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राष्ट्र की सम्पदा का आधार है खाद्य सुरक्षा

डॉ. शंकर सुवन सिंह
डॉ. शंकर सुवन सिंह
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  • जीवन जीने के लिए खाद्य पदार्थों की मूलभूत आवश्यकता होती है। आहार शुद्ध और पौष्टिक होना चाहिए। सुरक्षा का तात्पर्य है खतरे की चिंता से मुक्ति खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य है -खाद्य की कमी के खतरे की चिंता से मुक्ति। खाद्य सुरक्षा का मतलब है समाज के सभी नागरिकों के लिए जीवन चक्र में पूरे समय पर्याप्त मात्रा में ऐसे विविधतापूर्ण भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित होना, यह भोजन सांस्कृतिक तौर पर सभी को मान्य हो और उन्हें हासिल करने के समुचित माध्यम गरिमामय हों।
  • खाद्य सुरक्षा की इकाई देश भी हो सकता है, राज्य भी और गांंव भी। खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है। अपने जीवन के लिये हर किसी को निर्धारित पोषक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की जरूरत होती है। महत्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की जरूरत नियत समय पर पूरी हो। किसी ने क्या खूब कहा है -भूखे भजन न होए गोपाला ! पहले अपनी कंठी माला |भूखे पेट तो ईश्वर का भजन भी नहीं होता है |फिर विकास की बात सोचना अपने को अंधेरे में रखने के सामान है | इसका एक पक्ष यह भी है कि आने वाले समय की अनिश्चितता को देखते हुये हमारे भण्डारों में पर्याप्त मात्रा में अनाज सुरक्षित हों, जिसे जरूरत पड़ने पर तत्काल जरूरतमंद लोगों तक सुव्यवस्थित तरीके से पहुचाया जाये।
  • भोजन का अधिकार एक व्यक्ति का बुनियादी अधिकार है। केवल अनाज से हमारी थाली पूरी नहीं बनती है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें विविधतापूर्ण भोजन (अनाज, दालें, खाने का तेल, सब्जियां, फल, अंडे, दूध, फलियांं, गुड़ और कंदमूलों) की हर रोज़ जरूरत होती है ताकि कार्बोहायड्रेट, वसा, प्रोटीन, सुक्ष पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा किया जा सके। भोजन का अधिकार सुनिश्चित करने में सरकार की सीधी भूमिका है क्योंकि अधिकारों का संरक्षण नीति बना कर ही किया जाता है और सरकार ही नीति बनाने की जिम्मेदारी निभाती है। यदि यह विविधता न हो तो हमारा पेट तो भर सकता है, परन्तु पोषण की जरूरत पूरी न हो पाएंगी।
  • सामान्यतः केवल गरीबी ही भोजन के अधिकार को सीमित नहीं करती है; लैंगिक भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार के कारण भी लोगों के भोजन के अधिकार का हनन हो सकता है। पीने के साफ़ पानी, स्वच्छता और सम्मान भी भोजन के अधिकार के हिस्से हैं। हाल के अनुभवों ने सिखाया है कि राज्य के अनाज गोदाम इसलिये भरे हुए नहीं होना चाहिए कि लोग उसे खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं। इसका अर्थ है कि सामाजिक सुरक्षा के नजरिये से अनाज आपूर्ति की सुनियोजित व्यवस्था होना चाहिए। यदि समाज की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहेगी तो लोग अन्य रचनात्मक प्रक्रियाओं में अपनी भूमिका निभा पायेंगे।
  • इस परिप्रेक्ष्य में सरकार का दायित्व है कि बेहतर उत्पादन का वातावरण बनाये और खाद्यान्न के बाजार मूल्यों को समुदाय के हितों के अनुरूप बनाये रखे। खाद्य सुरक्षा रूपी मकान के चार प्रमुख स्तम्भ हैं – १. भोजन की उपलब्धता, २. भोजन की पहुंंच, ३. भोजन का सदुपयोग ४. भोजन की स्थिरता।  यह स्तम्भ खाद्य सुरक्षा को गति और सही दिशा देते हैं। मकान और स्तम्भ दोनों का आधार पोषण है। कहने का तात्पर्य बिना पोषण के खाद्य सुरक्षा का कोई मतलब नहीं है। पोषण की सुरक्षा एक ऐसी स्थिति है जब सभी लोग हर समय पर्याप्त और जरूरी मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन का वास्तव में उपभोग कर पाते हों। जीवन को सक्रीय और स्वस्थ रूप से जीने के लिए जरूरी इस भोजन में विभिन्नता, विविधता, पोषण तत्वों मौजूदगी और सुरक्षा भी निहित हो।

 

 

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं, इनसे संस्‍थान का कोई लेना-देना नहीं है।

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