Menu
blogid : 5807 postid : 138

RTI: असामाजिक तत्व हैं सूचना मांगने वाले

बात पते की....
बात पते की....
  • 63 Posts
  • 72 Comments

‘‘ ‘‘ हमें सूचना क्यों चाहिए? महाराष्ट्र के ही मुंबई के तीन नटवरलाल ने दस साल पहले पटना की आइ.डी.बी.आइ बैंक पटना से लगभग 22 करोड़ रुपये लोन लिया। रांची के टुपुदाना में तीन कारखाना खोलने के बहाने लिया गया लोन गटक गये। यह जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा था। इन कारखानों के लिए आदिवासियों को विस्थापित करके रियाडा द्वारा ली गयी जमीन भी अब तक बेकार पड़ी है। न आदिवासियों के लिए खेती में काम आयी, न कारखाना खुला। हमने आरटीआइ से इसका डिटेल निकाला, अखबार में कई किश्तों में उजागर किया। सांसद महोदय के अनुसार हमें आइडीबीआइ बैंक को बताना होगा कि यह सूचना क्यों चाहिए। क्या आप हर किसी को बताते चलेंगे कि आप एक असामाजिक तत्व नहीं हैं? क्या यही हैसियत रह जायेगी भारत के स्वतंत्र नागरिकों की? ’’

लेखकः विष्णु राजगढि़या

महाराष्ट्र के शिरडी संसदीय क्षेत्र से शिवसेना सांसद हैं भाउसाहब वाकचैरे। 39 साल की सरकारी नौकरी से हुई आय से सांसद बन गये। इन्होंने सूचना कानून में संशोधन के लिए एक निजी विधेयक पेश किया है। दो सितंबर 2011 को लोकसभा में पेश हुआ यह विधेयक। चाहते हैं कि सूचना मांगने वाले नागरिक से इसका कारण पूछा जाये कि उसे सूचना क्यों चाहिए। अगर अधिकारी को लगे कि नागरिक की मांग सही नहीं तो सूचना देने से इंकार कर देगा। विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि सूचना मांगने वाला नागरिक तत्संबंधी कारण बतायेगा और कारण नहीं बताने पर या अपर्याप्त कारण बताने पर जनसूचना अधिकारी उसके आवेदन को अस्वीकृत कर देगा।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा छह-दो में स्पष्ट प्रावधान है कि नागरिक को सूचना मांगने का कोई कारण या अन्य कोई व्यक्तिगत विवरण बताने की जरूरत नहीं। उसे सिर्फ अपना संपर्क पता देना है। लेकिन सांसद महोदय ने जो संशोधन दिया है, उसके अनुसार नागरिक को यह कारण बताना होगा कि उसे सूचना क्यों चाहिए।

इस निजी विधेयक से स्पष्ट है कि हमारे जनप्रतिनिधि जनता से कितने कट गये हैं। उन्हें नहीं पता कि दुनिया कितनी आगे निकल गयी है। नागरिकों, खासकर नौजवानों की लोकतांत्रिक आकांक्षाएं काफी बढ़ चुकी हैं। उनमें देश का मालिक होने का एहसास पैदा हो रहा है। नागरिकों में मालिकाना का एहसास होना या ओनरशिप की तरफ बढ़ना लोकतंत्र के लिए सकारात्मक चीज है। लेकिन संसद में यह विधेयक पेश करने वाले सांसद महोदय की नजर में सूचना मांगने वाले लोग असामाजिक तत्व हैं जो अधिकारियों का भयादोहन करने या धन ऐंठने के लिए सूचना मांगते हैं।

नागरिकों के प्रति ऐसी नकारात्मक धारणा रखने वाले को सांसद से अब शिरडी के मतदाताओं और देश के नागरिकों को यह पूछना चाहिए कि वह नागरिक अधिकारों को संकुचित क्यों करना चाहते हैं। इससे पहले कि सांसद महोदय कानून बदलवा दें, उनसे जो पूछना हो, पूछ लें।

सांसद महोदय कह सकते हैं कि सारे नागरिकों पर आरोप नहीं लगा रहे, बल्कि सिर्फ गलत करने वालों की बात कर रहे हैं। लेकिन ध्यान रहे कि उन्होंने जो संशोधन पेश किया है, उसकी चपेट में तो सारे नागरिक आयेंगे।

हमें सूचना क्यों चाहिए? महाराष्ट्र के ही मुंबई के तीन नटवरलाल ने दस साल पहले पटना की आइ.डी.बी.आइ बैंक पटना से लगभग 22 करोड़ रुपये लोन लिया। रांची के टुपुदाना में तीन कारखाना खोलने के बहाने लिया गया लोन गटक गये। यह जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा था। इन कारखानों के लिए आदिवासियों को विस्थापित करके रियाडा द्वारा ली गयी जमीन भी अब तक बेकार पड़ी है। न आदिवासियों के लिए खेती में काम आयी, न कारखाना खुला। हमने आरटीआइ से इसका डिटेल निकाला, अखबार में कई किश्तों में उजागर किया। सांसद महोदय के अनुसार हमें आइडीबीआइ बैंक को बताना होगा कि यह सूचना क्यों चाहिए। क्या आप हर किसी को बताते चलेंगे कि आप एक असामाजिक तत्व नहीं हैं? क्या यही हैसियत रह जायेगी भारत के स्वतंत्र नागरिकों की?

