मेरी एक कविता है जो देश के पनपते असंतोष का चित्रण करती है।-
एक परिंदा घर पर आया, वह फर्राया- फिर चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
खेत को काटा, जंगल काटा, वन को नोचा, पहाड़ तोड़ा
घर को तहस-नहस कर छोड़ा, पर न माना, फिर चिल्लाया…
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
केजरीवाल सहित ‘आम आदमी’ के सदस्य किसी की बात नहीं सुने तो अब ये नक्सलवादी हो गये। देश के महान नेता श्री अरुण जेटली को संसद से जल्द ही एक कानून पास करवा लेना चाहिये कि इन शहरी नक्सलवादियों को तत्काल प्रभाव से जेल के भीतर डाल दिया जाना चाहिये। इससे देश के लूटतंत्र को खतरा पैदा हो गया है।
इस व्यक्ति ने ‘‘राहुल के लोकपाल बिल को पास करते समय’’ कितने अहंकार के साथ कहा था ‘‘बिल को पास करने के लिए बहस की भी जरूरत नहीं उसे बैगेर बहस के भी पारित किया जा सकता है।’’
जेटली जी? ‘राहुल लोकपाल’ संसद में पारित किया तब बहस की जरूरत नहीं थी। आज अरविंद के ‘‘जनलोकपाल’’ पर इतनी बहस किस बात की? बनने दो न इसे भी कानून। क्यों आज सभी चोर एक साथ मिलकर सिस्टम की दुहाई देते नहीं थकते?
राष्ट्रपति महोदय जी कहते हैं कि सभी बातें संविधान के दायरे में हो। इन लूटरों से इतना मोह कैसा राष्ट्रपति जी? कुछ तो अपने पद की मर्यादा भी रखें। आपने 26 जनवरी को भी कुछ इसी तरह की बहकी-बहकी बातें की थी। पद की मर्यादा नहीं रख सकते तो कम से कम चुप रहिये, थोड़ी सलाह कम दिजिये न। माने की आप विद्वान है परन्तु पद की गरिमा बनाये रखने में देश का भला है।
अचानक से इन सबको संविधान की बात याद क्यों सताने लगी? सबको विधानसभा के नियमावली याद हो गई। दरअसल देश के लोकतंत्र को संविधान के इन अपहरणकर्ताओं ने बंधक बना लिया है। इनका विधान कहता है कि हमासे पुछे बिना कोई भी इस देश में हिल भी नहीं कर सकता। इनका संविधान सिर्फ जनता को मुर्ख बनाने के लिये बनाया जाता है। यह मानते हैं कि भारत का संविधान सिर्फ चोर-बेईमानों क हितों की रक्षा के लिये बनाया जा सकता है। केजरीवाल तो पागल है, इन बेईमानों के साथ हाथ मिला लें तो सबकुछ ठीक हो जायेगा।
– शम्भु चौधरी 10.02.2014
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‘‘लूट लो देश को लोकतंत्र की गंगा बहती है’’
मेरी एक कविता है जो देश के पनपते असंतोष का चित्रण करती है।-
एक परिंदा घर पर आया, वह फर्राया- फिर चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
खेत को काटा, जंगल काटा, वन को नोचा, पहाड़ तोड़ा
घर को तहस-नहस कर छोड़ा, पर न माना, फिर चिल्लाया…
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
केजरीवाल सहित ‘आम आदमी’ के सदस्य किसी की बात नहीं सुने तो अब ये नक्सलवादी हो गये। देश के महान नेता श्री अरुण जेटली को संसद से जल्द ही एक कानून पास करवा लेना चाहिये कि इन शहरी नक्सलवादियों को तत्काल प्रभाव से जेल के भीतर डाल दिया जाना चाहिये। इससे देश के लूटतंत्र को खतरा पैदा हो गया है।
इस व्यक्ति ने ‘‘राहुल के लोकपाल बिल को पास करते समय’’ कितने अहंकार के साथ कहा था ‘‘बिल को पास करने के लिए बहस की भी जरूरत नहीं उसे बैगेर बहस के भी पारित किया जा सकता है।’’
जेटली जी? ‘राहुल लोकपाल’ संसद में पारित किया तब बहस की जरूरत नहीं थी। आज अरविंद के ‘‘जनलोकपाल’’ पर इतनी बहस किस बात की? बनने दो न इसे भी कानून। क्यों आज सभी चोर एक साथ मिलकर सिस्टम की दुहाई देते नहीं थकते?
राष्ट्रपति महोदय जी कहते हैं कि सभी बातें संविधान के दायरे में हो। इन लूटरों से इतना मोह कैसा राष्ट्रपति जी? कुछ तो अपने पद की मर्यादा भी रखें। आपने 26 जनवरी को भी कुछ इसी तरह की बहकी-बहकी बातें की थी। पद की मर्यादा नहीं रख सकते तो कम से कम चुप रहिये, थोड़ी सलाह कम दिजिये न। माने की आप विद्वान है परन्तु पद की गरिमा बनाये रखने में देश का भला है।
अचानक से इन सबको संविधान की बात याद क्यों सताने लगी? सबको विधानसभा के नियमावली याद हो गई। दरअसल देश के लोकतंत्र को संविधान के इन अपहरणकर्ताओं ने बंधक बना लिया है। इनका विधान कहता है कि हमासे पुछे बिना कोई भी इस देश में हिल भी नहीं कर सकता। इनका संविधान सिर्फ जनता को मुर्ख बनाने के लिये बनाया जाता है। यह मानते हैं कि भारत का संविधान सिर्फ चोर-बेईमानों क हितों की रक्षा के लिये बनाया जा सकता है। केजरीवाल तो पागल है, इन बेईमानों के साथ हाथ मिला लें तो सबकुछ ठीक हो जायेगा।
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