जिसप्रकार आम आदमी पार्टी के हर कदमों को अराजकता से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। एक स्वभाविक सा प्रश्न उठता है कि कहीं केजरीवाल के समर्थक अराजकता की ओर तो कदम नहीं उठा रहे। इन प्रश्नों के उत्तर को खोजने के लिये मुझे इतिहास को पलटना पड़ रहा है। 1) महात्मा गांधी जी 2) लोकनायक जयप्रकाश का आंदोलन और 3) गीता का उपदेश
1) महात्मा गांधी जी – देश की आजादी के समय अंग्रेजों से लड़ने के लिये महात्मा गांधीजी ने अहिंसा का मार्ग का चुना था। वे जानते थे भारत की गरीब जनता के पास ताकत है पर ताकतवरों से लड़ने की क्षमता नहीं है। जिसे जगाना जरूरी होगा। असहयोग आंदोलन, विदेशी वस्त्र जलाओ, नमक सत्याग्रह, चम्पारण और खेड़ा आंदोलन कुछ ऐसे आंदोलनर/ सत्याग्रह थे जिसे गांधीजी के कट्टर विरोधी अराजकता मानते थे। देशद्रोही कहा करते थे। इसके चलते कई बार गांधीजी को जेल भी जाना पड़ा था। गांधीजी से प्रभावित युवकों को कलापानी की सजा दे दी जाती थी। कई लोगों को फांसी पर भी लटका दिया गया। देश को आजादी मिली। दुनियाभर में आज गांधी विचारधारा को स्थान मिला। जबकि उस समय अहिंसक आंदोलन की बात सोचकर स्वतंत्रा मिलेगी? इस पर कई मतभेद भी थे। गांधीजी का जमकर विरोध भी हुआ करता था। जिसका उदाहरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस के रूप में देखा जा सकता है। आज गांधीजी के विचरों को अपना कर सत्ता को बदला जा सकता है यह बात भी प्रमाणित हो गई। नेल्सन मंडेला, बर्मा की आंन सांग सू की जिसके ताजा उदहरण हैं। दलाई लामा का लम्बा इतिहास जूड़ा हुआ है। श्री अण्णा हजारे का आदर्श भी गांधीजी विचारधारा से प्रभावित है।
2) लोकनायक जयप्रकाश का आंदोलन – 1977 के समय श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा देश में इमेंरजेंसी थोप दी गई। जयप्रकाशजी सामने आये। फिर वही गांधीवादी अराजकता के मार्ग से सत्ता परिवर्तन हुआ। हजारों लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया था। लोकनायक के इस अहिंसक आंदोलन को कांग्रेसियों ने हर संभव हिंसक बनाने का प्रयास किया। लोगों को उकसाया, तौड़-फोड़ की, अगजनी, बंद सभी प्रकार के प्रयोग इस आंदोलन के समय हमें देखने को मिला था। यह अलग पहलु है कि इस आंदोलन के मार्फत एकत्रित सभी राजनीति ताकतें प्रधानमंत्री बनने की चाह लिये हुए थे। आज सबके सब बिखरे पड़े हैं। इस आंदोलन से कोई सिद्धान्त जन्म नहीं ले सका। जिसे लोकनायक के नाम से जाना जा सके।
3) गीता का उपदेश- अब आप सोचेगें कि उपरोक्त बातों से गीता का क्या लेना। जब कृष्ण भगवान इस उपदेश से अर्जूण के माध्यम से विश्व को ज्ञान दे रहे थे। उसी समय सत्ता में बैठा धृतराष्ट्र, कृष्ण के इस उपदेश को बकवास और भड़काने वाला करार दे रहा था। ‘‘संजय!- यह कृष्ण पागल हो गया है। किस प्रकार की बहकी-बहकी बातें कर रहा है।’’
मोदी बनाम केजरीवाल
आज केजरीवालजी जो करने जा रहें हैं भले ही कईयों को अखड़ता हो। इस आंदोलन में एक खास बात है इसमें राजनेताओं की जमघट नहीं है। इस आंदालन से नई विचारधारा जन्म ले रही है। जिसका आंकलन समय करेगा। आज जो लोग इस आंदोलन से जूड़ते जा रहें हैं वे इतिहास में अमर हो जायेगें। जबकि मोदी के साथ कोई आंदोलन नहीं है। वह सिर्फ सत्ता के पीछे भाग रहें हैं। इसके ठीक विपरीत केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन के लिये सत्ता जनता को देने की बात कर रहें हैं। यह मूल अंतर हमें केजरीवाल से जोड़ता है। लेख पसंद आये तो जयहिन्द तो बनता है।