आखिर किसके प्रतिनिधि हैं भाउसाहब वाकचैरे? अगर वह जनप्रतिनिधि हैं तो क्या शिरडी क्षेत्र के मतदाताओं ने उन्हें ऐसा जनविरोधी विधेयक पेश करने का सुझाव दिया है? क्या सांसद महोदय अपने क्षेत्र या देश के किसी भी हिस्से में नागरिकों के बीच जाकर अपने विधेयक के पक्ष में राय लेना चाहेंगे? क्या उनके संसदीय क्षेत्र में एक जनमत संग्रह कराकर देखा जाये कि नागरिक उनके विधेयक के बारे में और खुद उनके बारे में क्या राय रखते हैं? क्या किसी सांसद को अपनी मरजी से कुछ भी करने, पूछने के लिए छोड़ दिया जाये या कि इससे पहले उसे अपने मतदाताओं की राय लेने का कोई प्रयास करना चाहिए? महाराष्ट्र में सूचना आंदोलन काफी मजबूत है। विडंबना है कि सांसद महोदय ने नागरिकों के बीच जरा भी चर्चा की होती तो वह ऐसा जनविरोधी विधेयक पेश नहीं करते। अब समय आ गया है जब हम ऐसे बुनियादी सवालों पर सीधी बात करें।

इंटरनेट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार सांसद महोदय की संसद में उपस्थिति मात्र 65 फीसदी है। 39 साल सरकारी नौकरी के कारण गोपनीयता और लालफीताशाही के पक्षधर हैं। कई संगठनों से भी जुड़े रहे। सरकारी नौकरी और संगठनों में रहते हुए आखिर कितना पैसा बचा लिया जो आज के महंगे दौर में चुनाव जीत गये? क्या सरकारी नौकरी में रहते हुए उन्होंने शिवसेना को अनुचित लाभ पहुचाने वाले ऐसे कार्य किये जिसका पुरस्कार उन्हें पार्टी टिकट के रूप में मिला? अगर हां तो क्या किसी कानून के तहत इस पर कार्रवाई हो सकती है? जिन पदों पर और जिन संगठनों में रहे, उनमें क्या वाकई कुछ ऐसा है जिसका इतिहास खुलने का उन्हें भय है? उनके सांसद फंड का क्या हाल है?

अगर हमें लोकतंत्र को मजबूत, प्रभावी बनाना है तो नागरिकों के प्रति नकारात्मक रवैया रखने वाले नेताओं-अधिकारियों से दो-टूक सवाल पूछने ही होंगे। यहां श्रीमान सांसद जी के बारे में लोकसभा के साइट पर मौजूद सूचना प्रस्तुत है-

Shri Bhausaheb Wakchaure, Shirdi (Maharashtra), Shiv Sena.
Social And Cultural Activities – Various development projects carried out at Shirdi Sansthan during his tenure viz., educational complex, Bhakta Niwas and prasadalay, Super Speciality Hospital,Zilla Parishad school building, project regarding water and electricity project, renovation and construction of various buildings, yoga programmes, medical facility for the poor including plastic surgery and artifical limb,eye camp etc.;run MSCIT and I.T.I classes, English Medium Schools and Kanya Vidya Mandir, blessed 100 marriages, and plan to raise to a solar system project with approximate cost of Rs. 16 crores; Active participation in various youth movements and students agitations, established various state government Employees organisations and Tribe Organisation , attempted to resolve difficulties and problem of employees by adorning various posts, various policy decision at state level like postal D.Ed.Scheme, Scholarships, permanent employment of 60 thousand interim employees and participation in various movements for scheduled caste/tribes
Other Information – An efficient officer on various posts for the last 39 years of Government service, mainly T.P.O., B.D.O.; Deputy Chief Executive Officer Z.P. at Ahmednagar; retired as an Executive Officer of Shri Saibaba Sansthan Trust, Shirdi;President, O.B.C. Seva Sangha Maharashtra State;District Secretary, (i) All India Scheduled Caste Union for 4 years;and (ii) All India Scheduled Caste/Tribes Emplyees Welfare Sangh; ;General Secretary, All India Panchayat Parishad; Secretary Caste tribe employees Association Maharashtra State; Acquired awards (i) First Prize Yashwantrao Chavan Bhushan award for development in P. Ahmednagar, 1994; (ii) Student Friend award, 1999; (iv) Social honour award, 2001; (v) awarded a memento for Airport Praise Worthy Performance, 2001-02; (vi) Veer Bharati award in political, educational, commercial, administrative work , 2001-02; (vii) Honoured with Bahumal Karyartha Adarsha maanav, 2003; (viii) Samaaj Gaurav; (ix)Momento for excellent service rendered in integrated child development;and (x)Maharashtra Appreciation Award on the occasion of 57th Independence Day for his excellent services, २००४.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply