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ओमामा
सुबह-सुबह ‘नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की, हांथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की धुन सुन बसंता सोच में पड़ गया कि न तो आज जनमाष्टïमी है और न ही गांव में नंद नाम का कोई आदमी रहता है तो फिर भला यह आनंद किसके यहां हुआ है।
मुखिया के घर की तरफ लोग ‘कुछ हो गया है कहते हुए जा रहे थे। ‘भला इस उम्र में भी कुछ हो सकता है? सोचता हुआ बसंता भी उनके साथ हो गया। मुखिया के घर के सामने मंदिर में लाउडस्पीकर गुनगुना रहा था तो बगल की मस्जिद फूलों से सजी थी। अधिकतर गांव वाले वहां पहले से मौजूद थे। सारे युवा नागिन की तरह झूम-झूम कर नाच रहे थे। जब सब नाच रहे हैं तो जरूर खुशी की ही बात होगी सोचकर बसंता भी सीटी-बजाबजा कर डोलने लगा और धीरे से बगल में कत्थक और डिस्को का मिश्रण कर नाच रहे राधे के कान में बुद्बुदाया, ‘गुरू, क्या बात है? चुनहीं दबाए मस्ती में झूमे जा रहे हो। कहीं 68 की उम्र में तो मुखिया ने कोई चमत्कार तो नहीं कर दिया?
‘अबे कुछ तो शरम करो। गोबर बसंत, जब 28 की उम्र में नहीं हुआ तो अब भला कहां से होगा।
‘तो क्या सब फालतू ही बौडिय़ा रहे हैं। गुरू, कहीं मुखिया की लाटरी तो नहीं लग गई?
‘बसंता बाल की खाल मत निकाल, मुखिया ने भोंपू बजवाया है तो कोई न कोई बात जरूर होगी। वो बुढऊ भी कम कलाकार नहीं है, बिना फायदे के तो किसी से बात भी नहीं करता है। आज भोंपू बजवा रहा है, कुछ तो जरूर होगा लेकिन इससे हमें क्या? राधे ने बसंता को अपनी ओर खीचा और बोला, ‘अंदर जलेबी भी बन रही है और दो भगोनों में दही भी रखा है।
‘दही-जलेबी, क्या वो भी मिलेगी?
‘हरिया तो यही कर रहा है। वह नाच रहा है। मैंने सोचा कि कहीं ऐसा न हो कि केवल नाचने वालों को ही मिलनी हो, इसलिए मैं भी नाचने लगा।
‘अब चाहे कुछ हुआ हो या न हुआ हो। अगर थोड़ी देर नाचने से 100-200 ग्राम जलेबी खाने को मिल जाए तो इसमें बुराई क्या है? कहकर बसंता ठुमकते हुए जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ‘हाय मेरी जलेबी, हाय मेरी जलेबी।
देखते ही देखते बसंता की उम्र के सभी ‘हाय मेरी जलेबी, हाय मेरी जलेबी रटने लगे। आस-पास के घरों की अटारी पर लटकी लड़कियां झेंप कर पीछे हट गईं। सिवाय गांव की छोटी ठकुराइन ‘जलेबिया के। लंफटों की इस हरकत से जलेबिया के चेहरे की लालिमा और लाल हो गई।
जब युवा ब्रिगेड दही-जलेबी के इंतजार में नाचते-नाचते थक गई तो ‘मुखिया बाहर आओ-मुखिया बाहर आओ के नारे लगाने लगी। नारों की आवाज मुखिया को ठीक उसी तरह खीच लाई जैसे बीन की धुन सांप को बाहर खीच लाती है। बाहर आते ही मुखिया बोले, ‘चिरकुटों, ललचाओ नहीं, जलेबी तुम लोगों के लिए ही बनवाई हैं। किसी और के लिए नहीं। जाओ अंदर से थाल लाओ और सबको बांट दो।
