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डॉ. गौरीशंकर राजहंस का लेख?

बात पते की....
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संपादक, सन्मार्ग, कोलकाता
कोलकाताः (दिनांक 20 मार्च 2014)
[HIGHLIGHT: डॉ. गौरीशंकर राजहंस का लेख]
आज आपके समाचार पत्र में श्री डॉ. गौरीशंकर राजहंस का लेख पढ़ने को मिला। मुझे ताज्जुब इस बात का है कि समाचार समूह से जुड़े लोग किस प्रकार अपनी गुलाम मानसिकता को थोपने के लिये गलत तथ्यों का सहारा लेते हैं। श्री राजहंस जी ने अरविंद केजरीवाल की तुलना एक ऐसे व्यक्ति से की जो किसी जमाने में कोई केजरीवाल नाम का व्यक्ति किसी समाचार समूह में काम किया करता था। इससे साफ पता चलता है कि राजहंस जी कभी पत्रकार नहीं थे महज चापलूस पत्रकार रहे होगें, जो अपने आकाओं को खुश करने के लिये ‘कलम’ का गलत प्रयोग करते रहे हैं। शायद डॉ. गौरीशंकर राजहंस के साथ लगे पूर्व सांसद और पूर्व राजदूत भी इसी चापलूसी का एक टैग मात्र है।
आपने एक जगह यह भी लिखा कि ‘‘केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाई। साथ ही लिखा कि केजरीवाल ने निर्लज्ज हो कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। ’’
शायद या तो डॉ. गौरीशंकर राजहंस ठीक से अरविंद केजरीवाल की बात सुने या पढ़े  नहीं या जानबूझ कर वे इस प्रकार की बात लिखते हैं ताकि अपनी मानसिकता को सही ठहराया जा सके।
केजरीवाल ने कहा था ‘‘ ‘‘मैं अपने बच्चों की कसम खाकर कहता हूं कि कांग्रेस और भाजपा से कोई गठबंधन नहीं करूंगा।’’
केजरीवाल ने जो कसम खाई थी कि ‘‘वह भाजपा और कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं करेगें।’’ ‘गठबंधन’ का क्या अर्थ होता है डॉ. गौरीशंकर राजहंस जी कृपया मुझे समझा दें।
जहाँ तक मीडिया या समाचार समूह के आपराधिक पृष्ठभूमि पर बहस की बात है तो मुझे यह लिखने में जरा भी संकोच नही कि मीडिया व समाचार समूह ने आज अपनी ना सिर्फ अपनी विश्वनियता को खो दिया है। साथ ही पत्रकारिता का एक हिस्सा लोकतंत्र के लिये भी खतरा बनते जा रहा है। चौथी दुनिया के संपादक श्री संतोष भारतीय व ‘जी’ टीवी इसके ताजा उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं।
समाचार समूह को राजनैतिक दलों की तिजौरी दिखते ही वे ना सिर्फ अपनी कलम का रूख बेईमानों को बचाने की तरफ करते देखे गये हैं। आज प्रायः अधिकांशतः समाचार समूह व मीडिया हाउसेस पैसे की चादर औड़ चुका है। चाँदी के जूते से पेट भरने वाले पत्रकारों की तायदात दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। जो निश्चित रूप लोकतंत्र के लिये चिंतनिय है। इस दिशा में केजरीवाल के बयान को हमें गंभीरता लेने की जरूरत है केजरीवाल को इस बयान पर हमें दाद देनी होगी कि व सच्चे रूप से भ्रष्टाचार से लड़ने में एक ईमानदार पहल कर रहें हैं। जिसे लेकर डॉ. गौरीशंकर राजहंस जैसे बेईमान पत्रकार को बैचेनी होने लगी है।
जयहिन्द!!  – शम्भु चौधरी
[Kolkata/ Thrusday 20.03.2014 8.00AM
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संपादक, सन्मार्ग, कोलकाता

कोलकाताः (दिनांक 20 मार्च 2014)

[HIGHLIGHT: डॉ. गौरीशंकर राजहंस का लेख]

आज आपके समाचार पत्र में श्री डॉ. गौरीशंकर राजहंस का लेख पढ़ने को मिला। मुझे ताज्जुब इस बात का है कि समाचार समूह से जुड़े लोग किस प्रकार अपनी गुलाम मानसिकता को थोपने के लिये गलत तथ्यों का सहारा लेते हैं। श्री राजहंस जी ने अरविंद केजरीवाल की तुलना एक ऐसे व्यक्ति से की जो किसी जमाने में कोई केजरीवाल नाम का व्यक्ति किसी समाचार समूह में काम किया करता था। इससे साफ पता चलता है कि राजहंस जी कभी पत्रकार नहीं थे महज चापलूस पत्रकार रहे होगें, जो अपने आकाओं को खुश करने के लिये ‘कलम’ का गलत प्रयोग करते रहे हैं। शायद डॉ. गौरीशंकर राजहंस के साथ लगे पूर्व सांसद और पूर्व राजदूत भी इसी चापलूसी का एक टैग मात्र है।

आपने एक जगह यह भी लिखा कि ‘‘केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाई। साथ ही लिखा कि केजरीवाल ने निर्लज्ज हो कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई। ’’

शायद या तो डॉ. गौरीशंकर राजहंस ठीक से अरविंद केजरीवाल की बात सुने या पढ़े  नहीं या जानबूझ कर वे इस प्रकार की बात लिखते हैं ताकि अपनी मानसिकता को सही ठहराया जा सके।

केजरीवाल ने कहा था ‘‘ ‘‘मैं अपने बच्चों की कसम खाकर कहता हूं कि कांग्रेस और भाजपा से कोई गठबंधन नहीं करूंगा।’’

केजरीवाल ने जो कसम खाई थी कि ‘‘वह भाजपा और कांग्रेस से कोई गठबंधन नहीं करेगें।’’ ‘गठबंधन’ का क्या अर्थ होता है डॉ. गौरीशंकर राजहंस जी कृपया मुझे समझा दें।

जहाँ तक मीडिया या समाचार समूह के आपराधिक पृष्ठभूमि पर बहस की बात है तो मुझे यह लिखने में जरा भी संकोच नही कि मीडिया व समाचार समूह ने आज अपनी ना सिर्फ अपनी विश्वनियता को खो दिया है। साथ ही पत्रकारिता का एक हिस्सा लोकतंत्र के लिये भी खतरा बनते जा रहा है। चौथी दुनिया के संपादक श्री संतोष भारतीय व ‘जी’ टीवी इसके ताजा उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं।

समाचार समूह को राजनैतिक दलों की तिजौरी दिखते ही वे ना सिर्फ अपनी कलम का रूख बेईमानों को बचाने की तरफ करते देखे गये हैं। आज प्रायः अधिकांशतः समाचार समूह व मीडिया हाउसेस पैसे की चादर औड़ चुका है। चाँदी के जूते से पेट भरने वाले पत्रकारों की तायदात दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। जो निश्चित रूप लोकतंत्र के लिये चिंतनिय है। इस दिशा में केजरीवाल के बयान को हमें गंभीरता लेने की जरूरत है केजरीवाल को इस बयान पर हमें दाद देनी होगी कि व सच्चे रूप से भ्रष्टाचार से लड़ने में एक ईमानदार पहल कर रहें हैं। जिसे लेकर डॉ. गौरीशंकर राजहंस जैसे बेईमान पत्रकार को बैचेनी होने लगी है।

जयहिन्द!!  – शम्भु चौधरी

[Kolkata/ Thrusday 20.03.2014 8.00AM

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