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दूध मलाई खाएंगे, दुश्मन को मार भगाएंगे
सुबह-सुबह ‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की, हांथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की धुन सुन बसंता सोच में पड़ गया कि न तो आज जनमाष्टïमी है और न ही गांव में नंद नाम का कोई आदमी रहता है तो फिर भला यह आनंद किसके घर हुआ है।
सरपंच के घर की तरफ लोग ‘कुछ हो गया है कहते हुए चले जा रहे थे। ‘उनके घर क्या हो गया है। सुबह-सुबह भोंपू काहे बजवाए दे रहे हैं? सोचता हुआ बसंता भी भीड़ के साथ चल दिया। सरपंच के घर के सामने मंदिर में लाउडस्पीकर गुनगुना रहा था। अधिकतर गांव वाले पहले से ही वहां मौजूद थे। कुछ युवक नागिन की तरह झूम-झूम कर नाच रहे थे। उन्हें झूमता देख बसंता भी उलर-उलर कर डोलने लगा और धीरे से बगल में नाच रहे राधे के कान में फुसफुसाया, ‘गुरू, बात क्या है? चुनहीं दबाए मस्ती में मिथुन बने जा रहे हो। जरा हमको भी तो बताओ? कहीं सरपंच दूसरी शादी तो नहीं कर लाए।
‘अबे कुछ तो शरम करो। गोबर बसंत, अब इस उमर में बुढ़ऊ से शादी कौन करेगा।
‘तो क्या ये सब फालतू में ही बौडिय़ाए जा रहे हैं। गुरू, कहीं सरपंच की लाटरी तो नहीं लग गई?
‘बसंता बाल की खाल मत निकाल, मुखिया ने भोंपू बजवाया है तो कोई न कोई बात जरूर होगी। वो पुराने कलाकार हैं, बिना फायदे के कुछ भी नहीं करते हैं। अरे अंदर जलेबी भी बन रही है और दो भगोनों में दही भी रखा है।
‘दही-जलेबी, क्या इसका भी इंतजाम है?
‘हरिया तो यही कर रहा है। वह नाच रहा है। मैंने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि केवल नाचने वालों को ही मिले इसलिए मैं भी शुरू हो गया।
इस बात को सुन बसंता के नाचने की स्पीड और भी बढ़ गई। जब बहुत देर हो गई लेकिन जलेबी-दही क्या, पीने के लिए पानी भी नहीं मिला तो नाच रही युवा ब्रिगेड ‘सरपंच जी बाहर आओ- बाहर आओ-बाहर आओ के नारे लगाने लगी। नारों की आवाज सरपंच को ठीक उसी तरह खीच लाई जैसे बीन की धुन सांप को बिल से बाहर निकाल लाती है। वे बाहर आते ही बोले, ‘चिरकुटों, ललचाओ नहीं, जलेबी तुम लोगों के लिए ही बनवाई है। अंदर जाओ और लाकर सबको बांट दो।
पल भर में बसंता एण्ड ब्रिगेड सरपंच के घर में घुसी और दही-जलेबी लेकर बाहर आ गई। रेलमपेल के बीच किसी को दही नसीब हुआ तो किसी को जलेबी। जो बहुत भाग्यशाली थे उन्हें ही दोनों चीजें नसीब हुईं। बेचारे कुछ तो दोना लिए दही-जलेबी का इंतजार ही करते रहे लेकिन नसीब हुआ तो केवल चासनी और तोड़।
पेट पूजा के बाद जब लोग हाथ झडिय़ा के जाने लगे तो सरपंच जी चिल्लाए, ‘अबे भुखमरों, गिद्घ भोज करके सरक रहे हो? पूछा तक नहीं कि बात क्या है? शर्म करो जलेबीफरामोशों।
‘सरपंच जी, जो है जल्दी बताओ मेरे पेट में मरोड़ शुरू हो गया है। लगता है जलेबी ज्यादा हो गई है। कुछ देर और रुका तो यहीं गड़बड़ हो जाएगी।, एक युवक पेट मरोड़ते हुए बोला।
‘अब हम लोग भी अपने गांव का नाम सीना चौड़ा करके लेंगे। हमारे यहां के युवा भी तेजपुर की तरह सेना में जाएंगे और देश का नाम रोशन करेंगे।, सरपंच जी ने कहा।
‘अपने यहां भला सेना में कौन जा सकता है। अभी तीन लोग भर्ती के लिए गए थे। दौड़ शुरू हुई। नतीजा कुछ देर में ही सामने आ गया। वही तीन सबसे पीछे थे। बता रहे हैं बहुत कठिन टेस्ट होता है।, बसंता गला फाड़कर बोला।
