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बिटिया पढऩे जाएगी, साहिब बनकर आएगी

somthing nothing
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‘हे भगवान, क्या जमाना आ गया है। जो मन में आए करो। चाहें किसी को अच्छा लगे या नहीं। अभी तक अपना गांव इस तरह की बलाओं से बचा था लेकिन अब यहां भी ऐसी भुतहा हवा आने वाली हैं। राम भजो-राम भजो ….।, बांके दतून करते हुए बड़बड़ा रहा था।
‘रात में किसी भूत-चुड़ैल का सपना तो नहीं देख लिया जो भुतही बातें कर रहे हो। तुनकते हुए बांके की पत्नी ने कहा।
‘अरे घरइतिन कभी तो अकल की बात किया करो। भला भूतनी से मैं क्यों डरूंगा। वह भी जानती है कि मैं तुम्हारा पति हूं। तुमसे झगड़ा लेकर भूतनी को मरना है क्या।, बांके के इस जवाब पर पत्नी हंसी और बोली, ‘अजी फालतू की बातें न करो। इतनी भी बुरी नहीं हूं। बताओ हुआ क्या है?
‘वाह री रत्तो की अम्मा। सुना था कि कुछ लोग आंखें खोलकर भी सोते रहते हैं, आज देख भी लिया। कटियार के घर की कुछ खबर है?
‘कटियारिन, वह तो कई दिनों से मुझे मिली ही नहीं। उनके यहां कुछ हो गया है क्या?
‘तुम्हें आज राधे के घर छन्ना देने भी तो जाना है। उसका घर कटियार के घर के बगल में ही है। उन्हीं से पूछ लेना। हमें बाजार भी जाना है।
‘राधे की अम्मा मिली थीं। छन्ना मांग रही थी। दे दूं नहीं तो दोबारा मिलेगा नहीं। वह मुझे कटियारिन के घर की बात भी बता देगी। वैसे भी उसके पेट में मेरी तरह कोई बात पचती नहीं है।
रत्तो की अम्मा दोपहर में राधे के घर पहुंच गईं और छन्ना देने के बाद बोलीं, ‘कटियारिन के घर में कुछ हो गया है क्या? बड़ी चर्चा है गांव में।
‘तो खबर तुम्हारे टोला तक भी पहुंच गई। हां, मामला ही ऐसा है। ये भी कल से मेरा सिर खाए हैं। कह रहे हैं कि राधे बिटिया को अब उनके घर न भेजना। वह बिगड़ जाएगी।
‘हाय। क्या कोई ऊंच-नीच तो नहीं हो गई है। कल शाम को तो कटियारिन की बिटिया अनिता तुम्हारी राधे के साथ ही हमारे घर के सामने से निकली थी।
‘ऐसा कुछ नहीं है। कटियारिन अपनी बिटिया को अच्छी पढ़ाई के लिए शहर भेज रही है। सारा बखेड़ा इसी बात पर छिड़ा है। कुछ लोगों ने यह मामला पंचायत तक पहुंचा दिया है। तुम भी शाम को मंदिर आ जाना।
‘तो ये बात है। ठीक है, मैं भी शाम को मंदिर आ जाऊंगी। वैसे भी पंचायत के परपंच में मुझे बहुत मजा आता है।
पंचायत में सरपंच जी ने पुन्नीलाल को अपनी बात रखने के लिए बुलाया। पुन्नी अनिता के शहर जाकर पढऩे का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे थे।
