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‘आओ राधा बहिनी आओ। बड़े भाग हमारे कि आज तुम इधर निकल आईं।Ó, आंगन में खटिया डालते हुए मालती बोली।
‘का बताएं इधर दो-तीन साल से भगवान ऐसे रूठे हैं कि सब सत्यानाश हुआ जा रहा है। एक मुसीबत जाती नहीं है कि दूसरी बाधिन की तरह घर दबोचती है। घर में बैठे-बैठे उसी के बारे में सोचती रहती हूं। कहीं कोई उपाय बताता है वह करती हूं लेकिन कहीं से कोई सहारा नहीं मिल रहा है।Ó
‘ऐसा क्या हो गया बहिन, आपके चेहरे से ही दिख रहा है कि कोई बड़ी विपदा आपके सामने आ गई है। परेशान न हों। ये विपदाएं तो मौसम की तरह होती हैं, एक आती है तो दूसरी चली जाती है। हर दिन एक सा नहीं होता है। भरोसा रखो, आपकी सारी परेशानियां जल्द ही कान्हा जी हर लेंगे।Ó, राधा को सान्त्वना देकर मालती चाय-पानी लेने चौके में चली गई और कुछ देर बाद नाश्ते का सामन लेकर वापस आई और राधा के पास बैठ गई।
चाय-पानी के बीच में मालती ने राधा से पूछा, ‘बुरा न मानना अगर मैं आपकी कुछ मदद कर सकूं तो बता दें। मेरे पास बहुत ज्यादा पैसा तो नहीं है लेकिन आठ-दस हजार की मदद तो कर ही सकती हूं। मैं वह दिन भूली नहीं हूं जब मेरी बिटिया रामा की शादी थी। आपने उसके लिए इतना किया था, जितना कोई अपनी रिश्तेदारी में भी नहीं करता है। बरीक्षा के सामान से कलेवा तक जहां भी जितना जी खोलकर खर्च किया वह हम कभी भूलेंगे नहीं।Ó
‘मालती, यह बात कहकर तुमने मुझे और परेशान कर दिया। रमा क्या हमारी बिटिया नहीं है। उससे राजा को मैं ऐसे ही राखी नहीं बंधवाती हूं। हमें भगवान ने बिटिया नहीं दी, तो मैंने उसे मान लिया। रही बात पैसे की तो उसकी अभी भी कोई कमी हमें नहीं है। बस कमी है तो शान्ति की। कहीं भी मन नहीं लगता है। कभी-कभी तो सोचती हूं मायके चली जाऊं लेकिन अम्मा-बाबा के जाने के बाद वहां भी कहां कोई पूछता है।Ó, राधा रोने लगी।
‘बहिन मैं आपकी समस्या समझ नहीं पा रही हूं। पूरी बात बताएं तो शायद कुछ रास्ता सूझे। भरोसा रखिए घर की बात बाहर नहीं जाएगी।Ó
‘जबसे राजा और बहू शहर चले गए हैं, घर काटने को दौड़ता है। ये सुबह से खेत निकल जाते हैं तो शाम को ही आते हैं। गाय-भैस का काम भी खुद ही करते हैं। हमारे पास बचा तो बस घर की सफाई और दो जन का खाना पानी। कुछ दिन तो टीवी देखकर समय कट गया लेकिन अब समय कैसे काटा जाए, यह सोचने में ही समय बिताना पड़ता है। पता नहीं यह कब तक चलेगा।Ó
‘आप की समस्या अकेलापन है। इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका बहिन यही है कि आपको जो अच्छा लगता है उसी में मन लगाएं। मीना का लड़का विमल जब शहर चला गया था तो वह भी कुछ दिन तक आप जैसी ही समस्या में खोई रही थी लेकिन अब जब भी मैं उसे देखती हूं, वह खुश ही दिखाई देती है। सुना है उसने घर में कोई काम शुरू किया है जिससे थोड़ी बहुत उसकी कमाई भी हो जाती है।Ó
‘मीना काम करती है? अरे नहीं, चौधरी के पास इतनी बड़ी जमीन-जायदाद और बीबी काम करे, नहीं, मैं नहीं मान सकती। मालती तुम तो मसखरी पर उतर आई हो।Ó राधा तमतमाते हुए बोली।