पल भर में बसंता एण्ड ब्रिगेड मुखिया के घर के अंदर घुसी और दही-जलेबी लेकर बाहर आ गई। रेलमपेल का दौर शुरू हो गया। किसी को दही नसीब हुआ तो किसी को जलेबी। जो लंफट ब्रिगेड के करीबी थे वे ही भरपेट दही-जलेबी से नवाजे गए। बेचारे कई बुजुर्ग दोना लिए दही-जलेबी का इंतजार करते रहे लेकिन उन्हें नसीब हुआ तो केवल चासनी और तोड़।
पेट पूजा के बाद लोग जाने लगे तो मुखिया चिल्लाए, ‘अबे भुखमरों, गिद्घ भोज करके भाग रहे हो? यह तक नहीं पूछा कि हुआ क्या है? मंदिर-मस्जिद में श्रंगार क्यों करवाया है? शर्म करो जलेबीफरामोशों।
‘मुखिया अब ज्यादा मानमनौअल न कराओ जल्दी बताओ हुआ क्या है। मेरे पेट में मरोड़ शुरू हो गया है।, एक बुजुर्ग ने पेट पकड़ कर कहा।
‘अब हमें बगल के गांव वालों से डरने की जरूरत नहीं है। मुखिया बोले।
‘क्या अब हम लोगों को उनसे निपटने की छूट है। बसंता ने कहा।
‘माना कि पड़ोसी गांव के प्रधान की शह पर कुछ अपराधी चोरी-छिपे अपने यहां घुस आते है। हमारी फसल बरबाद कर देते हैं। अराजकता फैलाते हैं। फिर भी हिंसा ठीक नहीं है और अगर कोई अपनी ओर से लडऩे को तैयार हो तो फिर ऐसे में हिंसा के बारे में सोचना मूर्खता है।
‘अभी तक तो हम लोगों की रक्षा किसी ने नहीं की तो फिर भला अब कौन करेगा।, बसंता ने पूछा।
‘अमरीकपुर मदद करेगा। वहां के प्रधान ने आश्वासन दिया है।, मुखिया ने जवाब दिया।
‘आप सही कह रहे हैं प्रधान जी, अगर अमरीकपुर अपने साथ हो जाए तो फिर किसी की क्या मजाल जो हम लोगों की ओर आंख उठाकर देखे।, अधिकतर लोग एक स्वर में बोले।
‘अमरीकपुर, वह तो जब जहां चाहता है वहां बादल बनकर छा जाता है और फिर बरसात तो होती है लेकिन आसमान से नहीं, अमरीकपुर के विरोधियों की आंखों से।, बसंता ने कहा।
‘हां बेटा, वही अमरीकपुर। अपना अमरीकपुर।, मुखिया खुशी से कहा।
‘ क्या हम अमरीकपुर नहीं बन सकते, हममें किस चीज की कमी है।, बसंता ने पूछा।
‘सरऊ, जब अमरीकपुर अपने साथ है तो हम भला वैसा क्यों बनें?, मुखिया ने जवाब दिया।
‘मुखिया जी, भगवान भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करता है। दूसरों के भरोसे रहने वाला हम लोगों की तरह रोता ही रहता है।, बसंता ने तेज आवाज में कहा।
‘बसंता, क्या तू किसी पर भरोसा नहीं करता? मुखिया गुर्राए।