‘अपने गांव की अधिकतर महिलाएं पढऩा लिखना नहीं जानती हैं तो क्या वह सम्मान से नहीं जी रही हैं। यहां तक तो समझ में आता है कि लड़कियों को गांव के स्कूल से हाईस्कूल करवा दो। इससे ज्यादा का क्या मतलब। भाई रोटी बनाते समय उन्हें भला चार दूना आठ तो करना नहीं पड़ेगा। बंसी ने जब अनिता का नाम बगल वाले गांव के स्कूल में 11वीं के लिए लिखवाया था, मैंने तब भी विरोध किया था। चेताया था कि अब कई बच्चियां वहां जाकर आगे पढऩे की जिद करेंगी। यही हुआ आज मिश्रा, साहू और यादव के घर की कुछ लड़कियां वहां जाकर 11वीं में पढ़ रही हैं। अनिता शहर जाकर पढ़ेगी तो बाकी भी ऐसा ही करेंगी। वैसे भी वहां जाकर लड़कियां बिगड़ जाती हैं। सूखा शहर गया था। वहां की लड़कियां कैसी हैं, वह बताएगा।, पुन्नी का इशारा पाकर उसका चमचा सूखा शुरू हो गया, ‘सरपंच जी, शहर की लड़कियां एकदम हीरोइन। जिसे देखो आदमी जैसे कपड़े। हाथ में मोबाइल और छोटी वाली स्कूटर। एक लड़की ने अपनी छोटी स्कूटर से मुझे ठोकर मारी और फिर गाली बकी सॉरी, रियली सॉरी और निकल गई। क्या हम अपनी बच्चियों को ऐसा संस्कारहीन बनाना चाहते हैं।
नहीं … नहीं, बहुत से लोगों ने कहा। लेकिन जो पढ़े लिखे थे वे एक दूसरे को देखकर हंसने लगे। सरपंच जी शिक्षित थे। उन्होंने कहा, अनिता बिटिया बताओ तुम आगे क्यों पढऩा चाहती हो।
अनिता आत्मविश्वास के साथ लोगों के सामने आई और बोली, ‘मैं आगे पढऩा चाहती हूं क्योंकि अब बिना उच्च शिक्षा के अपना और अपने गांव का विकास असंभव है। अपने गांव के दस-बारह लड़के आज शहर में उच्च शिक्षा ले रहे हैं। जब वे शहर गए थे, तब तो उनका किसी ने विरोध नहीं किया था।
चार साल पहले बलवंत काका का लड़का भानू इंटर करने के बाद कानपुर पढऩे गया था। वहां उसने स्नातक की पढ़ाई के साथ-साथ आईआईटी की तैयारी की। उनका आईआईटी में सेलेक्शन हो गया है। गांव का हर आदमी उसकी तारीफ करते थकता नहीं है, हम सभी बाहर वालों से कहते हैं कि अपने गांव का एक लड़का बड़ा इंजीनियर बनकर आने वाला है। क्या आप नहीं चाहते हैं कि मैं भी भानू भईया की तरह ही कुछ ऐसा करूं।
अनिता की बात को बीच में काटते हुए पुन्नी ने फिर एक सुर्रा छोडा, ‘तुम लड़की हो।
‘गुरू जब भी बोलते हैं, ऐसा लगता है भगवान बोल रहे हैं।, चमचे ने बात का वजन बढ़ाया।
चारो ओर से तालियों की आवाजें आ रही थीं लेकिन बीच-बीच में कुछ इस तरह की आवाजें भी सुनाई दे रही थीं, ‘बिन बरसात के गीले, पुन्नी अकल से ढीले। अफरातफरी कम हुई तो अनिता ने कहा ‘सरपंच जी आपका लड़का शहर में पढ़ रहा है। आपको कैसी बहू चाहिए।
‘सुशील, संस्कारित और ….. उसी के जितनी शिक्षित।, यह कह कर जैसे की सरपंच जी खड़े हुए वे सभी लोग उनके समर्थन में आ गए जिनके लड़के शहर में उच्च शिक्षा ले रहे थे। गांव की बहुत सी औरतों ने अनिता को घेर लिया। उसकी बलाएं उतारीं और एक दूसरे से कहने लगीं, ‘बिटिया पढऩे जाएगी, साहिब बनकर आएगी।

शरद अग्निहोत्री
कानपुर

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