– शम्भु चौधरी 12.02.2014
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Baat Pate Ki
जिसप्रकार आम आदमी पार्टी के हर कदमों को अराजकता से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। एक स्वभाविक सा प्रश्न उठता है कि कहीं केजरीवाल के समर्थक अराजकता की ओर तो कदम नहीं उठा रहे। इन प्रश्नों के उत्तर को खोजने के लिये मुझे इतिहास को पलटना पड़ रहा है। 1) महात्मा गांधी जी 2) लोकनायक जयप्रकाश का आंदोलन और 3) गीता का उपदेश
1) महात्मा गांधी जी – देश की आजादी के समय अंग्रेजों से लड़ने के लिये महात्मा गांधीजी ने अहिंसा का मार्ग का चुना था। वे जानते थे भारत की गरीब जनता के पास ताकत है पर ताकतवरों से लड़ने की क्षमता नहीं है। जिसे जगाना जरूरी होगा। असहयोग आंदोलन, विदेशी वस्त्र जलाओ, नमक सत्याग्रह, चम्पारण और खेड़ा आंदोलन कुछ ऐसे आंदोलनर/ सत्याग्रह थे जिसे गांधीजी के कट्टर विरोधी अराजकता मानते थे। देशद्रोही कहा करते थे। इसके चलते कई बार गांधीजी को जेल भी जाना पड़ा था। गांधीजी से प्रभावित युवकों को कलापानी की सजा दे दी जाती थी। कई लोगों को फांसी पर भी लटका दिया गया। देश को आजादी मिली। दुनियाभर में आज गांधी विचारधारा को स्थान मिला। जबकि उस समय अहिंसक आंदोलन की बात सोचकर स्वतंत्रा मिलेगी? इस पर कई मतभेद भी थे। गांधीजी का जमकर विरोध भी हुआ करता था। जिसका उदाहरण नेताजी सुभाषचंद्र बोस के रूप में देखा जा सकता है। आज गांधीजी के विचरों को अपना कर सत्ता को बदला जा सकता है यह बात भी प्रमाणित हो गई। नेल्सन मंडेला, बर्मा की आंन सांग सू की जिसके ताजा उदहरण हैं। दलाई लामा का लम्बा इतिहास जूड़ा हुआ है। श्री अण्णा हजारे का आदर्श भी गांधीजी विचारधारा से प्रभावित है।
2) लोकनायक जयप्रकाश का आंदोलन – 1977 के समय श्रीमती इंदिरा गांधी के द्वारा देश में इमेंरजेंसी थोप दी गई। जयप्रकाशजी सामने आये। फिर वही गांधीवादी अराजकता के मार्ग से सत्ता परिवर्तन हुआ। हजारों लोगों को जेलों में बंद कर दिया गया था। लोकनायक के इस अहिंसक आंदोलन को कांग्रेसियों ने हर संभव हिंसक बनाने का प्रयास किया। लोगों को उकसाया, तौड़-फोड़ की, अगजनी, बंद सभी प्रकार के प्रयोग इस आंदोलन के समय हमें देखने को मिला था। यह अलग पहलु है कि इस आंदोलन के मार्फत एकत्रित सभी राजनीति ताकतें प्रधानमंत्री बनने की चाह लिये हुए थे। आज सबके सब बिखरे पड़े हैं। इस आंदोलन से कोई सिद्धान्त जन्म नहीं ले सका। जिसे लोकनायक के नाम से जाना जा सके।
3) गीता का उपदेश- अब आप सोचेगें कि उपरोक्त बातों से गीता का क्या लेना। जब कृष्ण भगवान इस उपदेश से अर्जूण के माध्यम से विश्व को ज्ञान दे रहे थे। उसी समय सत्ता में बैठा धृतराष्ट्र, कृष्ण के इस उपदेश को बकवास और भड़काने वाला करार दे रहा था। ‘‘संजय!- यह कृष्ण पागल हो गया है। किस प्रकार की बहकी-बहकी बातें कर रहा है।’’
आज केजरीवालजी जो करने जा रहें हैं भले ही कईयों को अखड़ता हो। इस आंदोलन में एक खास बात है इसमें राजनेताओं की जमघट नहीं है। इस आंदालन से नई विचारधारा जन्म ले रही है। जिसका आंकलन समय करेगा। आज जो लोग इस आंदोलन से जूड़ते जा रहें हैं वे इतिहास में अमर हो जायेगें। जबकि मोदी के साथ कोई आंदोलन नहीं है। वह सिर्फ सत्ता के पीछे भाग रहें हैं। इसके ठीक विपरीत केजरीवाल व्यवस्था परिवर्तन के लिये सत्ता जनता को देने की बात कर रहें हैं। यह मूल अंतर हमें केजरीवाल से जोड़ता है। लेख पसंद आये तो जयहिन्द तो बनता है।
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