मेरी एक कविता है जो देश के पनपते असंतोष का चित्रण करती है।-
खेत बेच दे, देश बेच दे, सत्ता की जागीर बेच दे,
माँ का आँचल, दूध बेच दे, बलदानी इतिहास बेच दे,
भगत सिंह का नाम बेच दे, और बेच दे भारत को।
जागो भारत जागो ! इंकलाब नया लाओ भारत।
गांधीजी ने तीन बंदर का आदर्श प्रस्तुत किया था। कांग्रेसियों ने बड़ी सफाई से गांधी जी के इन तीन आदर्श के मायने भी बदल डाले। एक बंदर अंधा हो चुका जिसे कुछ नहीं दिखाई देता, दूसरा बूढ़ा हो चुका हो चुका जिसे कुछ भी सुनाई नहीं देता, और तीसरा बंदर गूंगा हो चुका जिसे कुछ भी बोलना नहीं आता।
यूपीए 1 और 2 की सरकार ने तो गांधीजी के इन तीनों आदर्शों पर मोहर ही लगा दी है। अब लूटरों की सारी व्यवस्था विधि सम्मत हो गई है। देश की अदालतें कई बार इन पर टिप्पणी करती है। हिम्मत इनकी इतनी हो गई कि ये चोर अदालत को भी धमकाने से बाज नहीं आते। कहते हैं विधायिका के कार्य में दखल न दें अदालत। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय के द्वारा दागियों के विरूद्ध दिये गये निर्णय के विरूद्ध खड़े होकर जिस प्रकार की बयानबाजी की गई और आनन-फानन में संसद का रौब दिखाने का प्रयास किया यह इनके गिरते चरित्र का प्रमाणपत्र है। इन राजनैतिक दलों की नैतिकता का पतन इतना हो चुका कि अब इन पर अंगूली उठाने वाला हर वह शख्स इनको अराजक दिखने लगा है।
चंद अद्योगिक घरानों की कठपुतली बन कर कार्य करने वाली सरकारें देश को हर तरफ से लूटने में लगी है। इनके बचाव के लिये इनके पास अब कानूनी दांवपैंच/संविधान ही एक मात्र सहारा बचा है। इसलिये बार-बार ये संविधान और सिस्टम का हवाला देने से बाज नहीं आते। शहरी नकस्लवाद ने इन लूटरों के सभी रास्ते पर पहरेदरी लगा दी है।
भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार होते ही दोंनो प्रमुख राजनैतिक दलों ने मिलकर ‘आम आदमी पार्टी’ पर हमला तेज कर दिया है। अभी तक दोंनो एक दूसरे को गाली देकर देश की जनता को गुमराह करती रही थी। आम आदमी के बढ़ते जनाधार से इनके पैरों तले की जमीन हिलने लगी है। अब इनके पास एक ही रास्ते बचा है कि मिलकर ‘‘आम आदमी’’ से सामना किया जाय।
हमें सावधान होना होगा। संविधान के रक्षकों को इन शातिर लोगों से सर्तक रहना होना होगा। कानून ज्ञाता/विशेषज्ञों को देश हित में निर्णय लेने का वक्त आ गया है। ईमानदार और देश के लिये समर्पीत लोगों को एकजूट होने के लिये हर व्यक्ति को सामने आने का वक्त आ चुका है। इस लूटतंत्र को रोकने के लिये कानून को खुलकर सामने आना होगा।
– शम्भु चौधरी 11.02.2014
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मेरी एक कविता है जो देश के पनपते असंतोष का चित्रण करती है।-
खेत बेच दे, देश बेच दे, सत्ता की जागीर बेच दे,
माँ का आँचल, दूध बेच दे, बलदानी इतिहास बेच दे,
भगत सिंह का नाम बेच दे, और बेच दे भारत को।
जागो भारत जागो ! इंकलाब नया लाओ भारत।
गांधीजी ने तीन बंदर का आदर्श प्रस्तुत किया था। कांग्रेसियों ने बड़ी सफाई से गांधी जी के इन तीन आदर्श के मायने भी बदल डाले। एक बंदर अंधा हो चुका जिसे कुछ नहीं दिखाई देता, दूसरा बूढ़ा हो चुका हो चुका जिसे कुछ भी सुनाई नहीं देता, और तीसरा बंदर गूंगा हो चुका जिसे कुछ भी बोलना नहीं आता।
यूपीए 1 और 2 की सरकार ने तो गांधीजी के इन तीनों आदर्शों पर मोहर ही लगा दी है। अब लूटरों की सारी व्यवस्था विधि सम्मत हो गई है। देश की अदालतें कई बार इन पर टिप्पणी करती है। हिम्मत इनकी इतनी हो गई कि ये चोर अदालत को भी धमकाने से बाज नहीं आते। कहते हैं विधायिका के कार्य में दखल न दें अदालत। पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय के द्वारा दागियों के विरूद्ध दिये गये निर्णय के विरूद्ध खड़े होकर जिस प्रकार की बयानबाजी की गई और आनन-फानन में संसद का रौब दिखाने का प्रयास किया यह इनके गिरते चरित्र का प्रमाणपत्र है। इन राजनैतिक दलों की नैतिकता का पतन इतना हो चुका कि अब इन पर अंगूली उठाने वाला हर वह शख्स इनको अराजक दिखने लगा है।
चंद अद्योगिक घरानों की कठपुतली बन कर कार्य करने वाली सरकारें देश को हर तरफ से लूटने में लगी है। इनके बचाव के लिये इनके पास अब कानूनी दांवपैंच/संविधान ही एक मात्र सहारा बचा है। इसलिये बार-बार ये संविधान और सिस्टम का हवाला देने से बाज नहीं आते। शहरी नकस्लवाद ने इन लूटरों के सभी रास्ते पर पहरेदरी लगा दी है।
भ्रष्टाचार की जड़ पर प्रहार होते ही दोंनो प्रमुख राजनैतिक दलों ने मिलकर ‘आम आदमी पार्टी’ पर हमला तेज कर दिया है। अभी तक दोंनो एक दूसरे को गाली देकर देश की जनता को गुमराह करती रही थी। आम आदमी के बढ़ते जनाधार से इनके पैरों तले की जमीन हिलने लगी है। अब इनके पास एक ही रास्ते बचा है कि मिलकर ‘‘आम आदमी’’ से सामना किया जाय।
हमें सावधान होना होगा। संविधान के रक्षकों को इन शातिर लोगों से सर्तक रहना होना होगा। कानून ज्ञाता/विशेषज्ञों को देश हित में निर्णय लेने का वक्त आ गया है। ईमानदार और देश के लिये समर्पीत लोगों को एकजूट होने के लिये हर व्यक्ति को सामने आने का वक्त आ चुका है। इस लूटतंत्र को रोकने के लिये कानून को खुलकर सामने आना होगा।
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