‘मैं भरोसा करता हूं लेकिन किसी पर पूरी तरह आश्रित नहीं होता हूं। एक कड़ुआ अनुभव है। मैं हाईस्कूल की परीक्षा दे रहा था। ननकू मेरे पीछे बैठा था। वह खर्रा लेकर आता और मुझे भी देता। वैसे मैं भी खर्रा ले जाता था लेकिन एक दिन मैं खर्रा लेकर नहीं गया। सोचा ननकू तो लाएगा ही। बदकिस्मती से ननकू भी खर्रा नहीं लाया और हम दोनों परीक्षा में फेल हो गए। यह था विश्वास का नजीता। मलंग चाचा को बताया तो उन्होंने कहा, ‘बेटा जो अपनी मदद खुद नहीं करना जानते हैं, समय आने पर कोई उनकी मदद नहीं करता है। एक वह दिन था और एक आज का है मैं अपने अलावा और किसी पर विश्वास नहीं करता। मैं फिर कहता हूं इस गांव का भला हम गांव वाले ही कर सकते हैं। कोई बाहरी प्रधान नहीं। बसंता ने अपना गमछा गले से उतार कर सर पर बांध लिया। उसकी ब्रिगेड ओज में आकर हुंकार भरने लगी।
‘देखो साले का सुर्रा। कुछ लौंडे-लफाड़ी क्या इकटï्ठा कर लिए अपने आप को चंद्रशेखर आजाद समझ रहा है। इसका हाल भी आजाद जैसा होगा। उन्हें शहादत के बदले क्या मिला? केवल पुण्यतिथि और जन्मतिथि पर ही दो चार लोग प्रतिमाओं पर फूल-माला चढ़ाते हैं और याद करते हैं। जय-जय कार तो हम जैसे विनम्र समझौतापरस्त लोगों की ही होती है और सदियों तक होती रहेगी। मैं फिर कहता हूं, अमरीकपुर का नया प्रधान अपना है। अब हमारी फसलें सुरक्षित रहेंगी, जानवर सुरक्षित रहेंगे, हम सुरक्षित रहेंगे।, मुखिया की इन बातों ने गांव वालों पर जादू कर दिया।
‘आखिर कौन है अमरीकपुर का प्रधान?, कुछ लोगों ने पूछा।
‘वे बहुत अच्छे इंसान हैं। रिश्ते में मेरे दूर के मामा भी लगते हैं। कल फोन पर उनसे बात हुई थी। उन्होंने कहा था,’भांजे, जब भी कोई परेशानी हो तो बता देना। मैं संकटमोचन बनकर आ जाऊंगा।
‘हम सब आपके साथ हैं। इन गधों की बात का बुरा न मानें। बीस-पच्चीस को छोड़कर पूरा गांव आपके साथ है। गांव वाले चिल्लाए।
‘आपका यह साथ ही मेरी सफलता का राज है। अब मामा आ गए हैं,सब ठीक हो जाएगा, मुखिया बात पूरी करते इसके पहले ही बगल की पगडंड़ी से दौड़ते हुए पड़ोसी गांव के दो लड़के आए। उनमे से एक ने मंदिर का लाउडस्पीकर तोड़ा। दूसरे ने मुखिया को पीछे से एक जोरदार लात जमाई और मस्जिद की झालर नोचकर अपने गांव की ओर भागे। बसंता की सेना जवाब देने के लिए उनके पीछे दौड़ी। अटारी पर खड़ी छोटी ठकुराइन जलेबी घरों में दुबक रही भीड़ को चूडिय़ां दिखा-दिखा कर ललकारने लगी। वहीं मुखिया अपनी कमर टेढ़ी किए चिल्लात रहे, ‘ओ मामा, ओ मामा, ओ मामा, बचाओ ओ मामा।
उस गांव पर पड़ोसी गांव के अत्याचार अभी जारी हैं। इस पर भी वहां का अमीर मुखिया खुश है, फेरी लगाकर साधारण जीवन जीने वाला सुखिया खुश है और तो और पूरे दिन मेहनत मजूरी करके एक-दो रोटी जुटा पाने वाला गरीब दुखिया भी खुश है। दुखी है तो बस वह लंफट ब्रिगेड जिसे अपने बाहुबल पर भरोसा है, जो इन घटनाओं का मुहतोड़ जवाब दे सकती है लेकिन उसके हाथों को तहजीब, सभ्यता और अनुशासन की बेडिय़ों से बांध दिया गया है।
शरद अग्निहोत्री
109/271 राम कृष्ण नगर,
कानपुर- 208012, उत्तर प्रदेश
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