‘बसंता, तुम समझदार लड़के हो। सबके सुख-दुख में हमेशा शामिल रहते हो। शरीर भी ठीक है। फिर सेना में जाने से क्यों मना कर रहे हो। यह बात तो और भी गलत है कि कुछ लोगों का उदाहरण देकर तुम बाकी लड़कों का भी मनोबल तोड़ रहे हो। बसंता तुम आगे आओगे तो तुम्हारी देखा-देखी कई और युवा भी इसी ओर चल देंगे। अगर तुम थोड़ी सी मेहनत करो तो सेना में भर्ती हो सकते हो।, सरपंच जी ने समझाया।
‘सरपंच जी, आप हम लोगों से सेना में जाने की बात ही क्यों कर रहे हैं। हम यहां खुश हैं। अगर कहीं कोई और नौकरी मिल सकती हो तो बताएं। हम तैयार हैं।, बसंता ने कहा।
सरपंच जी ने जवाब दिया, ‘भाई अब नौकरियां या तो उन लोगों के लिए हैं जो बहुत अधिक पढ़े-लिखे हैं या फिर उनके लिए जो तकनीकी ज्ञान रखते हैं। दुलारे का लड़का कम्प्यूटर सीखे था। देखो अच्छी कंपनी में लग गया। शिवा और राजेश पढऩे में तेज थे तो सिंचाई विभाग में बाबू बन गए लेकिन तुम और तुम्हारे जैसे बहुत से लड़के जो अधिक पढ़ाई नहीं कर सके हैं। हमें उनकी नौकरी के लिए भी तो सोचना है। सरपंच हूं, कुछ तो फर्ज बनता ही है। अरे तुम लोग दिनभर अखाड़े में जूझे रहते हो। अपने दम-खम का कुछ फायदा उठाओ। सेना में अधिक पढ़े लिखे लोगों के साथ उनके लिए भी मौके हैं जो ज्यादा नहीं पढ़ सके हैं। कोशिश करो हो सकता है तुम्हारी नौकरी भी पक्की हो जाएगी और देश की सुरक्षा में इस गांव का योगदान भी।
‘सरपंच जी लगता है, आप हम लोगों को वर्दी पहनाकर ही मानेंगे। ठीक है अब आपके राज में हैं, हांको चाहें राखो।,बसंता ने सेना में भर्ती होने की तैयारी पर सहमति जता दी लेकिन उसके अलावा और कोई युवा आगे नहीं आया।
‘सरपंच जी, तो क्या यह जलेबीबाजी इसीलिए कराई है।, प्यारे ने अपनी बात रखी।
‘तुम सबकी की छठी-पसनी सब मालूम है। ये सब न करता तो एक आदमी झाकने नहीं आता। चलो तीन हजार रुपया खर्च हुआ लेकिन मेरी बात तो रह गई। कम से कम एक तो तैयार हो गया। बसंता कल से मैं तुम्हारी ट्रेनिंग करवाऊंगा। सुबह मंदिर के सामने मिलना।, सरपंच जी सीना चौड़ा करके बोले।
बसंता सुबह सरपंच जी की बताई जगह पर पहुंच गया। उन्होंने उसकी ट्रेनिंग शुरू की। एक बड़े से खेत के कई चक्कर लगवाए। दंड पिलवाए, कुदवाया और फिर दौड़ाना शुरू कर दिया। दो घंटे तक कड़ी मशक्कत के बाद बसंता थक गया और नीम के पेड़ के नीचे बैठ गया।
‘क्यों बसंता, मन ही मन हमें गरिया रहे हो न।
‘नहीं सरपंच जी। आप बड़े हैं। कल जो आप ने कहा था एकदम ठीक था। इस कदकाठी और ताकत का उपयोग मैं सेना में जाकर अच्छी तरह से कर सकता हूं। बाबू के पास खेती कम है। नौकरी लग जाएगी तो पैसा जमाकर कुछ जमीन भी खरीद लूंगा।
‘तुमने मुझे खुश कर दिया। तुम शरीर से ही नहीं, दिमाग से भी मजबूत हो। मैंने तुम्हारे लिए कुछ इंतजाम भी किया है।
सरपंच जी उसे मंदिर के अंदर ले गए। वहां बसंता को तीन-चार गिलास भरपूर मलाई वाला दूध पिलाया। बदाम पड़े हुए भीगे चने खिलाए। बसंता और भी खुश हो गया। उसने यह बात अपने बाकी पहलवान टाइप साथियों को बताई। सेना की खूबियों के बारे में भी बताया। फिर क्या था, अगले ही दिन सुबह बसंता के साथ आठ-नौ युवा सेना में भर्ती के लिए सरपंच जी से ट्रेनिंग लेने मंदिर के सामने पहुंच गए। यह बात दूसरी थी कि उनमें से एक-दो केवल दूध-मलाई के चक्कर में आए थे। जैसे ही इन लोगों ने सरपंच जी को देखा तो मिलकर चिल्लाए, ‘दूध-मलाई खाएंगे, दुश्मन को मार भगाएंगे।
शरद अग्निहोत्री
109/271 राम कृष्ण नगर,
कानपुर- 208012, उत्तर प्रदेश
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