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काहे को जाए बिदेस रे सुन बालम मोरे

somthing nothing
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काहे को जाए बिदेस रे सुन बालम मोरे
श्वैसे तो चाय पिये बिना खटिया से उठते भी नहीं हो और आज सरपट भागे चले जा रहे हो। सुबह.सुबह विमला ने अपने पति भरोसे से कहा।
श्सरपंच जी ने कहा हैए पंचायत में सभी से आने को कह दो। अभी जाकर कह दूं नहीं तो लोग खेतों पर चले जाएंगे और बेमतलब में मेरी भागदौड़ बढ़ जाएगी।
श्हाय रामए पहले छोटी.छोटी खबर भी मुझे पता चल जाती थीए लेकिन आज पंचायत लग रही है और मुझे पता ही नहीं। कल पंडिताइन दिन भर बैठी रहीं उन्होंने भी कुछ नहीं बताया। उन्हें कुछ मालूम न होए यह तो हो ही नहीं सकता। हम ही मूर्ख थे जो उनको दूसरों के साथ.साथ अपने घर की बात भी बता देते हैं।
श्चलोए आज यह राज तो खुला कि घर की बातें बाहर कैसे जाती हैं। अगर तुम दूसरों के घर की टोह लेना न बंद करतीं तो पता चल जाता कि आखिर पंचायत क्यों बुलाई गई है। खैरए मैं निकलता हूं।
श्सरजू के बाबू क्या मामला गंभीर है
श्हांए छोटी.छोटी बातें तो सरपंच जी घर पर ही निपटा देते हैं। इस बार पंचायत बुलाई है। उनका चेहरा लाल हैए उसे देखते हुए लगता है जरूर कोई बड़ा बवाल है।
भरोसे ने गमछा कंधे पर डाला और तम्बाकू रगड़ते हुए चला गया।
उसने गांव के सभी घरों में जाकर सरपंच का संदेश पहुंचा दिया। शाम को पांच बजे मंदिर में पंचायत लगनी थी। निर्धारित समय पर पूरा गांव मंदिर प्रांगण में आ गया था। वहां मौजूद सभी लोग एक दूसरे से पूछ रहे थेए आखिर यह पंचायत बुलाई क्यों गई है। कोई कुछ कहता तो कोई कुछ। आखिरकार सरपंच जी आए और कुछ देर चुपचाप खड़े रहने के बाद बोलेए श्आप लोग परेशान हैं कि यह पंचायत क्यों बुलाई गई है। मैं बताता हूं। समस्या मेरे घर की है। जिसका निपटारा मैं आपके सहयोग से करना चाहता हूं।
चारो और सन्नाटा छा गया। फिर एक बुजुर्ग खड़े होकर बोलेए श्सरपंच जीए आप पूरी बात बताएं। हम आपकी मदद जरूर करेंगे।
श्बेटे और बहू में झगड़ा हो गया है। दोनों को समझाने की कई बार कोशिश की लेकिन कोई मानता ही नहीं। मुझे भी दोनों सही लगते हैं। असमंजस में हूंए क्या करूं।
आप पूरी बात बताएं। आप सरपंच हैंए आपका मामला पूरे गांव का मामला है। बुजुर्ग ने कहा।
श्सभी जानते हैं मेरा बेटा विनोद शहर से बड़ी डिग्री लेकर आया है। वह गांव में काम नहीं करना चाहता है लेकिन बहू शहर जाने को तैयार नहीं है। बेटा कहता है गांव में भविष्य नहीं है। तो बहू का मानना है कि यहां भी बहुत कुछ किया जा सकता है। दोनों ने अंतिम फैसला मुझ पर छोड़ दिया है। बेटा और बहू किसके खिलाफ जाऊं।
श्सरपंच जीए आपका बेटा और बहू दोनों पढ़े लिखे हैं। उनके बीच यह मतभेद कैसे हो गया। बात की तह तक पहुंचने के लिए दोनों को अपना तर्क सबके सामने रखने दीजिए। तभी हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। कुछ बुजुर्गों ने अपनी राय दी जिसका समर्थन सभी ने किया।
सरपंच ने पहले अपने लड़के को पक्ष रखने के लिए बुलाया। उसने अपनी बात शुरू की आप जानते हैं मैं आठवीं के बाद पढऩे के लिए शहर चला गया था। वहां से कृषि की एक बड़ी डिग्री लेकर आया हूं। मेरी पढ़ाई पर बाबू का लाखों रुपया खर्च हुआ है। शहर में पचास हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी मिल रही है।
