wefwe
Menu
blogid : 13150 postid : 1263633

पूर्णिया और मुंगेर में पकी राजनीतिक खिचड़ी की सुगंध भागलपुर तक

om namh shiway
om namh shiway
  • 6 Posts
  • 7 Comments

मकर संक्रांति का चूड़ा-दही-खिचड़ी पच चुका है। एनडीए और महागठबंधन में सीट बंटवारे की अटकलें पूर्ववत जारी है। इस बीच शुक्रवार को सीमांचल और पूर्व बिहार में पकी राजनीतिक खिचड़ी की सुगंध भागलपुर तक महसूस की जा सकती है। इसने भागलपुर लोकसभा सीट की स्थिति कमोबेश साफ कर दी है।

शुक्रवार को दो राजनीतिक गतिविधियों को विशेष वर्ग और सत्ताधारी जमात ने बहुत महत्व नहीं दिया, पर इसपर नजरें हर किसी की थी। इसका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर भागलपुर लोकसभा सीट की हिस्सेदारी पर प्रभाव निश्चित माना जा रहा है।
जी हां! हम बात कर रहे हैं पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह एवं मोकामा के विधायक अनंत सिंह की। पप्पू सिंह ने पटना जाकर भाजपा छोड़ दिया। इससे स्पष्ट है उन्हें भाजपा ने बता दिया था कि पूर्णिया सीट जदयू के खाते में जाएगी। दूसरी ओर अनंत सिंह का मुंगेर लोकसभा सीट के लिए रोड शो रहा। हजारों गाडिय़ों के काफिले के साथ निकले अनंत सिंह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का फोटो लगा बैनर गाड़ी पर लगाकर घूमे और खुद को महगठबंधन का संभावित प्रत्याशी बताया।

अब आप सोच रहे होंगे मुंगेर और पूर्णिया सीट को लेकर मची हलचल से भागलपुर सीट का क्या कनेक्शन!
जाहिर बात है कि 2014 के चुनाव में मुंगेर और जमुई सीट को छोड़ दें तो पूर्व बिहार, सीमांचल और कोसी की सभी सीटें एनडीए ने गंवा दी थी। पूरे बिहार में विजय पताका फहराने वाली भाजपा पूर्व बिहार-कोसी-सीमांचल में शून्य पर सिमट गई। पर एक दफे की हार के बाद पार्टी के आधार को कमजोर आंका नहीं जा सकता। बल्कि सच यह कि यहां संगठन तो भाजपा का ही जमीन पर दिखता है। इसके अलावे पूर्णिया और भागलपुर प्रमंडल भी हैं। इस नाते भी ये सीटें राजनीतिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये भाजपा के लिए सर्वथा सुरक्षित सीट मानी जाती रही हैं।
और अब जबकि पूर्णिया की स्थिति साफ नजर आ रही है तो माना जा रहा है कि भाजपा को भले ही एक सांसद कुर्बान करना पडे पर पार्टी भागलपुर सीट नहीं छोड़ेगी। वैसे भी भागलपुर तो भाजपा के लिए संथाल परगना, पूर्व बिहार और सीमांचल-कोसी का गेट वे ऑफ इंट्री माना जाता है। पार्टी के संभावित प्रत्याशी और डेढ़ दफे (एक उपचुनाव और एक चुनाव) यहां के सांसद रहे भाजपा के राष्‍ट्रीय नेता शाहनवाज हुसैन की गतिविधियां इसकी पुष्टि भी करती हैं। सड़कों पर लगे उनके होर्डिंग्स, बैनर-पोस्टर बता रहे हैं कि वे चुनावी तैयारी में जुट गए हैं। अंदरखाने की जानकारी यह कि उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को चुनाव की जिम्मेदारी भी सौंपनी शुरू कर दी है। वे इस बार उसी आत्मविश्वास के साथ क्षेत्र में दिखाई दे रहे हैं जैसा 2009 में जीत के पहले थे। उनके विरोधी भी मान रहे हैं इस बार शाहनवाज 2009 से भी अधिक मतों से जीतेंगे। बिहपुर के पूर्व विधायक इंजीनियर शैलेंद्र आंकड़ों के आधार पर बताते हैं कि राजद उम्मीदवार बूलो मंडल को उनके घर यानी बिहपुर में पटखनी दे देंगे। ऐसा दिखता भी है क्योंकि जो लोग विधानसभा में इंजीनियर शैलेंद्र के विरोध में झंडा उठाए थे वे भी शाहनवाज के नाम पर नरम नजर आते हैं।

अब अनंत सिंह के मुंगेर के चुनावी अभियान के नजरिए से देखें तो भी भागलपुर सीट भाजपा के खाते में जाती दिख रही है। वैसे अंदरूनी सूत्रों की मानें तो भागलपुर सीट पर कोई जिताऊ उम्मीदवार न देखकर जदयू इस सीट के लिए उत्साहित नहीं रही। चूंकि राजनीति संभावनाओं का खेल है सो पार्टी सभी संभावनाओं को टटोल रही थी। एक संभावना यह भी बनी कि मुंगेर से चुनाव लडऩे का मन बना चुके ललन सिंह सुरक्षित जीत के लिए भागलपुर का रुख करेंगे। पर अनंत सिंह के शक्ति प्रदर्शन के बाद अगर ऐसा हुआ तो यह पूरी की पूरी नीतीश सरकार का अनंत सिंह के सामने समर्पण माना जाएगा।
ऐसे में कहा जा रहा है कि तस्वीर बिलकुल साफ है। चुनाव शाहनवाज हुसैन बनाम बूलो मंडल का होगा। और तब दोनों नेताओं के संसदीय क्षेत्र के कार्यों और उनके कद का मूल्यांकन भी जनता करेगी। और इसमें भी प्रथम दृष्टया शाहनवाज भारी नजर आते हैं। हालांकि इससे इतर बूलो मंडल भी अब लगातार जनसंपर्क कर रहे हैं। सांसद रहते साढे चार वर्ष की उनकी उपलब्धि क्या है  यह तो वही जानें। पर चुनावी वर्ष में फर्क इतना की अब उनके काफिले के आगे अब हूटर नहीं बज रहा और जनता की समस्या पर वे सड़क पर भी दिखने लगे हैं। वे मुख्य रूप से देहाती इलाकों को फोकस किए हैं, जहां से उन्हें वोट मिलता है। हालांकि भागलपुर शहर में भी वे भाजपाई वोटर के बीच सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। पर वे भी जानते हैं कि जैसे उनके बेस वोटर नहीं टूटेंगे, वैसे भाजपा के भी नहीं टूटेंगे। बल्कि बूलो समर्थक भी यह समझ रहे हैं कि यदि पिछले चुनाव जिसमें शाहनवाज नोटा से हार गए थे अगर उतने एग्रेसिव भाजपा के वोटर रहे तो बूलो की डगर बहुत कठिन होगी।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply