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ट्रेन आई, किसी तरह जनरल डिब्बे में घुस पाया। सीट की तलाश में कुछ पल इधर-उधर देखा फिर वास्तविकता से अवगत हो नीचे ही बैठ गया। बगल वाली बर्थ पर एक स्मार्ट युवक बैठा था। गठीले बदन वाले इस युवक ने आंखों पर गहरा काला ब्रांडेड चश्मा पहना था। वह एकदम हीरो लग रहा था।
उसकेठीक सामने बर्थ पर आठ-नौ लड़के ठुंसे बैठे थे। उनमें से एक बोला, ‘रात के दस बज रहे हैं, फिर भी कुछ लोग काला चश्मा लगाए हैं। फैशन बाबा तेरी जय हो।
‘दबंग में सलमान ने क्या लगा लिया, जिसे देखो वही लगाए घूम रहा है। दिन हो तो समझ में आता है, भला रात में इसकी क्या जरूरत।, एक आदमी चुटकी लेते हुए बोला।
‘अरे भईया, चश्मा लगा लेने से ही कोई दबंग नहीं बन जाता है। जिसके कलेजे में दम और हाथों में जान होती है, वही दबंग होता है, और उन्हें ही रज्जो (दबंग में नायिका का नाम) मिलती है।, पहले वाला लड़का फिर बोला।
‘अबे, इधर देख ! मैं हूं दबंग। बिना चश्मे का दबंग। है कोई जो मेरा मुकाबला कर सकता है। एक लड़का अपनी मसल्स दिखाते हुए बोला।
पहले वाला लड़का तेजी से खड़ा हुआ और उस स्मार्ट युवक की आंखों से चश्मा खींचा, अपनी आंखों पर लगाया और बोला, ‘मैं करूंगा मुकाबला, हिम्मत है तो आओ।
डिब्बे में खामुशी छा गई। जिस युवक की आंखों से चश्मा खींचा गया, वह देख नहीं सकता था। वह युवक बगल वाले के कंधे का सहारा लेकर उठा और बोला, असली दबंग तो मैं हूं। पुंछ बार्डर पर आंखों में बम के छर्रे लग गए थे फिर भी उस आतंकी को नहीं छोड़ा था जिसे मैंने पकड़ा था। देखना एक दिन मेरी आंखें ठीक हो जाएंगी और मैं फिर से सीमा पर देश के दुश्मनों को अपनी दबंगई दिखाने जाऊंगा।
शरद अग्निहोत्री
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