यहां रहकर मैं इतना नहीं कमा सकता हूं। मैं चाहता हूं कि मेरी शिक्षा पर जो पैसा खर्च हुआ हैए उसे कमाकर बाबू को दे दूं। ऐसा नहीं है कि गांव मुझे अच्छा नहीं लगता है। मेरा परिवारए दोस्त सब कुछ रहीं पर हैं लेकिन यहां मैं आगे नहीं बढ़ सकता हूं। आगे बढऩा है तो शहर जाना ही होगा। क्या मेरी उन्नति से आप खुश नहीं होंगे। मेरी पत्नी इस बात को समझ नहीं रही है। उसे गांव अच्छा लगने लगा है। मैं जब शहर जाने को करता हूंए वह कहने लगती है श्काहे को जाए बिदेस रे सुन बालम मोरे। अब आप ही बताएंए क्या अच्छे भविष्य की बात सोचना गलत है।
सरपंच के बेटे ने अपनी बात खत्म की।
अब बहू की बारी आई। उसने अपनी बात शुरू कीए श्दो साल पहले इस गांव से मेरा नाता जुड़ा था। उसके पहले मैंने गांव केवल फिल्मों में ही देखा था। शुरू में मेरा मन यहां नहीं लगा था लेकिन अब मुझे शहर से ज्यादा गांव अच्छा लगता है। यहां की ताजी हवाए स्वच्छ जलए हरी सब्जियां शहर में कहां हैं। मैं इनसे कहती हूं शहर जाने की जरूरत नहीं है। यहीं सबको लेकर काम करेंए अच्छी कमाई हो जाएगी। गांव के कई युवकों को रोजगार भी मिल जाएगा। जिसका असर गांव की प्रगति पर भी दिखाई देगा।
श्बहू गांव में क्या.क्या किया जा सकता है कुछ इस बारे में बोलो तो कुछ समझ में आए, यादव जी बीच में टोकते हुए बोले।
श्चाचाए अपने गांव में दूध का काम सभी घरों में होता है। हम लोग बिचौलियों को दूध सस्ते दाम पर दे देते हैं। ये बिचौलिए हमसे 10 रुपए में ली गई चीज थोड़ा परिश्रम करके 20 से 25 रुपए में व्यापारियों को दे देते हैं। अगर हम इसे सीधे बड़ी दूध कंपनियों तक पहुंचाने का काम करें तो हम लोगों की आय काफी बढ़ जाएगी। ये कृषि की पढ़ाई करके आए हैं। खुद कहते हैं कि यदि हम आधुनिक तरीके से फूलोंए मशरूम आदि की पैदावार भी करें तो अच्छी खासी कमाई हो सकती है। मैं इनसे कहती हूंए आप अपनी कृषि शिक्षा का प्रयोग गांव में ही करें। लोगों को फसलों की नई.नई प्रजातियों के बारे में बताएं। एक समिति का निर्माण करें जो यहां उत्पन्न होने वाली चीजों को शहर ले जाकर बेचे। एकजुट होकर इस तरह किया गया कार्य सबकी आय को बढ़ा देगा और यहां के बेरोजगार युवकों को काम भी मिल जाएगा। सरपंच की बहू ने अपनी बात खत्म की।
अधिकतर लोग बहू के बात से सहमत हो गए। तय किया गया कि सरपंच का बेटा एक साल तक गांव में रहकर बहू के बताए रास्ते पर काम करेगा लेकिन अगर परिणाम अच्छा नहीं आया तो वह शहर चला जाएगा। धीरे.धीरे एक साल बीत गया। सरपंच के बेटे की योग्यता और गांववालों की मेहनत रंग लाई। नई तकनीक और व्यापारिक नजरिए से की गई खेती ने गांव वालों की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह बदल दिया। सरपंच का बेटा भी अपने कार्य से संतुष्टड्ढ हो गया। उसने निश्चय किया कि वह शहर न जाकर गांव में ही रहेगा।
आज सरपंच की बहू जब अपने पति को छेड़ते हुए कहती हैए श्काहे को जाए बिदेस रे लखि बालम मोरे। तो उसका पति हंसते हुए जवाब देता है श्कबहूं न जाऊं बिदेस रे सुन सजनी मोरी।

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