‘सच कहती हूं, बहिन। वह कुछ करती है और जब महीने में एक बार उसका लड़का गांव आता है तो पीपों में कुछ ले जाता है। क्या है यह तो मुझे भी ठीक से पता नहीं है लेकिन कुछ काम तो होता ही है। अरे कहो तो अभी चलकर उसी से पूछ लें? शायद आपके साथ हमारा भी कोई काम बन जाए।Ó
‘चलो चलें, लेकिन बहिन बात शुरू तुम करना। कहीं वह बुरा न मान जाए। बैठे बिठाए एक और परेसानी मेरे सिर आ गिरे।Ó
राधा और मालती दोनों मीना के घर पहुंचीं। मीना ने उन्हें कमरे में बिठाया और बोली,’अरे आज तुम दोनों जनी इधर कैसे भटक पड़ी?Ó
‘जिज्जी सुना है आप कुछ काम करने लगी हैं?Ó, मालती ने मीना से पूछा।
‘तो बात अब पूरे गांव में फैल गई। हां एक काम शुरू किया है।Ó, हंसते हुए मीना ने कहा।
‘जिज्जी कौन सा काम है। हमें भी तो बताओ। जब से राजा बहू को लेकर शहर चला गया है, घर में बैठे-बैठे ही दिन-रात काट रही हूं। कहीं मन नहीं लग रहा है।Ó, राधा बोली।
‘अरे कोई बड़ा काम नहीं बस यूंही तुम्हारी तरह मेरा भी समय नहीं कटता था, ऐसे ही परेशान रहती थी तो सोचा कोई काम शुरू कर लिया जाए जिससे समय कटने लगे। यहां पैसे की तो कोई कमी नहीं थी, बस कमी थी तो अपना मन किसी काम में लगाने की। शहर गई थी, छोटे जिस मोहल्ले में मकान बनवाए हैं वहां पास ही एक बड़ी बाजार है। एक दिन उधर घूमने निकल गई। सोचा अचार और पापड़ ही खरीद लिए जाएं। दुकान से खरीद लिए इन्हें जब खाया तो यह कहावत याद आ गई, ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे।Ó मुंआ स्वाद जैसा स्वाद नहीं और पैसे आसमान उड़ैया।Ó छोटे से बात की तो वह बोला यहां तो इन सब चीजों की बहुत मांग है। बड़ी कंपनियों की अच्छी चीजें भी मिलती हैं तो छोटी कंपनियों की घर में बनाए गए सामान की भी अच्छी बिक्री हो जाती है। उससे बात की और खुद ही घर में थोड़ा बहुत अचार बनाने लगी। छोटे महीने में एक बार उसे आकर ले जाता है। अपना तो भाई अब समय भी कटने लगा है और एक-दो हजार की आमदनी भी होने लगी है।Ó
‘बहिन तुम्हारी जैसी समस्या मेरे सामने भी आ गई है। मैं भी कुछ करना चाहती हूं अगर तुम बुरा न मानो तो मुझे भी कुछ ऐसा काम बता दो जिससे अपने भी दिन कुछ सुधर जाएं। पैसा मिले न मिले अगर पास से जाए न तो मैं भी कोई काम कर लूंगी।Ó, राधा ने कहा।
‘अरे यह भी कोई कहने की बात है। चाहो तो तुम मेरे साथ ही काम कर लो या फिर अपना अलग काम भी कर सकती हो। वैसे मेरी बात मानो तुम पापड़ का काम शुरू कर दो। छोटे से कह कर मैं कुछ दुकानें भी बंधवाने की कोशिश करूंगी। बाकी राजा से बात करो। काम चला तो चला नहीं तो घर में तो काम आ ही जाएगा। इस तरह के काम में यह फायदा है।Ó
‘ठीक कहा। मैं आज ही इनसे बात करूंगी और राजा से भी। जिज्जी आपने हमें नई राह दिखा दी है। करने को बहुत से काम हैं लेकिन शुरुआत कहां से की जाए यह पता लगाना ही मुश्किल होता है। मालती क्या तुम इस काम में मेरा साथ दोगी?Ó
‘क्यों नहीं। बराबर की हिस्सेदार बनूंगी। बराबर का पैसा लगाऊंगी। जरूरत पड़ेगी तो खुद शहर जाकर दुकानों में बात करूंगी। क्या पता आने वाले दिनों में हम लोग इसी तरह आपस में मिल जुलकर एक बड़ा कुटीर उद्योग खड़ा कर लें। काम बढ़ेगा तो गांव की और भी औरतों को अपने साथ जोड़ लेंगे। खुशियों की आएगी बहार, एक से भले दो दो से भले चार।Ó
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