिल्ली ठगों की नगरी?
हमने सुना था कि दिल्ली ठगों की नगरी है। यह भी सुन रखा है कि देशभर के ठगों का जमावरा दिल्ली में ही होता है। मेला लगा रहता है वहाँ हर रोज। विभिन्न प्रकार के जाति-प्रजाति के जीवजंतु आतें हैं दिल्ली।
देश की राजधानी भी है दिल्ली। लूटरों की नगरी है भी है दिल्ली। देश का धन लूटने के लिए यहां चलती है एक विधिवत संस्था। जहाँ सिर्फ लूटरों की ही होती है भर्ती। गलती से कुछ अच्छे लोगों की भर्ती हो जाती है परन्तु वे भी लूट की विद्या सीख माहिर हो जातें हैं। हाँ! वे खुद तो सामने नहीं आते पर लूटरों को लूटने का भरपुर अवसर प्रदान करते हैं। एक-एक के खजानों में करोड़ों की रकम जमा हो गई। कोई पूछने वाला तक भी नहीं।  भाई! इतना धन कहां से लाये हो? कैसे रातों-रात इतना धन जमा हो गया भाई?
उनके पास सीधा सा जबाब है बोले तो सरकार गिरा दूंगा। सरकार चलानी है कि नहीं? लो भाई! अब इन लूटरों से कोई पंगा लेगा भी तो कैसे लेगा? धीरे-धीरे इस लूट में अब देश की कई जानी-मानी कंपनियाँ भी शामिल हो गई। सबको पता चल गया कि दिल्ली में लूट का धंधा जोरों से फल-फूल रहा है। अब तो कुछ विदेशी कम्पनियाँ भी इस बहती गंगा में हाथ धोने दिल्ली चली आयी है। इस लूट के हिस्सेदार भला यह कैसे चाहेगें कि दिल्ली को दूसरों के हाथ में सौंप दिया जाए?
दिल्ली में खुद को ठगा सा महसूस कर रही है तो वहां की आम जनता जिसे दिल्ली का राज्य का दर्जा तो मिला, सरकार भी अपनी बना ली, पर काम तो वहीं होगा जो दिल्ली के ठग चाहेंगें। अब हर बात में अब आम आदमी को वहां के एल.जी के पास जाना पड़ता है। सर! ये काम कर दो, सर! उसको हटा दो ना, सर वह महिला आयोग की महिला मेरा पीछा कर रही है उसको बदल दो न, सर वो सिपाही मुझे आंख दिखा रहा है। उसे सस्पेंड कर दो न।
अब जरा आप भी सोचो एक सिपाही के वह पास ताकत है वहाँ के कानून मंत्री धमका दे। दिल्ली के कानून मंत्री को कोई ताकत नहीं कि वह उसे हटा सके। है न कमाल की बात? भले ही ‘आप’ की सरकार दिल्ली में हो पर दिल्ली तो आज भी चलेगी ठगों के माध्यम से ही।– शम्भु चौधरी 30.01.2014
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दिल्ली  खुद को ठगा सा महसूस कर रही है तो वहां की आम जनता जिसे दिल्ली का राज्य का दर्जा तो मिला, सरकार भी अपनी बना ली, पर काम तो वहीं होगा जो दिल्ली के ठग चाहेंगें। अब हर बात में अब आम आदमी को वहां के एल.जी के पास जाना पड़ता है। सर! ये काम कर दो, सर! उसको हटा दो ना, सर वह महिला आयोग की महिला मेरा पीछा कर रही है उसको बदल दो न, सर वो सिपाही मुझे आंख दिखा रहा है। उसे सस्पेंड कर दो न।

हमने सुना था कि दिल्ली ठगों की नगरी है। यह भी सुन रखा है कि देशभर के ठगों का जमावरा दिल्ली में ही होता है। मेला लगा रहता है वहाँ हर रोज। विभिन्न प्रकार के जाति-प्रजाति के जीवजंतु आतें हैं दिल्ली।

देश की राजधानी भी है दिल्ली। लूटरों की नगरी है भी है दिल्ली। देश का धन लूटने के लिए यहां चलती है एक विधिवत संस्था। जहाँ सिर्फ लूटरों की ही होती है भर्ती। गलती से कुछ अच्छे लोगों की भर्ती हो जाती है परन्तु वे भी लूट की विद्या सीख माहिर हो जातें हैं। हाँ! वे खुद तो सामने नहीं आते पर लूटरों को लूटने का भरपुर अवसर प्रदान करते हैं। एक-एक के खजानों में करोड़ों की रकम जमा हो गई। कोई पूछने वाला तक भी नहीं।  भाई! इतना धन कहां से लाये हो? कैसे रातों-रात इतना धन जमा हो गया भाई?

उनके पास सीधा सा जबाब है बोले तो सरकार गिरा दूंगा। सरकार चलानी है कि नहीं? लो भाई! अब इन लूटरों से कोई पंगा लेगा भी तो कैसे लेगा? धीरे-धीरे इस लूट में अब देश की कई जानी-मानी कंपनियाँ भी शामिल हो गई। सबको पता चल गया कि दिल्ली में लूट का धंधा जोरों से फल-फूल रहा है। अब तो कुछ विदेशी कम्पनियाँ भी इस बहती गंगा में हाथ धोने दिल्ली चली आयी है। इस लूट के हिस्सेदार भला यह कैसे चाहेगें कि दिल्ली को दूसरों के हाथ में सौंप दिया जाए?

दिल्ली खुद को ठगा सा महसूस कर रही है तो वहां की आम जनता जिसे दिल्ली का राज्य का दर्जा तो मिला, सरकार भी अपनी बना ली, पर काम तो वहीं होगा जो दिल्ली के ठग चाहेंगें। अब हर बात में अब आम आदमी को वहां के एल.जी के पास जाना पड़ता है। सर! ये काम कर दो, सर! उसको हटा दो ना, सर वह महिला आयोग की महिला मेरा पीछा कर रही है उसको बदल दो न, सर वो सिपाही मुझे आंख दिखा रहा है। उसे सस्पेंड कर दो न।

अब जरा आप भी सोचो एक सिपाही के  पास ताकत है वहाँ के कानून मंत्री को वह धमका दे। दिल्ली के कानून मंत्री को कोई ताकत नहीं कि वह उस सिपाही को हटा सके। है न कमाल की बात? भले ही ‘आप’ की सरकार दिल्ली में हो पर दिल्ली तो आज भी चलेगी ठगों के माध्यम से ही। — शम्भु चौधरी 30.01.2014

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